वर्धा. निरंतर दूसरे वर्ष भी पोले के त्योहार पर पाबंदियां लागू रहने के कारण किसानों में रोष व्याप्त था. शाम के समय बारिश ने भी दस्तक देने के कारण पोले के आयोजन पर संकट के बादल मंडरा रहे थे. परंतु बारिश थमते ही सरकारी पाबंदियों को ताक पर रखते हुए ग्रामीण क्षेत्र में धूमधाम से बैल पोला मनाया गया. वर्षभर खेतों में मेहनत करने वाले बैलों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिये प्रति वर्ष पोला मनाया जाता है.
बैलों का श्रृंगार करके उन्हें ढोल ताशे के साथ गांव के मैदान पर लाया जाता है. इसके बाद मखर के बैल की पूजा करने के बाद उसके सिंग पर मशाल जलाई जाती है. तत्पश्चात सभी किसानों की बैल जोड़ियां घर आती है. वहां बैल जोड़ी की पूजा की जाती है. पोले के दिन गांवों में अलग ही माहौल होता है. सभी इस दिन की बेसब्री के साथ इंतजार करते है, परंतु बीते दो वर्ष से कोरोना के कारण पोले के त्योहार पर ग्रहण लग गया है.
परंपरा का किया गया निर्वहन
इस बार त्योहार पर पाबंदियां नहीं रहने की संभावना थी. किंतु प्रशासन ने पोला न मनाते हुए घर पर ही पूजा करने के निर्देश दिये थे. परंतु किसानों ने बरसों से चली आ रही परंपरा को कायम रखते हुए कोरोना के संदर्भ में जागरूकता रखते हुए पोला उत्साह से मनाया. शाम के समय बारिश आने के कारण कुछ बाधा निर्माण हुई थी, लेकिन बारिश थमते ही किसान अपनी बैल जोड़ियां लेकर पोले में गये.