Hunar-Haat
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राजधानी लखनऊ में चल रहे हुनर हाट में खादी महोत्सव में बिकी 470 लाख रूपये की खादी।

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    – राजेश मिश्र    

    लखनऊ: आजादी के पहले से जिस राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की पहचान खादी के कपड़े बनाने के लिए सूत कटाई से जोड़कर देखी जाती थी उसी खादी को अपनी पहचान बचाने के लिए स्वतंत्र भारत के आधुनिक उद्योगों के चंगुल में फंस कर तड़प जाना पडा। आलम यह रहा कि सरकारी विभागों में भी खादी एवं ग्रामोउद्योग (Khadi and Village Industries) जैसे विभागों को हाशिये पर रखा गया और यहाँ तैनात अफसर अपने आप को उपेक्षित महसूस करते रहे।

    लेकिन, वर्तमान की उत्तर प्रदेश (Uttar Padesh) की योगी सरकार (Yogi Government) के प्रयासों और अपर मुख्य सचिव खादी नवनीत सहगल (Navneet Sehgal) की मेहनत ने सूबे के खादी उद्योग (Khadi Industries) में नई जान फूंकने का रास्ता तैयार कर दिया। उन्नाव के ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर सीधे बुनकरों के साथ संवाद स्थापित करने का जोखिम उठाने वाले फैशन डिज़ाइनर मनीष मल्होत्रा। रीना ढाका जैसी नामी गिरामी हस्तियां भी नवनीत सहगल से मिलकर उनके विचारों और दूरदर्शिता की कायल हो गयी। और अभी राजधानी लखनऊ के अवध शिल्पग्राम में 23 जनवरी से 7 फरवरी 2021 तक आयोजित हुनर हाट में भी खादी के उत्पादों ने शानदार बिक्री किया।

    वर्तमान में अपर मुख्य सचिव सूचना नवनीत सहगल को योगी सरकार ने शुरुआत में खादी एवं ग्रामोउद्योग विभाग की जिम्मेदारी दिया। और नवान्वेशन और मौलिक विचारों के धनी सहगल ने अपने आइडिया को धरातल पर उतारने के लिए विभाग की कार्य प्रणाली को शुरू से अंत तक परखना शुरू किया। और उसके बाद जब अपनी नीतियों को मूर्तरूप देकर धरातल पर उतारा तो प्रदेश के खादी उद्योग की सूरत बदलनी शुरू हो गयी। इस बदलाव का असर इतना तीव्र था कि आधुनिक फैशन के नामी गिरामी डिज़ाइनर रितु बेरी। पद्मश्री रुना बनर्जी। डिजाइनर रीना ढाका। मनीष त्रिपाठी और शहर की नामी फैशन डिज़ाइनर अस्मां हुसैन ने उत्तर प्रदेश के खादी उद्योग से जुड़ने के मोहपाश से अपने को मुक्त नहीं रख पाए।

    हुनर हाट में खादी उत्पादों की बिक्री में शानदार इजाफा 

    राजधानी लखनऊ के अवध शिल्पग्राम में 23 जनवरी से 7 फरवरी 2021 तक आयोजित हुनर हाट में MSME के साथ ही खादी का भी जलवा रहा और लोग काफी संख्या में बढ़ चढ़ कर ख़रीददारी भी किये। हुनर हाट में आयोजित खादी महोत्सव में 470 लाख रूपये के खादी ग्रामो उद्योग के उत्पादों की बिक्री हुई। महोत्सव में सबसे अधिक बिक्री करने वाले तीन-तीन खादी एवं ग्रामो उद्योग इकाईयों को अंगवस्त्र एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। सहगल के अनुसार महोत्सव में स्वराज्य आश्रम कानपुर। श्री आश्रम लखनऊ तथा ग्राम सेवा संस्थान फतेहपुर ने सर्वाधिक बिक्री किया है।

    खादी में मिलने वाली छूट लगी लगाम, छूट का सिस्टम भी बदला

    इस विभाग में अपने शुरूआती दिनों को याद करते हुए सहगल बताते हैं कि खादी हमारी स्वदेशी आन्दोलन का एक हिस्सा रहा है और आज भी खादी से लाखों  लोगों की रोजो रोटी जुडी हुई है। सहगल का कहना है कि खाली बैठना मेरी आदत नहीं है जहां रहे वहां अगर आपने कुछ एड नहीं किया तो समझो आपने कुछ किया नहीं और आपने उस समय को व्यर्थ कर दिया। उनका कहना है कि खादी में जो सबसे बड़ा मामला रिबेट का था। 

    लोग आते थे और रिबेट लेकर चले जाते थे। वो कैसे क्या करते थे मुझे नहीं मालूम लेकिन साल का 20 करोड़ रूपये इसी तरह का बंट जाता था और उसका पता नहीं चलता था। खादी में छूट को लेकर सहगल बताते हैं कि खादी की संस्थाएं साल भर कोई बिल नहीं बनाती थीं और डिस्काउंट के नाम पर प्रोडक्ट को देती रहती थीं। इसके बाद जब 50 दिन खादी में छूट के लिए एनाउंस होते थे वे अपनी सारी बिक्री उसी दिनों की दिखाते थे।

    बिक्री के साथ ही खादी के प्रोडक्शन पर किया फोकस

    मैंने देखा कि बिक्री तो दिखा रहे थे लेकिन प्रोडक्शन तो कोई कर नहीं रहा था। मुझे हैरानी हुई और मैंने एक संस्था को पकड़ा कि तुम्हारी बैलेंस सीट में प्रोडक्शन तो आ नहीं रही है केवल खरीदा और बेचा दिखाया है फिर काहे की खादी संस्था। प्रदेश में अगर खादी नहीं बन रही है आप दिखा रहे हो कि खादी बिहार से खरीदी। बंगाल से खरीदी बंगलादेश से खरीदी और लाकर बेच दिया। मैं तो ऐसा नहीं करुंगा। मैं गुजरात। महाराष्ट्र गया और उनका सिस्टम अध्ययन किया। उसके बाद हमने जो पहले दस % का रिबेट था उसको बढाकर 15 % कर दिया लेकिन उसका सिस्टम चेंज कर दिया। अब जो सब्सिडी हम लोग देते हैं वह प्रोडक्शन पर है।

    अब अगर आप खादी बनायेंगे तो पैसा मिलेगा। 5 % खादी बनाने वाले को और 5% बेचने वाले को और 5 % सीधे बुनकर के खाते में ट्रांसफर करने की व्यवस्था किया। अब हम लगभग एक से डेढ़ लाख बुनकरों के खाते में सीधे पैसा भेजते हैं क्योंकि छूट का उनका एक तिहाई निकलता है। इससे क्या हुआ कि यह सब फर्जिगीरी बंद हो गयी कि इधर से खरीदा उधर को बेचा और यहाँ आकर रिबेट ले लिया। जिससे लोगों में यह उत्साह हुआ कि यदि अब हम प्रोडक्शन करेंगे तो रिबेट मिलेगी नहीं तो रिबेट नहीं मिलेगी। जिससे खादी का उत्पादन अब धीरे धीरे बढ़ रहा है।

    परंपरागत बुनकरों की आय बढाने बांटे सोलर चरखे

    सहगल बताते हैं कि जो हमारे खादी के परंपरागत कारीगर थे। वह नरेगा आने के बाद अपना यह काम बंद कर नरेगा में चले गये। क्योंकि वहां मजदूरी दो सौ से ढाई सौ तक थी और खादी का कारीगर दिनभर चरखा चलाकर करीब 80 रूपये ही  पैदा कर पाता था। अब उन कारीगरों को खादी से कैसे जोडे रखा जाय इसका टास्क था नहीं तो यदि सब शिफ्ट कर जायेंगे तो खादी बनाने वाला बचेगा ही नहीं।

    फिर इसके लिए उन्होंने सोलर चरखा शुरू किया। सोलर चरखा को लेकर उत्तर प्रदेश एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने सोलर चरखा को आज भी खादी के डिफिनेशन में रखा है जबकि भारत सरकार में सोलर चरखा की पहचान अभी भी सोलर चरखा के ही रूप में है। इसके बाद लोगों ने सोलर चरखा का इस्तेमाल शुरू किया। हमने सरकार की तरफ से फ्री में  भी सोलर चरखा वितरित करना शुरू किया और लोगों को प्रोडक्शन हाउस से जोड़ना शुरू किया। बुनकरों को प्रोडक्शन सेंटर के साथ जोड़ा। इससे उनकी पुनः खादी की तरफ वापसी हुई।  

    बेसिक शिक्षा विभाग में बांटे जाने वाले स्कूली ड्रेस में भी खादी जोड़ी

    सहगल बताते हैं कि इसके बाद फिर इसकी बिक्री को बढाने के लिए हमने लड़ाई लड़ी बेसिक शिक्षा विभाग में क्योंकि बेसिक शिक्षा विभाग बच्चों को ड्रेस वितरित करता है। उनका कहना है कि पहले ये क्या करते थे कि भिवंडी से कोई आता था और सस्ते दर पर मामूली कपड़े का ड्रेस बनाकर दे जाता था। बच्चों को इतना घटिया कपड़ा मिलता था। वह कपड़ा पापलीन। पोलिपाप्लीन का होता था और यह इतना सस्ता होता था कि इतना सस्ता केवल प्लास्टिक ही हो सकता था। ऐसे में अब मेरे सामने एक चैलेंज आया कि आप 300 रूपये में बच्चों का ड्रेस कैसे बना सकते हैं।

    खादी वालों ने तो हाथ खड़ा कर दिया। तब मैंने कहा कि जब मैं 15 % सब्सिडी दे रहा हूँ तो सोलर चरखे से तो तीन सौ में बना ही सकते हो। फिर जब मैंने बेसिक शिक्षा विभाग से थोड़ा झंझट किया तो वहां कुछ समझदार थे उन्होंने कहा कि हाँ यह बात तो सही है और वे इसके लिए तैयार हो गए। फिर पहली बार यूपी में स्कूली बच्चों के कपड़ों के मानक बदले। मानक पहले होते ही नहीं थे। यूनिफार्म  के नाम पर कोई कुछ भी दे जाता था। पहली बार मानक के नाम पर 67 % क़ॉटन 33 % पोलिस्टर फाईनल हुआ। इसके अलावा खादी के लिए मानक में छूट दी गयी कि इसमें 70 % काटन 30% पोलिस्टर हो सकता है। जिसका नतीजा क्या हुआ कि इससे बच्चों को बढिया क्वालिटी की ड्रेस मिलने लगी।