Water Crisis in Pune

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पुणे: बेंगलुरू के बाद पुणे (Pune) शहर में गंभीर जल संकट (Water Crisis) गहराने लगा है। शहरों में बांध और ग्राउंड वाटर लेवल नीचे चला गया है। गर्मी के आगमन के साथ ही हर ओर पानी के लिए हाहाकार मचना शुरू हो गया है। पुणे और आसपास के इलाकों में लोग पानी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परेशान हैं। रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की कमी और बढ़ती आबादी ने शहरों में पानी की किल्लत को बढ़ा दिया है। शहर के कई हिस्सों में दैनिक पानी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। 

मार्च महीना में ही गहराए जल संकट से पुणे सहित विभिन्न शहरों में रहने वाले लोग परेशान हैं। पुणे में बढ़ते शहरीकरण, जल प्रदूषण जैसे विभिन्न कारणों से सतही और भूजल स्रोत गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। जहां भूजल को अनियंत्रित रूप से पंप किया जा रहा है, वहीं सीवेज सीधे नदियों में बहाया जा रहा है। सरकार, जन प्रतिनिधि और नागरिक अब भी पानी को लेकर गंभीर नहीं है। पानी के मुद्दे पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर पानी का प्रबंधन ठीक से नहीं किया गया तो जल्द हमें भी बेंगलुरु जैसे जल संकट का सामना करना पड़ेगा। 

संबंधित संगठनों द्वारा एक जल घोषणापत्र तैयार किया गया है। वे इस घोषणापत्र को राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के घोषणापत्र में शामिल करना चाहते है। ग्राम गौरव प्रतिष्ठान, वनराई, गोखले संस्थान जैसे प्रसिद्ध गैर सरकारी संगठनों ने ‘महाराष्ट्र की जल सुरक्षा, नागरिक घोषणा पत्र’ तैयार किया है। इस बात की जानकारी मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी गई। इस अवसर पर जल विशेषज्ञ प्रदीप पुरंदरे, ग्राम गौरव प्रतिष्ठान की ट्रस्टी से कल्पना सालुंखे, कार्यकारी ट्रस्टी डाॅ. सोनाली शिंदे, प्रसाद सेवकरी, वानिकी समन्वयक अमित वाडेकर आदि उपस्थित थे। 

जल विशेषज्ञ पुरंदरे ने कहा कि जल नियोजन, नियमन और जल कानून का कार्यान्वयन किया जाना चाहिए। बांधों के रखरखाव और मरम्मत पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उस प्रयोजन के लिए, बांधों का नियमित रखरखाव और मरम्मत जरुरी है। किसी भी परियोजना में अंतिम लाभार्थी तक पानी पहुंचना चाहिए। अब पानी के मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। 

सालुंखे ने कहा कि 1972 से अब तक पानी की समस्या की अनदेखी के कारण पानी की समस्या बनी हुई है। उपलब्ध जल और उसके उपयोग का गणित सुलझ नहीं रहा है। पहले पानी के मुद्दे पर आवाज उठाकर नीति तय की जाती थी, लेकिन, अब पानी के मुद्दे पर जनप्रतिनिधि आवाज नहीं उठाते। पानी को लेकर कानून तो बने हैं, लेकिन जल प्रबंधन और पानी के उपयोग पर नियंत्रण नहीं हो पाया है। पानी के मुद्दे पर कोई बात नहीं कर रहा. अब जन प्रतिनिधियों को पानी के मुद्दे पर बात करनी चाहिए। 

घोषणा पत्र में महत्वपूर्ण बिंदु-
नए शहरों, सम्मिलित गांवों की योजना उपलब्ध पानी के अनुसार बनाई जानी चाहिए
शहर की हाउसिंग सोसायटियों में वाटर रिचार्ज पर ध्यान दिया जाए
पानी की लीकेज, चोरी रोकी जाए तथा पानी का मीटर लगाया जाए, पानी की लाइन को नियमित रूप से चार्ज किया जाए
बांधों का रखरखाव एवं मरम्मत नियमित हो, ‘3डी’ योजना चलाई जाए
सिंचाई निगम को भंग कर नदी बेसिन प्राधिकरण की स्थापना की जाए
लघु सिंचाई परियोजनाओं का मूल्यांकन कर उनकी मरम्मत एवं पुनरुद्धार हेतु धनराशि उपलब्ध कराई जाए 
वाटरशेडवार, नदी बेसिनवार योजना बनाई जाए
जल केंद्रीकरण और निजीकरण योजनाओं (उदाहरण के लिए खेतों की मांग) को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। 

पानी प्रदूषित करने वालों के खिलाफ दर्ज हो अपराध-
शहर का गंदापानी, सीवेज, कंपनियों का रासायनिक पानी सीधे नदी में बहाया जाता है। इससे कृषि संकट उत्पन हो रही है। इससे नागरिक कैंसर जैसी बीमारियों के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं। घोषणापत्र में कहा गया है कि नदी में ऐसा पानी छोड़ने वालों के खिलाफ अपराध दर्ज किया जाना चाहिए।