मारेगांव: होली त्योहार पर हर कोई रंग गुलाल पिचकारी से एक दूसरे को रंग देता है. वहीं दूसरी ओर मारेगांव तहसील के बोरी गदाजी गांव में होली पर एक दूसरे पर पथराव कर खून की होली खेली जाती है. यहां पर मेले का भी आयोजन होता है. परंपरा के अनुसार पत्थर की होली मनाई जाती है. लोग एक-दूसरे पर पत्थर फेंक कर लहूलुहान होने तक पथराव करते हैं. इस गांव में एक-दूसरे पर मेले में सभी जाति धर्म पथराव कर होली का के लोग न केवल त्योहार मनाया जाता हैं.
50 वर्षों से चली आ रही परंपरा
लगभग 50 साल पहले गदाजी महाराज का अधिवास हुआ करता था. उनके भक्त उनके प्रति श्रद्धा और आस्था प्रकट करने के उद्देश्य से होली पर रंग खेलने की बजाए 50 वर्षों से पथराव की परम्परा का निर्वहन करते आ रहे हैं. पत्थरबाजी के इस अदभुत नजारे को देखने राज्य के कोने-कोने से लोगों का जमवाड़ा लगता है. करीब 50 वर्ष पहले गदाजी महाराज घोड़े पर सवार होकर आए थे.
उन्हें देखने के लिए गांव के नागरिकों तथा बच्चों का हूजुम उमड़ पड़ा था. महाराज ने एक पत्थर मारा. जिससे एक बालक की मौत हो गई. देख नागरिक भड़क उठे. महाराज को बांधकर रख दिया. महाराज ने कहा मैं जैसा कहता हूं वैसा करो बालक जिंदा हो जाएगा नागरिकों ने वैसा ही किया. होली की राख लगाते ही बालक जिंदा हो गया तभी से यहां पर पथराव की परम्परा आरंभ हो गई,
निकाली जाती है शवयात्रा
रंगपंचमी के दिन सुबह एक मटके में धुनी लेकर गांव में किसी की शवयात्रा प्रतीक के तौर पर निकाली जाती है. इसके बाद भक्त स्नान करते हैं. महाराज के मंदिर के समीप स्थित ऊंचे कीले पर चढ़कर 2-3 लोग नीचे पथराव करते हैं. जवाब में नीचे इकट्ठा लोग भी पथराव करते हैं. यह सिलसिला तब तक जारी रहता है जब तक कोई घायल नहीं हो जाता.
इसके बाद लहूलुहान हो चुके व्यक्ति को फिर से मंदिर में ले जाया जाता है. इसके सारे शरीर पर विभूति लगायी जाती है. 2-3 घंटे के बाद उक्त व्यक्ति को होश आ जाता है. बरसों से चली आ रही परम्परा कुछ मध्यप्रदेश के पांढुर्णा में होनेवाले गोटमार मेले की याद दिलाती है. इससे पहले इस परम्परा को प्रशासकीय स्तर पर बंद करने के प्रयास कई बार किए गए, किंतु किसी न किसी अनहोनी के कारण गांववासी इसे बंद नहीं कर पाए. राज्य में संभवत: यह पहला ऐसा गांव है जहां पर होली के दिन पत्थरबाजी मेले का आयोजन होता है.
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