राज्यपाल के दौरे से सरकार हलाकान

    Loading

    राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में राज्यपाल के अधिकारों का एक निश्चित दायरा होता है. उन्हें विधानमंडल के संयुक्त सत्र में अभिभाषण करने, राष्ट्र दिवसों में परेड की सलामी लेने, मंत्रिमंडल को शपथ दिलाने, विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर विचार कर 14 दिनों के भीतर मंजूरी देने या पुनर्विचार के लिए भेजने का अधिकार है. केंद्र सरकार की राज्यपाल से यही अपेक्षा रहती है कि वे राज्य की राजनीतिक व कानून-व्यवस्था की स्थिति पर समय-समय पर रिपोर्ट भेजें.

    राज्यपाल को राज्य में केंद्र का प्रतिनिधि माना जाता है. वे सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री की भांति सक्रिय राजनीति नहीं कर सकते. वे जो अभिभाषण पढ़ते हैं, वह भी राज्य सरकार का तैयार किया हुआ होता है जिसमें वे हेरफेर नहीं कर सकते, बल्कि उन्हें कहना पड़ता है कि मेरी सरकार ने यह नीतियां बनाई हैं तथा ऐसा फैसला लिया है. अधिकारों की ऐसी मर्यादा होने के बावजूद कुछ राज्यपाल राजनीतिक सक्रियता दिखाने लगते हैं. खास तौर पर गैर बीजेपी शासित राज्यों में ऐसा होता देखा गया है. यही वजह है कि बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राज्यपाल जगदीप धनखड़ से नहीं पटती और महाराष्ट्र में भी महाविकास आघाड़ी सरकार को राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी की सक्रियता पसंद नहीं आती.

    पालक मंत्रियों का बहिष्कार

    महाविकास आघाड़ी सरकार द्वारा मंत्रिमंडल की बैठक में नाराजगी का प्रस्ताव पास किए जाने और उसकी सूचना दिए जाने के बावजूद राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी मराठवाड़ा के नांदेड़, हिंगोली व परभणी जिलों के 3 दिनों के दौरे पर निकले. राज शिष्टाचार (प्रोटोकाल) के मुताबिक पालक मंत्रियों को राज्यपाल के स्वागत के लिए अपने जिले में मौजूद रहना चहिए था परंतु नांदेड़ के पालक मंत्री अशोक चव्हाण व परभणी के पालक मंत्री नवाब मलिक ने महामहिम के इस दौरे का बहिष्कार किया और उनके स्वागत के लिए हाजिर नहीं हुए. इसके बाद राज्यपाल बैकफुट पर चले गए. राजभवन ने दौरे का सुधारित कार्यक्रम जारी किया जिसमें तीनों समीक्षा बैठकें रद्द कर दी गईं. अब राज्यपाल जिलाधिकारियों के साथ कलेक्टर कार्यालय में समीक्षा बैठक नहीं करेंगे, बल्कि सरकारी गेस्ट हाउस में अधिकारियों से मुलाकात करेंगे. ठाकरे सरकार की आपत्ति के बाद राज्यपाल को यह फैसला करना पड़ा.

    राज्यपाल की दलील

    राज्यपाल ने नांदेड़ दौरे के समय सरकार को आड़े हाथ लेते हुए टिप्पणी की कि राजनीति मैं नहीं, बल्कि आप कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि मैं संविधान के प्रावधानों का पालन कर रहा हूं और किसी के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का कोई सवाल ही नहीं है. मैं अपने अधिकार क्षेत्र के 3 विकास बोर्डों के लिए काम कर रहा हूं. लोगों को जो भी मदद की जानी है, वह राज्य और केंद्र सरकारों को मिलकर करनी है.

    सरकारी नाराजगी की वजह

    उद्धव ठाकरे सरकार ने विधान परिषद के लिए मनोनीत किए जाने वाले 12 सदस्यों के नामों की सूची राज्यपाल के पास भेजी थी जिस पर लगभग 9 महीनों से राज्यपाल ने कोई निर्णय नहीं लिया. उन्होंने यह सूची वापस भी नहीं लौटाई. सरकार अपनी मजबूती के लिए इन 12 रिक्त सीटों पर सदस्यों का मनोनयन चाहती है लेकिन इसे लेकर राज्यपाल ठंडा रुख अपनाए हुए हैं. जब राज्यपाल ने अभिनेत्री कंगना रनौत को राजभवन में मिलने का काफी समय दिया था तब भी सरकार ने आपत्ति जताई थी. राज्यपाल पर बीजेपी का एजेंट होने के आरोप भी लगाए गए थे. शिवसेना सांसद संजय राऊत ने कहा कि राज्यपाल धीरे-धीरे दौड़ रहे हैं, उन्हें दौड़ने दो. दम फूलने से वे गिर पड़ेंगे. जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है, वहां बीजेपी राज्यपाल के माध्यम से सरकार चलाने की कोशिश कर रही है. महाराष्ट्र के राज्यपाल कोश्यारी भी वही काम कर रहे हैं. दूसरी ओर विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि राज्यपाल अपना काम प्रामाणिकता से कर रहे हैं जिससे कुछ लोगों को बेचैनी हो रही है.