नवभारत डेस्क : वैसे तो आपने अपने आम जीवन में एक घोड़े को तूफानी रफ्तार से फर्राटे करते हुए देखा होगा और आपने कई तेज तर्रार गति से फर्राटे भरने वाले घोड़ों की कहानी भी सुनी होगी। चाहे महाराणा प्रताप के ‘चेतक’ घोड़े की दास्तां हो या ‘मर्द’ फिल्म में अमिताभ बच्चन के घोड़े ‘बादल’ की कहानी.. आज भी हमारे जेहन में कौंध जाती है। घोड़े अपनी ताकत और मजबूत फुर्तीली कार्य शैली की पहचान हैं। आपने देखा होगा इसीलिए किसी भी इंजन की ताकत को हॉर्स पावर में मापा जाता है।
क्या आप जानते हैं कि घोड़े की इस ताकत का राज उनकी सांसों में छुपा हुआ है। घोड़े दौड़ते वक्त हर सेकंड करीब 30 लीटर हवा अंदर बाहर करते हैं। हवा में उछलने के दौरान उनके फेफड़ों में जब हवा भर जाती है तो वे छलांग लगाते हैं और जमीन पर उनके पैर के पढ़ते ही हवा बाहर की ओर निकल जाती है। इसी प्रक्रिया में सेकेंड भर का समय लगता है। इसी के चलते फर्राटेदार अंदाज में घोड़े रेस में अन्य जगहों पर तेजी से दौड़ते हैं।
ऐसा कहते हैं वैज्ञानिक
जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि दौड़ते समय घोड़े के सामान्य अवस्था में ढाई गुना ऑक्सीजन लिया करते हैं। राष्ट्रीय घुड़सवारी फेडरेशन संस्था के पूर्व मेडिकल ऑफिसर और वर्तमान सलाहकार डॉक्टर होसनैन मिर्जा ने कहा कि सामान्य समय में आराम करते समय घोड़े 1 मिनट में 12 बार सांस लेते हैं। आराम की मुद्रा में जब घोड़ा एक बार सांस अंदर खींचता है तो वह करीब 15 लीटर ऑक्सीजन लेता है और उतना ही कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है। लेकिन दौड़ते समय करीब कई गुना यह मात्रा बढ़ जाती है यानी वह दौड़ते समय 1800 लीटर ऑक्सीजन अंदर लेता है और उतना ही कार्बन डाइऑक्साइड बाहर छोड़ता है
ऐसा कहा जाता है कि जब तक एक औसत आकार का घोड़ा सरपट दौड़ने लगता है, तब तक वह एक मिनट में लगभग 120 सांसें ले रहा होता है। इसका मतलब है कि प्रत्येक सेकंड में 2 सांसें अंदर और बाहर करता है। आमतौर पर हर सांस के साथ 15 लीटर हवा अंदर और बाहर ले जा रहा होता है। लेकिन जब सरपट दौड़ने के एक मिनट में घोड़ा 1800 लीटर हवा अंदर और बाहर करता है। कहा जाता है कि घोड़े के नासिका छिद्रों से औसतन 60 लीटर/सेकंड की दर से और 100 लीटर/सेकंड की तेज़ गति से हवा अंदर-बाहर होती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि घोड़े के सरपट दौड़ने के दौरान हर एक कदम और सांस लेना 1:1 से जुड़े हुए हैं। घोड़े अधिक कदम उठाकर नहीं बल्कि लंबे कदम उठाकर गति बढ़ाते हैं। लंबे कदमों का मतलब यह है कि हवा को फेफड़ों को भरने में अधिक समय लगता है और इसलिए उनकी सांस का आकार बढ़ जाता है।
कहा जाता है कि यह प्रक्रिया सिरिंज की तरह काम करती है, जिसमें ऑक्सीजन लेते समय फेफड़ा पूरी तरह से भर जाता है और फिर बाहर की ओर सांस छोड़ कर खाली करता है। यह प्रक्रिया बार-बार चलती रहती है और इसी से घोड़े के अंदर रफ्तार आती है।
आपने पुराने जमाने में घुड़सवारी के साथ-साथ युद्ध के मैदाने में घोड़े की भूमिका अच्छी से देखी होगी। जब मशीनों व मोटर गाड़ियों की उपलब्धता नहीं थी, तब घोड़े हमारी तमाम जरूरतों में मददगार हुआ करते थे। अब आज के दौर में युद्ध में घोड़े का उपयोग नहीं किया जाता लेकिन खेलकूद के मैदान, रेस में या पर्यटन में तमाम जगहों पर घोड़े की उपयोगिता आज भी है और इनका इस्तेमाल किया जाता है।
आज है राष्ट्रीय घोड़ा दिवस
आज राष्ट्रीय घोड़ा दिवस मनाया जा रहा है। हर साल 13 दिसंबर को इसे मनाया जाता है। यह घोड़ों द्वारा किए गए आर्थिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक योगदान को याद करने का एक खास दिन है। देश भर के अश्व प्रेमी इन राजसी प्राणी से जुड़ी यादें साझा करते हैं और इससे जुड़े अनुभवों को शेयर करते हैं।
राष्ट्रीय घोड़ा दिवस का इतिहास
अमेरिकी लोगों ने 2004 में इस दिन को मनाने की परंपरा डाली। कांग्रेस ने 13 दिसंबर को राष्ट्रीय घोड़ा दिवस के रूप में चयन किया था और तब से, अमेरिकी लोगों के साथ-साथ कई और देशों में घोड़े की भूमिका का जश्न मनाया जाता है। इस दिन लोग उसकी सराहना करने के साथ-साथ आज के दौर में घोड़े की भूमिका के बारे में भी बातें करते हैं।