महाराष्ट्र का स्वरुप गौरवशाली रहा है. शिवाजी राजे भोसले के नाम से दिल्ली का तख्ता कांपता था. राजनीति के साथ ही सहकार क्षेत्र में प्रचंड ददबदबा रखनेवाले मराठों को आज अपनी मांग को लेकर सड़कों पर उतरने की नौबत आ गई है. राज्य की राजनीति में प्रभारी रहते हुए भी यह समान शैक्षणिक व नौकरियों के लिहाज से काफी पीछे रह गया है, यह बात मराठा युवाओं को चुभ रही है. इससे मराठा क्रांति का जन्म हुआ. कोल्हापुर में मराठा क्रांति मूक मोर्चा निकाला गया. सांसद संभाजीराव भोसले के नेतृत्व में निकले इस मोर्चे में सर्वपक्षीय मराठा नेता शामिल हुए.
प्रकाश आंबेडकर भी शामिल
डा. बाबासाहेब आंबेडकर के पौत्र तथा बहुजन आघाड़ी के नेता प्रकाश आंबेडकर भी इस मूक मोर्चे में शामिल हुए. मूसलाधार बरसते पानी में भी मराठा आंदोलनकारियों को दिल गरज रहे थे. ‘एक मराठा लाख मराठा’ का नारा लेकर मराठा समाज सड़कों पर उतरा अत्यंत शांति से प्रचंड मोर्चा निकालने पर सरकार को उसे गंभीरता से लेना ही पड़ेगा.
मराठा समाज ने 22 मार्च 1982 को माथाडी कामगारों के नेता अन्नासाहेब पाटिल के नेतृत्व में मुंबई में प्रचंड मोर्चा निकाला था. मराठा राजनेताओं ने तब इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था. जिस समाज ने अपने दम पर नेतृत्व शुरू किया है उसकी उपेक्षा करने से काम नहीं चलेगा. जब कोल्हापुर में इतना जबरदस्त मोर्चा निकला तो इसका प्रभाव पड़ना निश्चित है. यदि आंदोलन उग्र हुआ तो महाआघाड़ी सरकार स्वाहा हो सकती है. इसलिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से लेकर शरद पवार तक सभी को इन मांगों के प्रति संवेदनशील रहना होगा.
भारी वर्षा में मराठा नेताओं की सभा या आंदोलन सफल होता है तो यह संकेत है कि परिवर्तन होकर रहेगा. सातारा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से उदयनराजे भोसले राकां की टिकट पर निर्वाचित हुए. बाद में वे बीजेपी में शामिल हुए. उनका यह रवैया शरद पवार को पसंद नहीं आया. उदयनराजे सातारा में उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी के रुप में चुनकर आए. पवार ने उनके मुकाबले श्रीनिवास पाटिल को खड़ा किया था. बीजेपी के प्रचार के लिए प्रधानमंत्री मोदी भी सातारा गए थे. शरद पवार के लिए यह उपचुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था.