Nagpur ZP

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    • 10-12 सीटें जीतना भाजपा का लक्ष्य 
    • 07 सभी सीटें कांग्रेस को वापस पाना जरूरी
    • 6 सीटें हैं सेना की टारगेट

    नागपुर. नागपुर जिला परिषद में 5 अक्टूबर को ओबीसी की 16 सीटों के लिए होने वाला उप चुनाव यहां की सत्ता का समीकरण बदल सकता है. कांग्रेस और राकां भले ही आघाड़ी कर चुनाव लड़ रही हों लेकिन भाजपा और शिवसेना दोनों ही सभी 16-16 सीटों पर उम्मीदवार उतार चुकी हैं. सभी पार्टियों के उम्मीदवारों का चुनाव प्रचार भी शुरू हो गया है. भाजपा के पास उसकी 4 सीटें रद्द होने के बाद 15 सीटें बची हुई हैं. कांग्रेस और राकां मिलाकर फिलहाल 30 सीटें हैं और इनके साथ शेकाप व सेना के 1-1 सदस्य हैं. इस तरह 58 सीटों वाली जिप में ओबीसी सीटें रद्द होने के बाद सत्ताधारियों के पास कुल 32 सीटें हैं. कहा जा रहा है कि अब भाजपा सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगाने में जुट गई है. साम-दाम की रणनीति पर काम शुरू कर दिया गया है. भाजपा 16 में से कम से कम 12 सीटें जीतने का जी-तोड़ प्रयास करने की पूरी तैयारी में है ताकि 6 अक्टूबर को जब परिणाम आए तो उसकी कुल सदस्य संख्या 27 तो हो ही जाए. 

    सभापति पद देकर हथिया सकती है सेना

    अगर 16 में से 12 सीटें भी भाजपा ने हासिल कर लीं तो वह गेम चेंजर हो सकती है. शिवसेना को कांग्रेस-राकां ने इस उप चुनाव में अलग-थलग कर पल्ला झाड़ लिया है. इससे शिवसेना खेमे में भारी रोष है. 16 सीटों में से अगर उसने भी इस बार 3-4 सीटें हासिल कर लीं तो वह सभापति पद की मांग के साथ भाजपा के साथ आ सकती है. यह भी चर्चा चल रही है कि शेकाप को भी सभापति पद देकर अपने पाले में भाजपा ला सकती है. यह सब चुनाव परिणाम आने के बाद ही देखने को मिलेगा लेकिन ग्रामीण राजनीति में रुचि लेने वाले जानकारों का गणित फिलहाल तो इसी तरह का चल रहा है. सभी 16 सीटों पर नुक्कड़ सभा भी शुरू होने की जानकारी है. 

    राकां पहले ही है नाराज

    जिप चुनाव कांग्रेस-राकां-शिवसेना ने मिलकर लड़ा था. कांग्रेस को जब 31 सीटें आईं तो उसने राकां को एक भी सभापति पद नहीं दिया. राकां ने गठबंधन धर्म के तहत उपाध्यक्ष और 2 सभापति का पद कांग्रेस से मांगा था लेकिन उसे एक भी पद नहीं दिया गया. महिला व बाल कल्याण सभापति राकां की टिकट से चुनकर आईं थीं लेकिन उन्हीं की पार्टी के लोग दबी जुबान से कहते हैं कि उन्हें कांग्रेसी खेमे में जाने के चलते सभापति पद दिया गया. अब उप चुनाव में अगर कांग्रेस अपनी रद्द हुई सभी 7 सीटों पर चुनाव नहीं जीत पाती है और अकेले बहुमत खो देती है तो राकां भी अपना बदला लेने के मूड में रहेगी. वह उपाध्यक्ष पद की मांग जरूर रखेगी, साथ ही यह भी शर्त रख सकती है कि ढाई वर्ष के कार्यकाल के बाद अगले ढाई वर्ष के लिए उसे उपाध्यक्ष के साथ सभापति के पद भी दिए जाएं, अन्यथा वह सत्ता के लिए भाजपा के साथ भी जा सकती है. 

    सत्ताधारी पार्टी में असंतोष

    अब तक के लगभग 2 वर्ष के कार्यकाल में सत्ताधारी कांग्रेस को कोरोना के कारण दुर्भाग्य से अच्छी तरह कार्य करने का अवसर नहीं मिल पाया है. सरकार से निधि नहीं मिलने के चलते अनेक व्यक्तिगत लाभ की योजनाओं और विकास कार्य बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. किसानों को भी समय पर मदद नहीं मिली है जिसका विपरीत प्रभाव उप चुनाव में पड़ सकता है. वहीं समय-समय पर जिप में पदाधिकारियों के बीच आपसी टकराहट भी सामने आती रही है. सत्ताधारी सदस्यों में भी असंतुष्ट गुट है जो पदाधिकारियों से नाखुश है. उप चुनाव में इसका लाभ भाजपा उठा सकती है.