Water bottles

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    • यही पानी रेल यात्रियों को बेच दिया 
    • पेंट्री कार स्टाफ का हैरतअंगेज कारनामा 

    नागपुर. ट्रेनों में उमड़ रही भीड़ को देखकर आप हैरान रह जाएंगे. कोच में यात्री भेड़-बकिरयों की तरह सफर करने के लिए मजबूर हैं. इसमें सबसे ज्यादा दुर्गति महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की हो रही है. यह हालत जनरल डिब्बों को छोड़िए, स्लीपर कोचों में बनी हुई है. हैरानी की बात है कि ट्रेनों में भोजन, पानी की सप्लाई करने वाले कर्मचारी भी पानी की बोतलों को शौचालयों में स्टॉक करने के बाद यात्रियों को बेच रहे हैं. 

    क्या कहते हैं भुक्तभोगी यात्री 

    ट्रेन नंबर 12792 सिकंदराबाद सुपरफास्ट एक्सप्रेस के एस1 कोच में सफर करने वाले यात्री अमरजीत सिंह, पुष्पा सिंह, रानी सिंह, हर्ष सिंह आदि ने बताया कि मंगलवार, 15 नवंबर को बक्सर से नागपुर आने के लिए सिकंदराबाद सुपरफास्ट एक्सप्रेस में चढ़े थे. ट्रेन में इतनी ज्यादा भीड़ थी कि अपनी बर्थ पर जाना भी मुश्किल हो रहा था. आरक्षित बर्थ पर दूसरे लोगों ने कब्जा कर रखा था. इसलिए नागपुर तक का पूरा सफर बर्थ पर बैठकर करना पड़ा. उन्होंने बताया कि पेंट्री कार के कर्मचारियों ने शौचालय में पानी की बोतलों को स्टॉक करके रख दिया था, जिसके कारण लोगों का शौचालय जाना भी मुश्किल हो गया.

    कई यात्रियों ने उन्हीं पानी की बोतलों पर यूरिन पास कर दिया. आश्चर्य की बात है कि पेंट्री कार कर्मचारियों ने शौचालय में रखी पानी की बोतलों को ही यात्रियों को 20-20 रुपए में बेच दिया. कर्मचारियों की धोखाधड़ी से अनजान यात्री इसी पानी को पी रहे थे. शौचालय तक नहीं पहुंच पाने वाले कई महिला यात्रियों को मजबूरी में कोच के इमरजेंसी विंडो से अपने बच्चों को टॉयलेट कराना पड़ा. यात्रियों की मदद के लिए पूरे सफर के दौरान एक बार भी टीसी कोच में नहीं आया. यात्रियों ने बताया कि खचाखच होने के चनलते नागपुर स्टेशन पर आरपीएफ की मदद से उतरना संभव हो सका.

    स्व्च्छता अभियान पर सवाल

    रेलवे के आला अधिकारियों ने हाल ही में स्वच्छता अभियान चलाया था, जिसमें स्टेशन परिसर के अलावा ट्रेन के कोचों और शौचालयों की साफ-सफाई की थी. यात्रियों को गंदगी फैलाने पर जुर्माना लगाया गया था. अधिकारियों का कहना था कि रेलवे स्वच्छता को लेकर बेहद गंभीर है और यात्रियों को बेहतर सुविधा मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या रेलवे अधिकारियों को ट्रेनों के अंदर गंदगी और यात्रियों की परेशानी नजर नहीं आती है.