नागपुर. महाराष्ट्र के नेता न खुद विदर्भ के लिए कुछ करते हैं और न ही विदर्भवादियों को क्षेत्र के विकास करने के लिए आगे आने का अवसर देते हैं. यह विदर्भ और विदर्भवासियों को गरीब का गरीब बनाये रखने का खुला षड्यंत्र है. अजीत पवार द्वारा बैकलॉग खत्म करने के वक्तव्य पर अर्थशास्त्री और विदर्भवादी श्रीनिवास खांदेवाले ने उक्त आरोप लगाये.
खांदेवाले सहित विदर्भवादी के नेताओं से सीधा-सीधा आरोप लगाया है कि यह विदर्भ के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और हमें गुमराह रखकर अपना काम साधने का काम कर रहे हैं. पवार जैसे वरिष्ठ नेताओं से इस प्रकार के आंकड़ेबाजी की उम्मीद नहीं की जा सकती.
विषमताओं को बनाये रखा उनकी पहली प्राथमिकता है. विदर्भ में आज भी औद्योगिक, कृषि, सिंचाई, स्वास्थ्य, शिक्षा का बैकलॉग है. अगर सरकार आंकड़ों से इसका सही जवाब दे दे, तो विदर्भवासी समझ सकते हैं.
विदर्भ में सर्वाधिक उजाड़ गांव
उन्होंने कहा कि विदर्भ की वास्तविक हालात का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि देश में सबसे ज्यादा उजाड़ गांव विदर्भ में है. लोग गांव को छोड़कर पलायन कर चुके हैं. राज्य में भी यह सबसे अधिक औसत है. अमरावती और नागपुर संभाग में ऐसे गांवों की संख्या 2305 है, जबकि पुणे-नाशिक संभाग में 135 गांव ही ऐसे हैं. सरकार इसी को विकास का पैमाना मान रही है, तो सहज ही उनकी नीयत का अंदाज लगाया जा सकता है.
बच्चे-अभिभावक छोड़ रहे शहर
बच्चे और अभिभावक मजबूरी में शहर छोड़ रहे हैं. न शिक्षा का स्तर बढ़ा है और न ही नौकरी देने वाले. इसे भी सरकार विकास का पैमाना मान रही है क्या. विषमता बढ़ाने का यह सीधा सीधा खेल खेला जा रहा है ताकि विदर्भ विकास की मुख्यधारा में आ ही नहीं सके.
आंकड़े से चीटिंग का खेल : चटप
वामनराव चटप का कहना है कि सरकार आंकड़ों के जरिए विदर्भवादियों के साथ चीटिंग कर रही है. अगर एेसे ही आंकड़े सरकार के पास हैं, तो वह बताये कि 121 प्रोजेक्ट में 60,000 करोड़ रुपये का बैकलॉग का क्या हुआ. इन सब आंकड़ों का ब्यौरा कभी सामने नहीं आने दिया जाता है. झूठ बोलकर अपना उल्लू सीधा किया जा रहा है.
बैकलॉग जैसा था,वैसा ही है : कादर
अहमद कादर ने कहा कि बैकलॉग जैसा था, आज भी उसी स्तर पर कायम है. सरकार कितना भी झूठ बोल ले, विदर्भवादी इससे संतुष्ट नहीं हो सकते, बल्कि इससे आक्रोश को और भड़काने का काम किया जाता है. हर वर्ष आंकड़ों के जरिए गुमराह करने की सरासर कोशिश की जाती है. इन आंकड़ों पर एक बार खुली बहस करने को भी सभी तैयार हैं, लेकिन सरकार सुनने को राजी नहीं है.