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    -राजेश मिश्र

    लखनऊ: पिछले कई चुनावों से भाजपा (BJP) के लिए भारी जीत (Win) की बुनियाद तैयार करता रहा पश्चिम के जिलों का पहला चरण (First Phase Election) इस बार परेशानी का सबब बना है। पश्चिम से उठने वाली समर्थन की बयार ही धीरे-धीरे पूरे प्रदेश में भाजपा की जीत का रास्ता तैयार करती रही है। हालांकि इस बार भाजपा को पश्चिम में ही सबसे ज्यादा परेशानी देखने को मिल रही है।

    पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट वोटों की नाराजगी बीजेपी के लिए चिंता का सबब बनी हुई है और सपा-आरएलडी गठबंधन के सियासी समीकरण ने मुश्किल में डाल दिया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर सीएम योगी तक मुजफ्फरनगर दंगे में उत्पीड़न की याद दिलाकर जाटों की नाराजगी दूर कर उन्हें साधने की कवायद में जुटे हैं। प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी से लेकर भाजपा के सभी बड़े नेताओं की फौज पश्चिम के हरे भरे मैदानों को मथ रही है और जीत की खुश्बू तलाश रही है।

     कैराना पलायन के मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे बीजेपी के नेता

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के शुरुआत दो चरणों को वोटिंग जाटलैंड कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हो रही है। ऐसे में पश्चिमी यूपी में जैसे-जैसे चुनाव के दिन करीब आ रहा है, वैसे-वैसे सियासी तपिश भी बढ़ती जा रही है और ध्रुवीकरण की कवायद तेज हो गई है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर सीएम योगी सहित तमाम बीजेपी के दिग्गज नेता मुजफ्फरनगर दंगे के जख्मों को फिर से कुरेदना शुरू कर दिया है तो साथ ही कैराना पलायन के मुद्दा को भी जोर-शोर से उठा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर पश्चिमी यूपी में बीजेपी क्यों मुजफ्फरनगर दंगों में हुए उत्पीड़न को याद दिला रही है? 

    10 फरवरी को 11 जिलों की 58 सीटों पर मतदान 

    यूपी के चुनाव की शुरुआत पश्चिमी यूपी से होनी है। पहले चरण में 10 फरवरी को 11 जिलों की 58 सीटों पर मतदान होना है तो दूसरे चरण में 14 फरवरी को 9 जिलों  55 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा। इस तरह पहले सूबे में दोनों चरणों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्‍यादातर इलाकों में चुनाव होंगे, जहां जाट और मुसलमान मिलकर वोट कर देते हैं तो बड़े बड़े सियासी समीकरण भी फेल हो सकते हैं। शायद यही कारण है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सियासी समीकरण को साधने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जब मुजफ्फरनगर पहुंचे तो उन्होंने याद दिलाया कि अखिलेश सरकार में कैसे दंगे हुए थे या कैराना से लोगों को पलायन करना पड़ा था। योगी तो एक दम आगे बढ़कर 10 मार्च को नतीजे आने के बाद कुछ लोगों की गर्मी शांत करने की बात तक कर जाते हैं।

    जयंत चौधरी पर बीजेपी नेताओं के हमले तेज 

    भाजपा के लिए दरअसल असली चिंता का सबब जाट वोटों की नाराजगी और उनका काफी हद एक बार फिर से रालोद अध्यक्ष जयंत के पाले में खड़ा हो जाना है। जयंत और सपा का साथ भी भाजपा को खासा साल रहा है। भाजपा ने काफी कवायद जयंत से समझौते के लिए भी की थी पर बात बनी नहीं थी। भाजपा से चुनावी गठबंधन को ठुकराने के बाद राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के अध्यक्ष जयंत चौधरी पर बीजेपी नेताओं के हमले तेज हो गए हैं। बीजेपी नेता बार-बार ऐसे बयान दे रहे हैं, जिससे जयंत चौधरी की साख पर चोट की जा सके। हालांकि जयंत चौधरी भी डटकर जवाब दे रहे हैं, लेकिन बीजेपी नेता उन्हें एक रणनीति के तहत बार-बार घेर रहे हैं। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा के घर पश्चिमी यूपी के जाटों की पंचायत बुलाई थी। उस पंचायत में भी अमित शाह ने जयंत चौधरी का जिक्र किया। उसके बाद प्रवेश वर्मा ने कहा कि जयंत के लिए बीजेपी के दरवाजे हमेशा खुले हैं, लेकिन जयंत चौधरी ने कहा था कि वो चवन्नी नहीं हैं जो पलट जाएंगे। 

     जाट बहुल गांवों में बीजेपी प्रत्याशियों का विरोध

    जयंत चौधरी पर अब ताजा हमला केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने किया है। जयंत चौधरी के बयान से साफ है कि बीजेपी जयंत चौधरी को लेकर काफी बौखलाहट में है क्योंकि जयंत के सपा से हाथ मिलाने के बाद जाटों में बीजेपी का असर कम हो गया है। जाट बहुल गांवों में बीजेपी प्रत्याशियों का विरोध यही बता रहा है। अभी सरधना विधानसभा के दौराला गांव में जिस तरह बीजेपी प्रत्याशी संगीत सोम का विरोध हुआ, उससे रालोद-सपा गठबंधन की मजबूती का पता चलता है।

    सपा-रालोद का है गठबंधन

    पश्चिम यूपी में राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) और समाजवादी पार्टी (सपा-रालोद गठबंधन) एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा बार बार जयंत को अपने साथ की याद दिला कर जाट मतदाताओं में भ्रम की स्थिति भी पैदा करना चाहती है। एक साथ मुस्लिमों का खौफ याद दिलाकर और रालोद से अपने पुराने रिश्तों व भविष्य में फिर से साथ आने की बातें कर इस भ्रम में पश्चिम के जिताऊ गठजोड़ को तोड़ना भाजपा की पहली मंशा है। हालांकि जमीनी तस्वीर तो अभी भाजपा को अपनी कोशिशों के परवान चढ़ते नहीं दिखा रही है। बड़े नेताओं के चेहरे पर दिख रही परेशानी इसका साफ संकेत है।