आंदोलनकारी किसानों व सरकार के बीच कब तक चलता रहेगा गतिरोध

Loading

आखिर आंदोलनकारी किसानों (Farmers Protest) और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध कब तक चलते रहेगा? सरकार और किसानों के बीच बातचीत हर बार बिना किसी नतीजे के समाप्त हो जाती है. किसान संगठन कृषि कानूनों (Farm Laws) को पूरी तरह समाप्त करने की मांग पर अड़े हुए हैं जबकि केंद्रीय मंत्री इन कानूनों के फायदे गिनाते रहते हैं. 7 दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही. सरकार के पास समाधान का कोई नया प्रस्ताव नहीं है.

किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कोरा आश्वासन नहीं, बल्कि कानूनी गारंटी चाहते हैं. सरकार ऐसा कानून बनाने को राजी नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी सीधे किसानों से बात नहीं करना चाहते, दूसरी ओर किसानों को मना पाने में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल (Piyush Goyal) व राज्यमंत्री सोमपाल शास्त्री विफल रहे हैं. किसान नेताओं ने 8 जनवरी को होने वाली बैठक पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार के पास कुछ भी नया कहने को नहीं है. किसान नेताओं ने कहा कि बैठक-बैठक का खेल करने से क्या फायदा?

भीषण ठंड और बारिश में भी डटे हैं

यह सचमुच चिंताजनक है कि भीषण ठंड और बारिश के बावजूद हजारों किसान दिल्ली की सीमा पर खुले आसमान के नीचे धरने पर बैठे हैं. ये अपनी फसल उसी तरीके से बेचना चाहते हैं जैसे उनके पूर्वज दशकों से बेचते आए हैं. अधिकांश आंदोलनकारी किसान पंजाब और हरियाणा के हैं जिन्हें देश के अन्य भागों के किसानों का समर्थन प्राप्त है. सरकार का दावा है कि नए कृषि कानून भारतीय कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाएंगे और किसानों को समृद्ध बनाएंगे. सरकार का यह भी दावा है कि कुछ राज्यों में किसानों ने इन नए कृषि कानूनों का समर्थन किया है. विपक्षी पार्टियां तथा गैर बीजेपी राज्यों की सरकारें इन कानूनों के विरोध में हैं. यदि किसान इन कानूनों को स्वीकार नहीं करना चाहते तो सरकार इन्हें क्यों जबरन लादना चाहती है? केंद्र सरकार कृषि को राज्यों का विषय रहने दे और राज्य विधानसभाओं को यह तय करने दे कि क्या वे अपने यहां नए कृषि कानून चाहती हैं?

सहमति के बिंदु तय किए जाएं

राष्ट्रहित में उचित होगा कि गतिरोध अनिश्चित काल तक जारी न रखा जाए और सहमति के बिंदु निश्चित किए जाएं. यदि केंद्र सरकार को अटूट विश्वास है कि नए कृषि कानूनों से किसानों को लाभ होगा तो वह पहले इन कानूनों को इनके लिए इच्छुक राज्यों में लागू कर उनकी व्यावहारिक उपयोगिता सिद्ध करे. कम से कम 2 वर्षों के लिए ऐसा किया जा सकता है. किसानों को अपनी उपज के लिए लाभप्रद मूल्य चाहिए, उसे इससे मतलब नहीं कि उपज सरकार खरीदती है या कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी! किसानों को संदेह है कि सरकार एमएसपी की गारंटी देने वाला कानून न बनाकर उन्हें कारपोरेट की मर्जी पर छोड़ देगी. यह भी हो सकता है कि शुरू में कारपोरेट अच्छा दाम दें लेकिन बाद में दाम और फसल के चयन व क्वालिटी को लेकर अपनी मर्जी चलाएं और किसान उनके गुलाम बनकर रह जाएं. किसानों की यह आशंकाएं कौन दूर करेगा? सरकार के सामने दिक्कत है कि उसके गोदामों में बहुत अनाज जमा है इसलिए वह मंडियों में किसानों की उपज खरीदने से पीछे हट रही है.

एमएसपी की कानूनी गारंटी दें

पंजाब और हरियाणा में हर वर्ष 80,000 करोड़ रुपए एमएसपी के माध्यम से किसानों को मिलते हैं. क्या ऐसा चौथा कृषि कानून नहीं बनाया जा सकता कि जिसमें यह अनिवार्य हो कि देश में कहीं भी किसानों की फसलें एमएसपी से कम कीमत पर नहीं खरीदी जाएंगी? ऐसा होने पर किसान अपनी आय को लेकर सुनिश्चित हो सकेंगे. यदि पूरे देश में 23 फसलों को एमएसपी से कम पर नहीं खरीदने का कानून लागू कर दिया जाए तो लगभग 8 प्रतिशत फसलें इसमें कवर हो जाएगी. इससे बड़ी तादाद में किसान लाभान्वित होंगे. जो बहुत छोटे किसान हैं, उनकी आय सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री किसान निधि को वर्तमान 6,000 रुपए से बढ़ाकर 18,000 रुपए प्रति वर्ष कर देना चाहिए. इस संबंध में अमूल डेयरी का उदाहरण दिया जा सकता है. वहां अगर उपभोक्ता 100 रुपए का दूध खरीदता है तो उसका 65 से 70 प्रतिशत दाम किसानों के पास जाता है. यही मॉडल दाल, अनाज, सब्जी व फलों पर क्यों नहीं लागू किया जाता? सरकार उदारतापूर्वक ऐसी नीतियां लाए जो सचमुच किसानों के हित में हों.