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    नागपुर. ‘स्ट्रीट डॉग्स’ कहते ही दिमाग में कचरे और गंदगी में मुंह मारते कुपोषित कुत्तों और पिल्लों के दृश्य कौंध जाते हैं. ऐसे कुत्तों और उनके पिल्लों की अक्सर सड़क पर वाहनों से मौत हो जाती है, फिर इनके शव लावारिस की तरह आसपास के इलाकों में बदबू फैलाते रहते हैं. इन कुत्तों से लोग नफरत करते हैं और अपने घर के आसपास भी फटकने नहीं देते हैं. परंतु अब स्थितियां बदल रही हैं. ऑरेंज सिटी में स्ट्रीट डॉग्स के प्रति नजरिया बदल रहा है. अब लोग न केवल स्ट्रीट डॉग्स से प्यार कर रहे हैं, बल्कि उन्हें अपने घरों में पनाह भी दे रहे हैं.

    ऐसे ही लोगों में शामिल हैं गांधी चौक, सदर की रहने वाली अपर्णा रेड्डी, जो रेलवे में चीफ कमर्शियल क्लर्क के पद पर कार्यरत हैं. उनका कहना है कि विदेशी नस्ल के कुत्ते स्टेटस सिंबल बन गए हैं. हजारों रुपए खर्च करने के बाद भी उसकी देखभाल मुश्किल होती है. विदेशी नस्ल के कुत्ते आलसी होते हैं और घर की सुरक्षा करने में असमर्थ होते हैं. अधिकांश लोग इसे शोपीस के रूप में रखते हैं. जबकि इसके उलट देसी नस्ल के कुत्ते नि:शुल्क मिलते हैं और इंटेलिजेंट होने के साथ ही घर की सुरक्षा भी करते हैं. 

    संभ्रांत परिवारों का बदल रहा नजरिया

    अपर्णा का कहना है कि जीवों से प्रेम करने के लिए विदेशी नस्ल के कुत्तों को पालना जरूरी नहीं है. जिन्हें आपकी जरूरत है, उनकी मदद करना ही उद्देश्य होना चाहिए. इसी कारण बेघर को घर देने के मकसद से अभियान चला रही हूं. इसकी वजह से संभ्रांत परिवारों में स्ट्रीट डॉग को एडॉप्ट करने का क्रेज बढ़ा है. उन्होंने कहा कि जज के रूप में कार्यरत पीके शर्मा, फाइनेंशियल एडवाइजर अनिता नायडू, व्यापारी राजेश सायारे, होटल मैनेजमेंट की छात्रा कनक जायसवाल सहित कई ऐसे लोग हैं, जो हमारे घर से स्ट्रीट डॉग लेकर गए हैं.

    हम प्रतिदिन सुबह-शाम डिब्बों में खाना लेकर निकलते हैं तो सड़क पर कुत्ते हमारी राह देखते हुए मिलते हैं. इस काम में हमारी भांजी यज्ञा नारायण और युक्ति भी मदद करती है. अपर्णा का कहना है कि लोगों के रुझान को देखते हुए हमने एक वाट्सएप ग्रुप बना रखा है, जिस पर हर हफ्ते करीब 10 लोग स्ट्रीट डॉग को एडॉप्ट करने वाले मैसेज भेजते हैं. 

    बीमार कुत्तों का इलाज कराना जुनून

    इसी प्रकार लॉ कॉलेज की छात्रा कश्मीरा प्रधान भी पिछले दो साल से स्ट्रीट डॉग को खाना खिला रही हैं. साथ ही बीमार कुत्तों का इलाज कराती हैं और इनकी जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए नसबंदी कराती हैं. कश्मीरा का कहना है कि मैं किसी एनजीओ से नहीं जुड़ी हूं, यह मेरा जुनून है, जिसके कारण पढ़ाई के लिए मिलने वाले पैसों में से ही कुछ पैसे बचाकर यह काम करती हूं. इसमें कुछ दोस्त भी मदद कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इंसान बेईमान हो सकता है लेकिन एक बार कुत्ते को खाना खिला दो तो वे जिंदगी भर याद रखते हैं.