court
File Pic

    Loading

    नागपुर. जिला व सत्र न्यायालय के न्यायाधीश सुनील पाटिल की अदालत ने यशोधरानगर थाने में 2014 में हुई संजीवनी क्वार्टर निवासी मोनू उर्फ इजहार मलिक की हत्या के मामले में सभी 6 आरोपियों को निर्दोष घोषित करते हुए बरी कर दिया. इनमें काजू सिद्दिकी, अरमान सिद्दिकी, रुस्तुम सिद्दिकी, रियाजुद्दिन सिद्दिकी, कल्लू सिद्दिकी और सिबु सिद्दिकी के नाम शामिल हैं.

    ज्ञात हो कि सभी पर आरोप था कि 14 सितंबर 2014 को दोपहर करीब 3 बजे काजू और मृतक मोनू के भाई सोनू के बीच झगड़ा चल रहा था. इसी बात को मन में रखकर सभी 6 आरोपी सोनू के घर गये और उसे बाहर बुलाया. लेकिन वह घर पर नहीं था. ऐसे में मोनू घर से बाहर निकला तो सभी आरोपियों ने मारपीट शुरू कर दी.

    सीनें में घोपा था धारदार हथियार

    इसी बीच अरमान ने अपने पास रखा धारदार हथियार मोनू के सीने में घोप दिया जिससे उसकी मौत हो गई. मोनू के चाचा इरफान अहमद की शिकायत पर पुलिस ने मामला दर्ज किया था. इसके बाद तत्कालीन पीआई घुगे ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर हत्या के समय पहने रक्तरंजित कपड़े और पेचकस जैसे हथियार जब्त किये थे. पूरी जांच के बाद आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट पेश की गई थी. अभियोजन पक्ष की ओर से कुल 16 गवाह पेश कये गये. वहीं सरकारी वकील कल्पना पांडे ने पुलिस द्वारा आरोपियों से जब्त रक्तरंजित कपड़े और पेचकस जैसे हथियार का हवाला देते हुए आरोपियों को दोषी करार देते हुए कड़ी सजा की मांग की. 

    कौनसा हथियार, यह ही तय नहीं

    दूसरी तरफ बचाव पक्ष की ओर से एडवोकेट चंद्रशेखर जलतारे कोर्ट में दलील की कि आरोपियों को जानबुझकर फंसाया जा रहा है. दिनदहाड़े हत्या होने के बावजूद मृतक के परिवार वालों के अलावा अन्य कोई भी बयान देने आगे नहीं आया है. और जो बयान दिये गये हैं वे भी विसंगतिपूर्ण है. वहीं, पुलिस ने पेचकस जैसा कोई हथियार जब्त किया है लेकिन साफ तौर पर बताया नहीं जा रहा है कि किस प्रकार के हथियार से हत्या की गई है.

    यह हथियार गुप्ती थी या चाकू कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं पता. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मोनू के शरीर पर हुए घाव से यह तय नहीं होता कि ये पेचकस से हुआ है. यदि अरमान के एक ही वार से मोनू की मौत हो गई थी, उसके शरीर पर बाकी घाव कैसे लगे. वहीं,रक्तरंजित कपड़ों तक सील नहीं किया गया था इसलिए इस पर विचार नहीं किया जा सकता है. सारी दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने सभी को निर्दोष करार देकर बरी कर दिया. बचाव पक्ष की ओर से एड. जलतारे और दीपक दीक्षित जबकि सरकार की ओर से कल्पना पांडे तथा अभियोजन पक्ष से एड. आरबी गायकवाड़ ने पैरवी की.