बीजेपी (BJP) नेतृत्व के ध्यान में आ गया कि वह गुजरात का फार्मूला (Gujrat Formula) मध्यप्रदेश, राजस्थान या छत्तीसगढ़ में नहीं चला सकता। गुजरात में बीजेपी का संगठन काफी मजबूत होने से वह कोई भी जोखिम ले सकती है। वहां विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री रूपानी और उनके सहयोगी मंत्रियों को टिकट नहीं दिया गया था और नए चेहरे उतारकर सफलता हासिल की गई थी। ऐसी स्थिति उन राज्यों में नहीं है जहां क्षेत्रीय नेताओं की पैठ हैं। इन क्षत्रपों को उम्मीदवारी से वंचित करना पार्टी के लिए आत्मघाती हो सकता है।
इसी वजह से बीजेपी को अपना रवैया बदलना पड़ा। पहले बीजेपी की योजना थी कि आधे विधायकों, मंत्रियों तथा बुजुर्ग नेताओं को टिकट नहीं देगी तथा परिवारवाद को नहीं पनपने देगी। मध्यप्रदेश की शुरू की 2 सूचियों के 78 उम्मीदवारों में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का नाम नहीं था। पार्टी ने 3 केंद्रीय मंत्रियों और 7 सांसदों को विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बना दिया था। बाद में उसे समझ में आया कि पुराने चेहरों की अवहेलना करना महंगा पड़ेगा।
इसलिए शिवराजसिंह चौहान और उनके 24 मंत्रियों को चौथी सूची में प्रत्याशी बनाया गया। अपने पारिवारिक संबंधों की वजह से मध्यप्रदेश में विश्वास सारंग, ध्रूव नारायण सिंह, कृष्णा गौर व ओम सकलेचा को टिकट दिया गया। छत्तीसगढ़ में पूर्व सीएम रमनसिंह और उनके भांजे विक्रांतसिंह प्रत्याशी बनाए गए।
दिलीप सिंह जूदेव के बेटे प्रबल प्रताप तथा पुत्रवधू संयोगिता को टिकट दिया गया। राजस्थान में यद्यपि वसुंधरा राजे के समर्थक विधायकों के टिकट काट दिए गए लेकिन वसुंधरा को 18 अक्टूबर को जारी होने वाली अंतिम सूची में टीकट देकर संतुष्ट किए जाने की संभावना है।
उन्हें नाराज करने में पार्टी का ही नुकसान है। जाहिर है कि बीजेपी मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कर्नाटक के समान कोई आत्मघाती प्रयोग नहीं करेगी। बीजेपी को उम्मीद है कि इस बार वह राजस्थान में जीतेगी किंतु वह मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ को लेकर शंकित है।