अब बेड़ियों में कैद नहीं है महिलाएं, समाज सुधारक के रूप में लहरा रही हैं परचम

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    एक समय था जब लोग महिलाओं के लिए बेहद संकुचित विचार रखा करते थे और उन्हें अपने से हमेशा कमतर ही समझा करते थे। अब वह समय इतिहास के पन्नों पर लिपटी धूल में सिमटकर रह गया है जब देश की महिलाएँ समाज और घर-परिवार रूपी बेड़ियों में कैद रहा करती थीं, और यहाँ तक कि खुद के पैरों पर खड़े होने की उनकी चाह घर की चौखट पर ही दम तोड़ दिया करती थी। समय का पहिए घूमने के साथ ही अब महिलाओं को वह एहमियत और तवज्जो मिलने लगी है, जिसकी वह अरसों से हकदार हैं। 

    तमाम जंजीरों को तोड़कर आसमान में ऊँची उड़ान भरकर महिलाओं ने दिखा दिया है कि वह किसी से कमतर नहीं हैं, और ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिसमें वह मिसाल कायम करने में अक्षम हैं। देश में सुचारु रूप से चलाए जा रहे अभियान ‘आत्मनिर्भर भारत’ की महिला भी आज आत्मनिर्भर है। सशक्तता की हर दिन नई परिभाषा गढ़ने वाली देश की महिलाएं अब खुद के पैरों पर खड़ी हैं। इस प्रकार, महिला दिवस के स्वागत के रूप में बुलंदी छूती कुछ महिलाओं ने स्वदेशी तथा बहुभाषी सोशल मीडिया मंच, कू ऐप के माध्यम से इस बात को स्वीकारा है कि हाँ, वे सशक्त हैं, वे आत्मनिर्भर हैं: 

    सूरत से केंद्रीय रेल और कपड़ा राज्य मंत्री तथा संसद सदस्य, दर्शना जरदोष अपने दम पर अपने पैरों पर खड़ी हैं। हाल ही में उन्होंने अपना कर्तव्य निर्वाहन करते हुए नई दिल्ली से यूक्रेन से आने वाले बच्चों का स्वागत किया तथा उन्हें दिलासा दी। इसके साथ ही उन्होंने मोदी जी को धन्यवाद देते हुए कहा है:

    177 भारतीय छात्रों का एक समूह आज सुबह यूक्रेन से बुडापेस्ट, हंगरी होते हुए एक विशेष उड़ान से नई दिल्ली पहुँचा।

    हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में #OperationGanga यह सुनिश्चित करना जारी रखे हुए है कि “कोई भी भारतीय पीछे न रहे!”