प्रोफेसर साईबाबा
प्रोफेसर साईबाबा

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नागपुर. उच्च न्यायालय द्वारा निर्दोष करार दिए गए जेएनयू के पूर्व प्राध्यापक जी.एन. साईबाबा गुरुवार को जेल से रिहा हो गए. मीडिया से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि पुलिस को मोहरा बनाकर मुझ पर माओवादी गतिविधि चलाने का झूठा आरोप लगाकर फंसाया गया. पुलिस द्वारा तैयार किए गए केस में न्यायालय को कोई तथ्य दिखाई नहीं दिए. 2 बार देश के उच्च अदालत ने मुझे निर्दोष बताया. गिरफ्तारी से अब तक 10 वर्ष मुझे जेल में कैद रखा गया.

मेरा करिअर, स्वास्थ्य और सामाजिक प्रतिष्ठा को बर्बाद कर दिया गया. उन्होंने सरकार से सवाल किया कि मेरे इन 10 वर्षों का हिसाब कौन देगा. उन्होंने बताया कि पूर्व न्यायाधीश सच्चर, पूर्व सांसद सुरेंद्र मोहन, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक रणधीर सिंह और पूर्व आईएएस अधिकारी बी.डी. शर्मा ने 10 वर्ष पहले आदिवासी, दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों पर होने वाले अन्याय के खिलाफ मुझसे आवाज उठाने का निवेदन किया था. उन्होंने कमजोर नागरिकों पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ दस्तावेज इकट्ठा कर मानवाधिकार संगठनों और सिविल सोसाइटी की मदद करने को कहा था. उस दौरान केंद्र सरकार ऑपरेशन ग्रीन हंट चला रही थी और सलवा जुडूम की गतिविधियां भी तेज थीं.

इस ऑपरेशन को ढाल बनाकर मुझे झूठे मामले में फंसा दिया गया. जिस समय मुझे जेल में डाला गया मैं पोलियो से ग्रस्त था. अब मुझे लीवर, हार्ट और पैनक्रियाज सहित कई बीमारियों ने घेर लिया है. मैं खुद उठ भी नहीं सकता. इन 10 वर्षों में मेरा सब कुछ छीन लिया गया. न करिअर बचा न ही स्वास्थ्य. मुझे अपने परिवार से भी दूर रखा गया. मेरी तरह ही अन्य 4 लोगों को भी इसी तरह फंसाया गया. नरोटे तो कभी अपने गांव से भी बाहर नहीं निकला था. मेरी कभी उससे मुलाकात नहीं हुई थी. फिर भी उसे आरोपी बनाकर जेल में डाल दिया गया. जेल में किसी भी प्रकार की उपचार सेवा नहीं दी गई.

केवल बुखार से नरोटे की मौत हुई, यह मानना मुश्किल है. कई बार डॉक्टरों ने मेरे स्वास्थ्य के बारे में प्रशासन को अवगत करवाया लेकिन ध्यान नहीं दिया गया. केस की सुनवाई के दौरान मुझ पर दबाव लाया गया और धमकाया गया. यहां तक कि मेरा केस लड़ने वाले वकील सुरेंद्र गडलिंग को भी माओवाद के मामले में फंसा दिया गया. मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं होने के कारण बरी कर दिया गया लेकिन निजी जीवन को जो नुकसान हुआ उसका हिसाब कौन देगा. सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पूर्व की सरकार की तुलना में अब पिछड़ों और आदिवासियों पर अन्याय ज्यादा बढ़ गया है.

भीमा कोरेगांव अर्बन नक्सल से ज्यादा राजनीतिक मुद्दा – प्रा. राही ने भाजपा पर लगाया आरोप

प्रा. साईबाबा के साथ इस मामले में उनके सहयोगी प्रशांत राही को भी आरोपी बनाया गया था. उच्च न्यायालय ने उन्हें भी मामले में निर्दोष बरी किया. मीडिया से चर्चा के दौरान राही ने कहा कि अर्बन नक्सलवाद का मुद्दा तो यूपीए सरकार लायी थी. ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाकर आदिवासियों पर अन्याय किया गया लेकिन वर्तमान सरकार ने इस मुद्दे को बड़ा बनाया. उन्होंने कहा कि भीमा कोरेगांव अर्बन नक्सलवाद का कम और राजनीतिक मुद्दा ज्यादा है. पिछले 7 वर्षों से राही अमरावती जेल में कैद थे.

न्यायालय के फैसले के बाद उन्हें भी जेल से रिहा किया गया. उन्होंने कहा कि अर्बन नक्सलवाद का मुद्दा केवल चुनाव तक सीमित नहीं है. इसमें सामाजिक और आर्थिक राजनीति पहलू भी है. उन्होंने कहा कि अमरावती जेल में आतंकी गतिविधियों में लिप्त कैदी भी थे. वे जेल प्रशासन की चापलूसी करते हैं. यदि कोई अच्छे विचार लेकर चर्चा करता है तो उस पर भी बाधा डालते हैं. जेल में मुझ पर कई बार सरकार के आगे झुकने के लिए दबाव बनाया गया. मारपीट की धमकी दी गई. आतंकी गतिविधियों के आरोप में अधिकांश कैदी आर्थर रोड जेल में बंद हैं. वहां की गतिविधि बिल्कुल अलग है.

उन्होंने कहा कि मैं प्रा. साईबाबा को पहले से जानता था लेकिन उनके कुछ विचारों से सहमत नहीं था. इसीलिए मैंने उनसे दूरी बना ली. वह केवल कुछ चुनिंदा लोगों के संपर्क में रहते थे. भले ही मतभेद हो लेकिन हमारा उद्देश्य मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने का था. गिरफ्तारी के पहले कभी गड़चिरोली गया ही नहीं था. हमें भले ही यूपीए के कार्यकाल में गिरफ्तार किया गया हो लेकिन शहरी माओवाद का मुद्दा देवेंद्र फडणवीस के गृह मंत्री बनने के बाद ही बड़ा हुआ. हमारे केस को आधार बनाकर कुछ लोगों को अर्बन नक्सलवाद के नाम पर गिरफ्तार किया गया.