Gyanvapi case
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प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले (Gyanvapi Case) में वाराणसी के जिला जज का आदेश शुक्रवार को दरकिनार करते हुए आधुनिक पद्धति के आधार पर कथित शिवलिंग का काल निर्धारित करने की प्रक्रिया आगे बढ़ाने का आदेश दिया।

न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्रा ने वाराणसी के जिला जज द्वारा 14 अक्टूबर, 2022 को पारित आदेश को चुनौती देने वाली एक पुनरीक्षण याचिका पर यह आदेश पारित किया। आदेश में कहा गया है कि एसआई को कथित शिवलिंग को नुकसान पहुंचाए बिना साइंटिफिक सर्वे करना होगा। साइंटिफिक सर्वे के जरिए यह पता लगाना होगा कि कथित शिवलिंग कितना पुराना है। यह वास्तव में शिवलिंग है या कुछ और।

इस मामले की सुनवाई जस्टिस अरविंद कुमार मिश्र की सिंगल बेंच में हुई है। अदालत द्वारा यह फैसला कथित शिवलिंग का साइंटिफिक सर्वे कार्बन डेटिंग के जरिए कराए जाने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर आया है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने कल ही सील बंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट कोर्ट को पेश की थी। हिंदू पक्ष की महिलाओं की तरफ से दाखिल की गई याचिका में वाराणसी के जिला जज के आदेश को चुनौती दी गई थी। 

 उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि शिवलिंग को क्षति पहुंचाए बगैर आधुनिक पद्धति के आधार पर काल निर्धारण की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाए  अदालत ने इस संबंध में विभिन्न संस्थानों से रिपोर्ट भी मांगी थी। आईआईटी रुड़की द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि शिवलिंग की प्रत्यक्ष कार्बन डेटिंग संभव नहीं है और काल का निर्धारण सामग्री की प्रॉक्सी डेटिंग के साथ किया जा सकता है। इसके लिए शिवलिंग के आसपास की सामग्रियों का विस्तृत अध्ययन आवश्यक है।

इस रिपोर्ट में आगे सुझाव दिया गया है कि सतह के नीचे कुछ जैविक सामग्रियों की डेटिंग से काल का निर्धारण किया जा सकता है, लेकिन उन जैविक सामग्रियों का शिवलिंग से संबंधित होना आवश्यक है।  अदालत ने वाराणसी के जिला जज को कथित शिवलिंग की वैज्ञानिक जांच कराने के हिंदू भक्तों के आवेदन पर कानून के मुताबिक कार्यवाही करने का निर्देश दिया। अदालत के इस निर्देश के साथ उस ढांचे की कार्बन डेटिंग और वैज्ञानिक ढंग से काल निर्धारण का रास्ता साफ हो गया।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अपने 52 पेज की रिपोर्ट में विशेषज्ञ मत दिया है कि उस ढांचे का वैज्ञानिक पद्धति से किसी तरह की क्षति पहुंचाए बगैर काल निर्धारण किया जा सकता है। यह मत आईआईटी कानपुर, आईआईटी रुड़की, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट लखनऊ और एक अन्य शैक्षणिक संस्थान द्वारा किए गए अध्ययनों पर आधारित है। (भाषा इनपुट के साथ)