नीतीश कुमार के पाला बदलने से बिहार में ‘मंडल बनाम कमंडल’ राजनीति तेज होगी: राजनीतिक विश्लेषक

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    नई दिल्ली: बिहार में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का साथ छोड़कर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के बुधवार को ‘महागठबंधन 2.0′ सरकार बनाने के बीच राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस राज्य में ‘मंडल बनाम कमंडल’ राजनीति तेज होगी। 

    ‘मंडल-कमंडल’ शब्दावली 90 के दशक के मध्य में हिन्दी पट्टी के दो प्रमुख राज्यों बिहार और उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में सुर्खियों में रही थी जहां क्षेत्रीय दलों की जाति आधारित राजनीति और भाजपा की हिन्दुत्व विचारधारा के बीच मुकाबला था।  ‘मंडल’ शब्दावली का उपयोग ऐसी राजनीति के परिप्रेक्ष्य में किया जाता है जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अनुसूचित जाति के इर्द गिर्द घूमती है।

    मूल रूप से इसकी उत्पत्ति मंडल आयोग से होती है जिसका गठन 1979 में तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गो की पहचान के लिये किया था।  वहीं, ‘कमंडल’ का संदर्भ हिन्दुत्व की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में दिया जाता है जिसकी उत्पत्ति ऋषि-मुनियों द्वारा उपयोग किये जाने वाले पात्र से होती है।  बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने कहा कि भाजपा का रथ हमेशा बिहार में ही रूका है।

    उन्होंने कहा कि राज्य के लोग बौद्धिक एवं राजनीतिक रूप से जागरूक हैं और वे समझते हैं कि शासन में साम्प्रदायिक ताकतें सक्षम नहीं हो सकती है क्योंकि विकास से उनका कोई लेना-देना नहीं होता है। उन्होंने दावा किया कि बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम का राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है और क्षेत्रीय दल का प्रभाव बना रहेगा। जावेद ने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा, ‘‘ स्वतंत्रता आंदोलन के समय चंपारण से आंदोलन को गति मिली थी, भारत छोड़ो आंदोलन में भी प्रदेश के लोगों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। बिहार ने हमेशा देश को दिशा दिखाई है।” 

    उन्होंने क्षेत्रीय दलों को लेकर सुर्खियों में आए भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के बयान का भी उल्लेख किया और कहा कि क्षेत्रीय दल यहां बने रहेंगे।  वहीं, राजनीतिक विश्लेषक एवं ‘सेंटर फॉर स्टडी आफ डेवेलपमेंट सोसाइटीज’ के प्रो. संजय कुमार ने कहा कि बिहार में आने वाले समय में ‘मंडल बनाम कमंडल’ राजनीति तेज होगी।  उन्होंने हालांकि कहा कि महागठबंधन के लिये बेहतर होगा कि वह ‘मंडल’ या अपने सामाजिक गठबंधन के कार्ड का 2024 के लोकसभा चुनाव में इस्तेमाल नहीं करे। 

    कुमार ने कहा, ‘‘ इसमें धूरी मोदी समर्थन और मोदी विरोध हो और महागठबंधन के घटकों को अन्य पिछड़ा वर्ग को एकजुट करने का प्रयास करना चाहिए। यह मंडल 2.0 होगा। यह मंडल 1.0 से अलग होगा।” यह पूछे जाने पर कि बिहार के घटनाक्रम का क्या यह भी संदेश है कि क्षेत्रीय दल बने रहेंगे और बिहार में भाजपा के लिये उत्तर प्रदेश जैसी स्थिति नहीं होगी, कुमार ने कहा कि इसका जवाब 2024 के परिणाम से ही स्पष्ट होगा।

    उन्होंने कहा कि लेकिन अभी क्षेत्रीय दलों ने मजबूत संदेश दिया है कि जो कुछ महाराष्ट्र में हुआ, वैसा बिहार में नहीं हो सकता।  जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रो. मनिन्द्र नाथ ठाकुर ने कहा कि इस घटनाक्रम के बाद ‘मंडल बनाम कमंडल’ राजनीति तेज होगी। उन्होंने कहा, ‘‘ निश्चित तौर पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (यूनाइटेड) इस मुद्दे पर जोर देंगे। मंडल उनके लिये काफी महत्वपूर्ण है।”

    ठाकुर ने कहा कि हालांकि 10-15 वर्षो में चीजें काफी बदल गई हैं और भाजपा ने अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित समुदाय में अपनी पैंठ बनायी है, ऐसे में राजद और जदयू के लिये स्थिति उतनी आसान नहीं होगी।  उन्होंने कहा कि बिहार के घटनाक्रम से स्पष्ट है कि क्षेत्रीय दल बने रहेंगे और भाजपा को भी यह सिखना चाहिए कि चुनाव पूर्व गठबंधन के सहयोगियों को नजरंदाज करना अच्छा विचार नहीं है। 

    वहीं, राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने कहा, ‘‘अगर यह गठबंधन तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचता है तब बिहार की बागडोर तेजस्वी यादव संभाल सकते हैं और नीतीश कुमार 2024 में राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की पसंद बन सकते हैं। ” किदवई ने कहा कि जाति आधारित राजनीति न केवल बिहार में आगे बढ़ेगी बल्कि दूसरे स्थानों पर भी इसका उभार देखा जा सकता है।(एजेंसी)