Maharashtra government will soon bring a new textile policy, Aslam Shaikh said this about the development of powerloom sector
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भिवंडी: विश्व में कपड़े का मानचेस्टर मानी जाने वाली पावरलूम नगरी भयंकर मंदी (Recession) की वजह से घोर संकट में है। पावरलूम उद्योग (Powerloom Industry) में काफी वर्षों से छाई भयंकर मंदी की वजह से पावरलूम मालिक आर्थिक संकट (Economic Crisis) से थक हार कर पावरलूम मशीनों को भंगार में बेच रहे हैं। पावरलूम मशीनों के भंगार (Scrap) में बिकने से ऐसा प्रतीत होने लगा है कि आगामी वर्षों में भिवंडी शहर (Bhiwandi City) से पावरलूम उद्योग का नामोनिशान खत्म होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। पावरलूम उद्योग में छाई भयंकर मंदी की वजह से लाखों मजदूरों (Laborers) की रोजी-रोटी पर भी गंभीर संकट छाया हुआ है।

गौरतलब है कि पावरलूम नगरी भिवंडी में समूचे देश के कपड़ा उत्पादन का करीब 50 प्रतिशत से अधिक कपड़ा उत्पादन होता है। कृषि क्षेत्र के बाद पावरलूम उद्योग से ही देश के विभिन्न शहरों से आए हुए लाखों लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है। देश के विभिन्न प्रदेशों से परिजनों को लेकर भिवंडी में रह रहे तमाम पावरलूम मजदूर अपना जीवनयापन कर रहे हैं। 

यार्न की कालाबाजारी, बढ़ती बिजली दरों में वृद्धि से कपड़ा निर्माण की लागत बढ़ी

कपड़ा उद्योग से जुड़े संगठनों का आरोप है कि कपड़ा मंत्रालय की गलत नीतियों की वजह से विगत 10 वर्षों से पावरलूम उद्योग संकट के दौर से गुजर रहा है। यार्न की कालाबाजारी और निरंतर बढ़ती बिजली दरों में वृद्धि से कपड़ा निर्माण की लागत दुगुना हुई है। कपड़ा निर्माण की लागत बढ़ने के बावजूद कपड़ा उचित कीमत नहीं मिलने से पैसे की खातिर मजबूर होकर कम भाव में कपड़ा विक्री कर निरंतर घाटा उठाकर आर्थिक रूप से बर्बाद हो चुके हैं। पावरलूम उद्योग का आलम यह है कि कमाई अठन्नी और खर्चा रुपैया वाली कहावत कपड़ा उद्योग पर चरितार्थ हो रही है।

मजदूरों की भी मजदूरी में भी हुआ इजाफा

सूत्रों की मानें तो कपड़ा उद्योग से जुड़े मजदूरों की भी मजदूरी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है।कपड़ा निर्माण की मजदूरी बढ़ने का सीधा प्रभाव कपड़े की लागत पर पड़ने से कपड़ा महंगा हो जाता है बावजूद बाजार में कपड़ा कम भाव में बिकने से व्यापारियों को काफी घाटा उठाना पड़ता है। कपड़ा व्यवसाय से जुड़े तमाम संगठनों का कहना है कि कपड़ा मंत्रालय की गलत नीतियों की वजह से भिवंडी पावरलूम उद्योग सहित मालेगांव, इचलकरंजी, धुलिया आदि शहरों में लगे हुए पावरलूम कमोबेश बंद होकर भंगार में बिकना शुरू हो गए हैं।

सरकार का यार्न की कीमतों पर कोई अंकुश नहीं

विगत 10 वर्षों से पावरलूम उद्योग आर्थिक संकट से घिरा हुआ है। समूचे वर्ष में दो-तीन महीने ही पावरलूम के अच्छे दिन आते हैं, लेकिन फिर 8 माह मंदी के संकट से घिर जाते हैं। 4 महीने की कमाई से 8 माह का खर्च निकालना पावरलूम व्यापारियों के लिए बेहद कठिन हो गया है। सरकार द्वारा यार्न की कीमतों पर कोई अंकुश नहीं होने और बिजली दरों की अनाप-शनाप वृद्धि होने से कपड़े की लागत में भारी इजाफा होने के बाद भी लागत के हिसाब से उचित दाम में कपड़ा बिक्री नहीं होने से व्यापारियों को काफी नुकसान झेलना पड़ता है। विगत 10 वर्षों से हजारों की संख्या में कपड़ा उद्योग से जुड़े हुए व्यापारी दिवालिया हो गए और कई तो कर्जदार होकर शर्मिंदगी से बचने के लिए आत्महत्या जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देने में पीछे नहीं रहे।

पावरलूम मजदूरों की रोजी-रोटी पर संकट

पावरलूम संगठन से जुड़े कई लोगों ने बताया कि भिवंडी में करीब 4 लाख से अधिक पावर लूम मशीन थी। विगत 10 वर्षों में भयंकर मंदी की वजह से करीब 40 प्रतिशत पावरलूम मशीन कारखाना मालिकों ने आर्थिक संकट झेल कर भंगार में बेच दिया है। 40 प्रतिशत पावरलूम मशीनें भंगार में बिकने की वजह से मजदूरों का काफी हद तक रोजगार छिन गया है। पावरलूम उद्योग से जुड़े हजारों मजदूर रोजगार न होने से रोजी-रोटी की तलाश में अन्यत्र शहरों को पलायन कर चुके हैं। विगत 3 वर्ष पूर्व कोरोना संकटकाल के दौरान हुए लॉकडाउन के दौर में हजारों मजदूर गांव गए जो मंदी के कारण आज तक पावरलूम नगरी में वापस नहीं लौटे हैं।

पावरलूम उद्योग तबाही के कगार पर

पावरलूम उद्योग से जुड़े उद्योगपति श्रीराज सिंह, हाजी लाल मोहम्मद अंसारी, हारून अंसारी, मानिक सुल्तानिया, बसंत परमार,नरेश शर्मा आदि ने बताया कि पावरलूम उद्योग भारी संकट के दौर से गुजर रहा है। सरकार का कोई ध्यान पावरलूम उद्योग की कठिनाई के निस्तारण पर नहीं है। लाखों लोगों का रोजगार परक कपड़ा उद्योग कई वर्षों से व्याप्त भयंकर मंदी की चपेट से धीरे-धीरे बंद होने के कगार पर है। पावरलूम उद्योग की बेहतरी के लिए केंद्र और राज्य सरकार को यार्न की कीमतों को स्थिर, बिजली दरों की वृद्धि पर नियंत्रण और पावरलूम उद्योग को सब्सिडी देने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। पावरलूम मालिकों का कहना है कि सुदूर प्रांतों से आए लाखों मजदूरों को रोजगार देने वाले पावरलूम उद्योग पर सरकार को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। पावरलूम उद्योग से जुड़ी तमाम समस्याओं पर अगर केंद्र, राज्य सरकार द्वारा गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो आगामी कुछ वर्षों में ही पावरलूम नगरी से कपड़ा उद्योग का नामोनिशन मिटने की आशंका से कदापि इनकार नहीं किया जा सकता।