पारधी समाज का पहला पुलिस पाटिल ‘अजूबा’, …तो पहली बस चालक ‘अंजूता’

  • बहन-भाई ने इतिहास में नाम दर्ज किया!

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यवतमाल. जंगल-जंगल भटकरनेवाला फासे पारधी समाज आज भी जंगल-पर्वतों में बसता है यह समाज शिक्षा से कोसों दुर रहा है. यह सब होते हुए भी यवतमाल जिले के नेर परसोपंत तहसील के अकोला मुकिंदपुर के अजूबा भोसले पुलिस पाटिल और उनकी बहन अंजुता भोंसले बस चालक बन गए हैं. फांसे पारधी समाज के इन दोनों भाई-बहनों का यह कारनामा इतिहास में दर्ज करने लायक है.

यवतमाल जिले में फांस पारधी समाज के 16 पारधी बेडे है. इन बेडों पर रहनेवालों की संख्या लगभग 22 हजार से भी अधिक है. इन पारधी समाज की बस्तियां जंगल-पहाडियों में होने की वजह से यह समाज वर्षभर जंगल में ही गुजरान करता रहता है. शासन को किसी भी योजना का लाभ इन बस्तियों तक पहोचना बहूत कठिन है. जिसके कारण उनको कई कठिनाईयों का सामना करना पडता है. आज भी इन बेडों में से 9 बेडों पर बिजली, पानी की बहूत संकट हे, जिसके कारण यह लोग शहर में आकर भिख मांगने पर मजबूर हो जाते हैं, यह बस दुविधाएं कठिनाइयों पर मात करते हुए अकोला मुकिंदपुर पारधी बेडे पर रहनेवाले अजूबा के पिता ने पक्षी पकडने का व्यवसाय छोड के किसानी की और अपने दोनों बेटा-बेटी को शिक्षा दिलाई, जिसके कारण अजुबा भोंसले उनका यह बेटा यवतमाल जिले में पहला पुलिस पाटिल का सम्मान प्राप्त कर सका है. इसी प्रकार उसकी बहन अंजूता भोंसले ने पहली बस चालक होने का सम्मान प्राप्त कर लिया है. इन दो बहन-भाईयों ने अपने समाज का इतिहास रच दिया है.

इन्हें हम ने तैयार किया है!

मुकिंदपुर पारधी समाज के बेडे पर रहने वाले लडके, लडकियों पर हमने खुब मेहनत की है, जिसके कारण आज वह सम्मानपूर्वक अपने पैरों पर खडी है!

अध्यापक हरार, पारधी बेडा.

भटके जमात के बच्चों की उडान यह गौरव की बात है!

पारधी इस भटके जमात के लडकों की कामयाब उडान प्रशंसनिय है, इस समाज के विद्यार्थि शिक्षित होंगे तो इस समाज का विकास होगा.

मंगेश देशपांडे, गुट विकास अधिकारी पंस यवतमाल.

हमें समाज का उद्धार करना है!

पारधी समाज के बच्चे पढते नहीं है. जिसके कारण उनका विकास नहीं हो पता है. हम नये प्रवाह में शामिल होकर खुद को बदलने का प्रयास कर रहे हैं. हमें इस प्रवाह में लाने के लिए डा. हर्षदीप कांबले से मदद और प्रेरणा मिली है. अब भी मिल रही है!