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नवभारत डिजिटल डेस्क. जहां एक तरफ भारत और कनाडा (India-Canada Tension) के बीच डिप्लोमैटिक विवाद अब बढ़ता ही रहा है। वहीं कनाडा में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर (Hardeep Singh Nijjar) की हत्या का आरोप वहां के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudeau) ने भारत पर लगाते हुए एक भारतीय डिप्लोमैट को निकाल दिया।

हालांकि जवाब में भारत ने भी कनाडा के एक डिप्लोमैट को एक्सपेल कर दिया।इधर फिर कनाडा ने बाकायदा भारत में जम्मू और कश्मीर में सिक्योरिटी की हालात को देखते हुए उसके नागरिकों से वहां न जाने को कहा। वहीं इसके अलावा असम और मणिपुर में भी उनके नागरिकों को न जाने की सलाह दी गई है।

देखा जाए तो 1980 के दशक से पंजाब राज्य से शुरू हुआ खालिस्तान आंदोलन आज मीलों दूर कनाडा में अपने पैर पसार चुका है। भारत यूं तो कनाडा पर हमेशा ही खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ निष्क्रियता का बार-बार आरोप लगाता रहा है। वहीं आज इस पूरे मुद्दे पर हम ट्रुडो परिवार की राजनीतिक मंशा को भी समझेंगे, जिससे यह साफ़ होगा कि, कैसे यह परिवार आतंकवादियों-चरमपंथियों का दशकों से समर्थक रहा है। 

आतंकवादियों-चरमपंथियों का ट्रुडो परिवार पुराना समर्थक
देखा जाए तो खालिस्तानी आतंकवादियों और चरमपंथियों का जस्टिन ट्रुडो परिवार पहले भी समर्थक रहा है। उनके पिता पियरे ट्रुडो ने खालिस्तानी आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार के समर्पण किए जाने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। दरअसल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने परमार के समर्पण किए जाने की मांग की थी, जिस पर पुलिस की हत्या का आरोप था, जिसे पियरे की सरकार ने भारत सरकार के अनुरोध को सीधे तौर अस्वीकार कर दिया था। 

कनिष्क बम कांड
23 जून 1985 को हुए ‘एअर इंडिया’ के एक विमान में बम विस्फोट होने से 329 बेगुनाह लोगो की जान चली गई थी, इस घटना को ‘कनिष्क बम कांड’ के नाम से जाना जाता है। केवल यही नहीं, जब इस मामले की जांच के लिए बने कनाडा आयोग ने अपने ही तत्कालीन सरकार पर आरोप लगते हुए उसे कटघरे में खड़ा किया था।

जब खुद की ही सरकार को किया कटघरे में खड़ा 
कनाडा आयोग के रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाला जो तथ्य निकल कर सामने आया था वो था कि, कनाडा सरकार, रॉयल कैनेडियन मांउटेड पुलिस और कैनेडियन सिक्योरिटी इंटेलीजेंस सर्विस द्वारा अपनाई गई ‘खामियों-त्रुटियों’ की क्रमिक श्रंखला का नतीजा यह विमान हादसा। इससे साफ़ है कि, अगर कनाडा की एजेंसियां चाहती थीं कनिष्क विमान हादसे में 329 बेकसूरों की मौत को शायद बचाया भी जा सकता था। 

देखा जाए तो साल 2015 में जस्टिन ट्रूडो के सत्ता में आने के बाद से ही खालिस्तान की मांग फिर से तेज होने लगी थी और आए दिन खालिस्तान समर्थक इस मांग को लेकर प्रदर्शन भी करते रहते हैं। कई खालिस्तान समर्थक समूह भी ट्रूडो की लिबरल पार्टी का जबरदस्त समर्थन करते हैं।

आखिर क्या है कनाडा सरकार की मजबूरी
दरअसल कनाडा रूस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है, लेकिन वहां की जनसंख्या मात्र 3.5 करोड़ है।ऐसे में इस देश को इकनोमिक रूप से ताकतवर बनाए के लिए दूसरे देश से लोग यहां पर आते हैं, जिससे उस देश की तरक्की में योगदान देते हैं। यहां पर सिखों की तादाद कुल जनसंख्या का 1.5% है, जबकि भारत में सिख 1.7% हैं। अब इसका सीधा असर यहां चुनावों पर पड़ता है जिसमें भारतीय मूल के सबसे ज्यादा लोग जो यहां रहते हैं, वहां से सिख सम्प्रदाए के लोग चुनाव में जीतते हैं। 2019 के चुनाव में यहां 3 सिख सांसद चुने गए थे।

कनाडा की संसद में सिखों की तूती 
जानकारी दें कि, कनाडा की संसद में 5.3% सिख सांसद हैं। 2019 में ट्रूडो सरकार को जब सिर्फ मात्र 157 सीटें ही मिल पाईं, जोकि बहुमत से 24 कम थीं। तब उन्हें बहुमत के लिए न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन लेना पड़ा, जिसके अध्यक्ष जगमीत सिंह हैं। जानकारी हो कि साल 2013 में भारत सरकार ने इसका वीजा कैंसिल किया था, क्योंकि इनके सीधे संबंध खालिस्तानी आतंकवादियों से थे। इस तरह देखा जाए तो ट्रूडो की लिबरल पार्टी में खालिस्तानी समर्थक समूह का लोहा माना जाता है। वहीं ट्रूडो का इनको लेकर चलना या तो उनकी राजनीतिक ‘मज़बूरी’ समझें या फिर उनकी ‘सत्तालोलुपता’।