चीन के प्रयासों को रोकने के लिए भारत-अमेरिका को योजना बनानी चाहिए : थिंक टैंक

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वाशिंगटन. अमेरिका के एक थिंक टैंक ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के चलते पाकिस्तान और श्रीलंका की चरमराती आर्थिक स्थिति का फायदा उठाकर उनके साथ संबंध मजबूत कर हिन्द महासागर में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे चीन को रोकने के लिए अमेरिका तथा भारत को कोई योजना बनानी चाहिए। हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी से भारत में चिंता है। भारत मुख्यत: चीन की बढ़ती आक्रामकता को रोकने के उद्देश्य से श्रीलंका, मालदीव, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, म्यामां और सिंगापुर सहित क्षेत्र के देशों के साथ समुद्री सहयोग बढ़ाने की कोशिश करता रहा है।

थिंक टैंक ‘हडसन इंस्टिट्यूट’ के अनुसार कोरोना वायरस महामारी से न सिर्फ दक्षिण एशिया में जीवन और आजीविका को खतरा पैदा हो रहा है, बल्कि यह क्षेत्र में महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामरिक बदलाव का भी कारण बन सकती है। संस्थान की भारतीय मूल की शोधार्थी अपर्णा पांडे और अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी द्वारा संयुक्त रूप से लिखी गई रिपोर्ट में थिंक टैंक ने कहा कि भारत और बांग्लादेश की अर्थव्यवस्थाएं तबाही से बच जाएंगी, लेकिन उनकी सरकारों को निवेश को संरक्षण और बढ़ावा देकर आर्थिक वृद्धि को बनाए रखना होगा। इसमें कहा गया, ‘‘पाकिस्तान और श्रीलंका संभवत: नकारात्मक वृद्धि की दिशा में चले जाएंगे और उन्हें अंतरराष्ट्रीय कर्जदाताओं से कर्ज राहत की आवश्यकता होगी। इसके बिना, श्रीलंका के सामने बड़े कर्ज डिफॉल्ट की संभावना है। दोनों देशों के अपने हितकारी के रूप में चीन की ओर देखने की संभावना है जैसा कि उनके नेता कुछ समय से करते प्रतीत हो रहे हैं।” रिपोर्ट ‘कोलकाता से लेकर काबुल तक संकट: दक्षिण एशिया में कोविड-19 का प्रभाव’ के अनुसार चीन दक्षिण एशिया की कर्ज से दबी सरकारों पर अपने लाभ के लिए आदान-प्रदान के तहत दबाव बना सकता है। हडसन इंस्टिट्यूट की इस सप्ताह जारी रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘यह क्षेत्र में भारत की सुरक्षा और अमेरिका के प्रभाव की कीमत पर होगा।

पाकिस्तान और श्रीलंका के साथ संबंध मजबूत कर हिन्द महासागर में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे चीन को रोकने के लिए भारत और अमेरिका को कोई योजना बनानी चाहिए।” चीन अपनी महत्वाकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड’ योजना के लिए पाकिस्तान और श्रीलंका की मदद लेने में लगा है और उसकी इस बात के लिए आलोचना होती रही है कि वह आर्थिक रूप से कमजोर देशों को अपने फायदे के लिए कर्ज के जाल में फंसा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 से उत्पन्न खतरे से क्षेत्र के मिलकर काम करने की भारत की पहल को पाकिस्तान तवज्जो नहीं दे रहा है और वह इस चुनौतीपूर्ण समय में भी कश्मीर का मुद्दा उठा रहा है। इसमें उल्लेख किया गया है, ‘‘इस तथ्य के बावजूद कि पाकिस्तान के पास अपनी सेना को भारत के खिलाफ मजबूत करने के लिए संसाधनों की कमी है, फिर भी वह काफी बड़े देश भारत के खिलाफ अपने को ऊपर दर्शाने के प्रयास के तहत उप-पारंपरिक युद्ध (आतंकवाद) के इस्तेमाल को बढ़ा सकता है।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान के असैन्य और सैन्य नेताओं में भारत विरोधी भावना को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव, खासकर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के प्रतिबंधों की आवश्यकता पड़ सकती है। इसमें कहा गया है कि विगत में पाकिस्तान ने प्राकृतिक आपदाओं का इस्तेमाल भारत में आतंकवादियों की घुसपैठ कराने के लिए किया है। भारतीय अधिकारी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि पाकिस्तान पागलपन के रूप में कोविड-19 का इस्तेमाल भी ऐसा करने के लिए कर सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘यद्यपि उपमहाद्वीप में पूर्ण युद्ध होने की संभावना नहीं है, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव से क्षेत्रीय सहयोग के प्रयास लगातार बाधित रहने की संभावना है। इस तरह का सहयोग आर्थिक पुनर्निर्माण के काम को आसान बना सकता है, जो महामारी के खत्म होने पर मुख्यत: निश्चित तौर पर होगा। भारत क्षेत्र में अन्य देशों के साथ संभवत: मिलकर काम कर सकता है और करेगा, लेकिन पाकिस्तान नहीं।” (एजेंसी)