Skyrocketing Edible oil prices

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    मुंबई. पिछले एक साल में जहां चाइनीज वायरस कोरोना ने लोगों की कमाई पर प्रहार कर आर्थिक स्थिति पतली कर दी, वहीं खाद्य तेलों (Vegetable oils) की रिकार्ड महंगाई ने इस बार होली पर रसोई में पकवान बनाना भी दूभर कर दिया है। क्योंकि पिछले साल की तुलना में खाद्य तेल 10% से लेकर 80% तक महंगे हो गए हैं।

    संभवत: पहली बार खाद्य तेलों में एक साल की अवधि में इतनी बड़ी तेजी दर्ज हुई है। इनके दाम बढ़ने की मुख्य वजह वैश्विक बाजार में भारी तेजी है और भारत अपनी खपत का करीब 70% आयात से पूर्ति करता है। वैश्विक स्तर पर भारी तेजी के कारण घरेलू बाजार में सरसों की नई आवक का दबाव भी घरेलू खाद्य तेलों की कीमतों पर नहीं बन पा रहा है।

    वैश्विक बाजार में कीमतें बेलगाम

    आयातक ऊंचे भाव पर खाद्य तेलों का बड़े पैमाने पर आयात (Import) करने से परहेज कर रहे हैं, इसलिए फरवरी में खाद्य तेलों का आयात 27% घटकर 7.96 लाख टन रह गया। चालू तेल वर्ष की नवंबर-फरवरी अवधि में आयात में 3.7% गिरावट दर्ज की गई। पिछले एक साल के दौरान उत्पादक देशों (मलेशिया, इंडोनेशिया, रूस, उक्रेन) में पैदावार घटने, भारी सट्टेबाजी और चीन की भारी मांग के कारण वैश्विक बाजार में आरबीडी पामोलीन (RBD Palmolein) का भाव 590 डॉलर से बढ़कर 1100 डॉलर, क्रूड पाम तेल (Crude Palm Oil) का भाव 580 डॉलर से बढ़कर 1120 डॉलर प्रति टन हो चुका है। सोयाबीन (Soya Oil) और सनफ्लावर (Sunflower Oil) में भारी तेजी है। ये तीनों ही तेल सबसे ज्यादा आयात होते हैं।

    भारी सट्टेबाजी से बढ़ रही कीमतें

    ‍व्यापारियों का कहना है कि वैश्विक बाजार में खाद्य तेलों के दाम करीब दोगुने तक महंगे होने का असर घरेलू बाजार पर पड़ा है। ‍वैश्विक बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह पाम उत्पादक देश मलेशिया व इंडोनेशिया में फसल कमजोर होने के साथ भारी सट्टेबाजी है। दूसरी ओर रूस और यूक्रेन जहां से सबसे ज्यादा सनफ्लावर तेल आयात किया जाता है। वहां पर भी फसल कमजोर है और बड़े सटोरियों का ‘खेल’ है। इसके अलावा चीन की भारी मांग ‘आग में घी’ का काम कर रही है। 

    बढ़ रही है आयात निर्भरता

    खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने कहा कि हर साल देश में खपत बढ़ रही है और मांग के अनुरूप तिलहन का उत्पादन बढ़ नहीं पा रहा है। जिससे भारत की आयात निर्भरता बढ़ रही है। भारत अपनी खपत का 70% तेल आयात करना पड़ता है। ऐसे में केंद्र सरकार को तिलहन की खेती पर किसान किस तरह वापस आए, इसके उपाय करने चाहिए। तत्कालिक राहत के लिए खाद्य तेलों पर लागू 5% जीएसटी को 0% कर देना चाहिए।

    जल्द राहत की उम्मीद नहीं

    ‘कैट’ के मुंबई महानगर महामंत्री तरूण जैन ने कहा कि पाम की फसल कमजोर होने के साथ ही अमेरिका में सोयाबीन की बुआई प्रतिकूल मौसम के कारण ढंग से नहीं हो पा रही है। इस कारण भी खाद्य तेलों में तेजी को बल मिल रहा है। खाद्य तेलों में तेजी की धारणा की वजह से सरसों की पैदावार ज्यादा होने के बावजूद सरसों तेल सस्ता नहीं हो पा रहा है। आगे भी खाद्य तेलों की कीमतों में ज्यादा गिरावट की उम्मीद नहीं दिख रही है। हालांकि ऊंचे स्तर पर दाम थोड़ा-बहुत कम हो सकते हैं।