- गुरु गोबिन्द सिंह जी के साहिबजादों ने मौत को चुना, लेकिन इस्लाम कुबुल नहीं किया
- वीर बाल दिवस पर पक्की संगत गुरुद्वारा में मंत्री नन्दी ने किया नमन
उत्तर प्रदेश सरकार के औद्योगिक विकास मंत्री नन्द गोपाल गुप्ता नन्दी (Nand Gopal gupta Nandi) ने आज सिख पंथ के संस्थापक दशमेश पिता गुरु गोबिन्द सिंह जी के साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह व फतेह सिंह जी के बलिदान दिवस वीर बाल दिवस पर पक्की संगत गुरुद्वारा (Pakki Sangat Gurudwara) साहिब तप स्थल अहियापुर प्रयागराज में नमन किया। वहीं गुरु ग्रंथ साहिब जी के समक्ष मत्था टेका। मंत्री नन्दी ने संगत कीर्तन, प्रदर्शनी एवं लंगर में सम्मिलित होते हुए सर्व संगत के कल्याण की प्रार्थना की।
बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में मंत्री नन्दी ने कहा कि पक्की संगत गुरुद्वारा साहिब तप स्थल अहियापुर वही पवित्र स्थान है, जहां पर गुरू तेग बहादुर जी ने छह माह नौ दिन तप किया। सिख समाज के बलिदान और पराक्रम का गौरवशाली इतिहास है। जब धर्म और राष्ट्र पर आंच आई है, तब सिख धर्म के गुरूओं ने न सिर्फ समाज को एकजुट किया है, बल्कि अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर अपना बलिदान दिया है। आज का यह इस बात का जीता जागता सबूत है। 26 दिसम्बर का दिन गौरव का दिन है।
आज ही के दिन खालसा पंथ के संस्थापक गुरू गोविन्द सिंह जी के दो पुत्रों को मुगलों की कू्ररता का सामना करते हुए अपने प्राण गंवाने पड़े थे। साहबजादे जोरावर सिंह केवल नौ वर्ष और साहबजादे फतेह सिंह सात वर्ष के थे, फिर भी वे जरा भी भयभीत और विचलित नहीं हुए। उन्हें जिन्दा दीवार में चुनवा दिया गया। इसके बाद भी उन्होंने घुटने नहीं टेके। इस्लाम कुबूल नहीं किया। गुरू गोविन्द सिंह जी की वीरता और साहस के बारे में कहा जाता है कि सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊं, तबे गोबिन्द सिंह नाम कहाऊं।
गुरू गोबिन्द सिंह जी के पुत्रों ने उनकी वीरता, पराक्रम और परम्परा को आगे बढ़ाया, छोटी उम्र में भी शत्रुओं के सामने समर्पण नहीं किया और मौत को गले नहीं लगाया। धन्य हैं वो वीर जिनके हम वंशज हैं, गर्व है ऐसे जाबाज हमारे पुरखों पर जिनके हम वंशज के रूप में आज हम उन्हें नमन कर रहे हैं। सेवा शौर्य सिख समाज की पहचान है।