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    वर्धा. राष्ट्रीय जलविज्ञान प्रकल्प के अंतर्गत एवं भूसवियं, पुणे के आयुक्त की संकल्पना से आठ तहसीलों के प्रत्येकी एक गांव में जलधर चट्टानों का निरीक्षण किया गया़ उपरोक्त मुहिम 8 से 30 अप्रैल तक चली़ जल यह मानवी जीवन में अहम घटक है़ पृथ्वीतल पर भूशास्त्रीय जल व भूजल के माध्यम से मनुष्य के लिए उपलब्ध पर्जन्यमान यह एकमात्रा स्त्रोत है. कृषि, औद्योगिक तथा पेयजल के लिए हम भूजल पर निर्भर होते है.

    फलस्वरुप इसका उचित निरीक्षण व जांच के लिए यह मुहिम संबंधित विभाग ने जिले में चलायी़ भू-जल का प्रबंधन करने के लिए भूजलधारक चट्टानों की वैज्ञानिक जानकारी होना जरूरी है़ भूजल प्रबंधन के लिए भूजल का मूल्यांकन, भूजल पुर्नभरण, भूजल का उपयोग आदि का शास्त्रशुध्द अभ्यास करने के लिए भूजलधारक चट्टानों की क्षमता जांचना जरूरी है.  

    हर तहसील के 1 गांव का समावेश

    इसके लिए जिले के वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक राजेश सावले के मार्गदर्शन में कनिष्ठ भू-वैज्ञानिक शिल्पा जनक, शैलेश चव्हाण ने काम संभाला़  इस परीक्षण में जिले के प्रत्येक तहसील में एक गांव के खेत स्थित कुएं का चयन किया गया़ कुएं में स्थित पम्प के जरिए पानी का दोहन किया गया़  इस दौरान समय समय पर पानी का पंजीयन किया गया़ यह कुआं कितने समय में सूखता हैं, कुएं में कितने समय बाद पानी आता हैं, इन सभी बातों का बारिकी से पंजीयन किया गया़  इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर कुओं की आवक व वाहक क्षमता का निरीक्षण किया गया. 

    किसानों को मिलेगा लाभ

    उपरोक्त पध्दति का क्षेत्र के किसानों को भी लाभ पहुंचेगा़  इस प्रणाली के जरिए क्षेत्र में किस प्रकार की फसल ली जा सकती है, यह बात किसानों को पता चलेंगी़  उनकी उपज बढ़ेगी़  पुर्नभरण के कार्य करने पर पानी का संचय बढ़ेगा.