बढ़ती महंगाई से कराह रही जनता

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    क्या विकास के साथ महंगाई बढ़ना जरूरी है? महत्वाकांक्षी योजनाओं में निवेश के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से टैक्स बढ़ाए जाते हैं. देश में महामार्गों का जाल बिछाना है तो पेट्रोल-डीजल पर टैक्स (Petrol Diesel Tax) बढ़ाकर राशि अर्जित की जा रही है. 100 रुपए के पेट्रोल में लगभग 62 रुपए टैक्स केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा लिया जाता है. पेट्रोलियम मंत्री साफ कह चुके हैं कि केंद्रीय करों में कोई कमी नहीं की जाएगी. ऐसी हालत में जनता कर भी क्या सकती है. वह कितना भी असंतोष व्यक्त करे, रोए-झींके लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं है. कुछ लोग बड़ी आसानी से कह देते हैं कि जब इतने पेट्रोल-डीजल चालित वाहन नहीं थे, क्या तब लोग पैदल या साइकिल का इस्तेमाल नहीं करते थे? तब शहरों का क्षेत्रफल या दूरियां इतनी अधिक नहीं थीं. आज इतना विस्तार हो गया है कि कार या टू व्हीलर जरूरी हो गया है. दूसरी बात आदत की है. यही वजह है कि पेट्रोल के दाम शतक की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन फिर भी पम्प पर कतार लगी रहती है. इसका मतलब यह कि पेट्रोल विलासिता की नहीं, बल्कि जीवनावश्यक वस्तु बन गया है.

    आय वही, खर्च बेहद बढ़ा

    लोगों की आय तो बढ़ी नहीं, बल्कि कोरोना काल (Coronavirus Crisis ) में कितने ही व्यक्ति बेरोजगार हुए तो किसी का वेतन घटा दिया गया. ऊपर से आलम यह है कि एक वर्ष में पेट्रोल-डीजल के दाम 17 रुपए से ज्यादा बढ़ा दिए गए. तेल कंपनियों ने एक झटके में गैस सिलिंडर भी 50 रुपए महंगा कर दिया. फरवरी महीने में ही 2 बार दाम बढ़ाए गए. 4 फरवरी को सिलेंडर की कीमत 25 रुपए बढ़ाई गई और 15 फरवरी को 50 रुपए का इजाफा किया गया. आम जनता को महंगाई का अजगर जकड़ता ही जा रहा है. ट्रांसपोर्ट व्यवसाय पर डीजल महंगा होने का जबरदस्त असर पड़ेगा. इससे माल ढुलाई पर ज्यादा खर्च आएगा और बाजार में अनाज, किराना, सब्जी और तमाम वस्तुएं महंगी होंगी.

    उपभोक्ता हुआ हलाकान

    देखा गया है कि सरकार की नीतियां उपभोक्ताओं के हितों के विपरीत हैं. विगत वर्षों में नोटबंदी, जीएसटी (GST) जैसे निर्णय लादे गए और अब महंगाई का घोड़ा सरपट दौड़ रहा है. इस पर कोई लगाम नहीं है. कोरोना काल में अनाप-शनाप मोटी रकम के बिजली बिल भेजे गए जिन पर कोई सुनवाई नहीं हुई. ऐसे माहौल में मिडिल क्लास बुरी तरह पिस रहा है. जिन घरों में केवल एक व्यक्ति कमाने वाला है, वहां खर्च चलाना मुश्किल हो गया है. जो मध्यम वर्ग देश का सबसे बड़ा ईमानदार करदाता है, उसकी महंगाई से बुरी तरह फजीहत हो रही है लेकिन करोड़ों की संपत्ति वाले नेताओं को इससे कोई सरोकार ही नहीं है. प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर मिलकर सामान्य जनता की कमर तोड़ रहे हैं. जनवरी में थोक महंगाई बढ़कर 2.03 प्रतिशत हो गई है. गैर खाद्य वस्तुएं, ईंधन व बिजली की दरों में इजाफा होने से ऐसा हुआ है. फरवरी में इसमें और वृद्धि होती नजर आ रही है. खुदरा महंगाई की दर तो इससे और भी अधिक होगी. अपने बहुमत के बल पर सरकार 2024 तक के लिए पूरी तरह निश्चिंत है परंतु इसका यह मतलब नहीं कि वह जनहित को ताक पर रख दे. जब असम में बीजेपी सरकार ने पेट्रोल 5 रुपए सस्ता किया तो बाकी राज्यों में भी ऐसा क्यों नहीं किया जाता? निश्चित आमदनी वाले लोग सरकार से राहत की उम्मीद रखते हैं.