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    नई दिल्ली. जहाँ एक तरफ रूस और यूक्रेन (Russia Ukraine War) का तानव अब खतरनाक स्तर तक बढ़ते जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ अजमल रहमानी (Ajmal Rahmani) और उनके जैसे कुछ और अफगानियों की कहानी पर शायद ही आपको यकीन हो। खैर यकीन तो खुद इन्हें भी अपनी किस्मत पर नहीं हो रहा। दरअसल ये लोग को करीब 1 साल पहले अपने वतन (Afghanistan)) को छोड़कर यूक्रेन (Ukraine) में रहने आ गए थे। तब उन्हें लगा था कि उन्हें जैसे मानों शांति का ठिकाना मिल गया है। 

    इतना ही नहीं अब वह आराम से जी भी सकते हैं, लेकिन वे बेचारे नहीं जानते थे कि 1 साल बाद ही उन्हें उनकी किस्मत फिर से उसी मोड़ पर ले आएगी, जहाँ से वे कभी उदास और मायूस हो चले थे। तब पिछली बार वे तालिबान के डर से भागकर यहां आए थे, लेकिन अब इस बार रूस के भयंकर हमलों की वजह से उन्हें एक हफ्ते पहले ही पोलैंड का रुख करना पड़ा है।

    एक युद्ध से खुद को बचाया, दुसरे में आ फंसे 

    इधर रहमानी ने पोलैंड में घुसने के बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए बताया कि, “मैं एक युद्ध से भागकर दूसरे देश में आता हूं, लेकिन वहां भी दूसरा युद्ध शुरू हो जाता है। यह तो मेरे लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।” रहमानी के इतना कहते ही उनकी 7 साल की मासूम बेटी मारवा अपने सॉफ्ट टॉय (डॉग) को कसकर पकड़ लेती है। बता दें रहमानी के साथ उनकी पत्नी मीना और एक 11 साल का प्यारा सा बेटा ओमर भी है। यह परिवार जिस किसी तरह 30 किलोमीटर तक पैदल चलकर पोलैंड बॉर्डर तक पहुंचा। इसके बाद ये लोग शरणार्थियों वाली बस में किसी तरह बैठकर आगे लिए निकले। ज़िन्दगी कि दूसरी परीक्षा देने के लिए।

    एक झटका और बदली दुनिया 

    अपने साथ हो रही इन तमाम घटनाओं पर मुस्कुराते हुए 40 साल के रहमानी कहते हैं कि, उन्होंने नाटो के लिए अफगानिस्तान में काबुल एयरपोर्ट पर 18 साल तक काम किया। वहीँ अमेरिका के अफगानिस्तान से हटने के फैसला से 4 महीने पहले उन्होंने अफगानिस्तान छोड़ने का फैसला किया था। वहां पर रोज उन्हें औऱ उनके दो छोटे बच्चों को स्कूल जाने पर धमकी मिलती थी। 

    उन्होंने बताया कि, “अपने देश को छोड़ने से पहले मेरी जिंदगी अच्छे से गुजर रही थी। मेरे पास अपना घर था, कार थी, एक अच्छी सैलरी थी। मजबूरी में शांति की तलाश में मुझे अपना सब कुछ बेच देना पड़ा। मेरे और मेरा परिवार के लिए जैसे एक झटके में सबकुछ खत्म हो गया था। बड़ी मुश्किल से हमें यूक्रेन का विजा मिला था, लगा था कि अब सब ठीक होगा। उन्होंने ओडेसा में घर भी लिया था, लेकिन एक बार फिर उन्हें अपना सब छोड़कर आना पड़ा है।” किसी शायर ने सच ही कहा है कि, “किसी को घर से निकलते ही मिली मंजिल,कोई तो उम्र भर सफर में ही रहा, सफ़र का ही रहा।”