The situation in Delhi is not "frightening", patients are recovering quickly: Kejriwal

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नयी दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को शहर की आम आदमी पार्टी सरकार से पूछा कि वह कोविड-19 की प्राथमिक जांच के तौर पर “रैपिड एंटीजन टेस्ट” क्यों करा रही है, जबकि इसकी रिपोर्ट गलत आने की दर बहुत ज्यादा है। अदालत ने कहा कि “रैपिड एंटीजन टेस्ट” की नेगेटिव रिपोर्ट के गलत साबित होने की दर अत्यधिक है।

अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली सरकार भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा जारी दिशानिर्देशों का “सख्ती से” अनुपालन करे और इस संबंध में अपने मन मुताबिक कार्य नहीं करे। उच्च न्यायालय ने इस बात का भी जिक्र किया कि दिल्ली में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) द्वारा किये गये सीरो सर्वे (रक्त के नमूनों की जांच) से यह संकेत मिला है कि 22.86 प्रतिशत से अधिक आबादी कोविड-19 से पीड़ित हुई है, जबकि उन्हें यह महसूस नहीं हुआ कि वे संक्रमित हैं क्योंकि उनमें शायद इसके लक्षण नहीं थे।

न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि इस तरह के परिदृश्य में दिल्ली सरकार अपने अग्रिम मोर्चे के जांच के तौर पर रैपिड एंटीजन टेस्ट के साथ कैसे आगे बढ़ सकती है, जबकि इसकी गलत नेगेटिव रिपोर्ट आने की दर बहुत अधिक है और आरटी/ पीसीआर जांच कराने की केवल उन्हीं को लोगों को सलाह दी जा रही है, जिनमें संक्रमण के लक्षण दिख रहे हैं। अदालत ने कहा कि आईसीएमआर ने नहीं कहा है कि जांच इस तरीके से करानी होगी।

दिल्ली सरकार के वकील सत्यकाम ने पीठ से कहा कि स्वास्थ्य विभाग आईसीएमआर के उन दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन कर रहा है, जिनमें कहा गया है कि रैपिड एंटीजन टेस्ट की रिपोर्ट जिन लोगों की नेगेटिव आएगी और उनमें इंफ्लुएंजा जैसे लक्षण दिखेंगे, उनकी आरटी/पीसीआर जांच कराई जाए। वहीं, अधिवक्ता राकेश मेहरोत्रा ने अदालत से कहा कि आईसीएमआर ने बस इतना कहा है कि जिन लोगों में इंफ्लुएंजा जैसे लक्षण दिखेंगे और रैपिड एंटीजन टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव आएगी, उन्हें आरटी/पीसीआर जांच से गुजरना होगा और यह रणनीति उन लोगों पर लागू नहीं होती जो श्वसन संबंधी गंभीर बीमारी (एसएआरआई) से ग्रसित हैं। दिल्ली में जांच की संख्या बढ़ाने और तेजी से रिपोर्ट प्राप्त करने की मेहरोत्रा की याचिका पर अदालत सुनवाई कर रही है।

दिल्ली सरकार ने कहा कि अधिक जोखिमग्रस्त लोगों की अपनी सूची में उसने एसएआरआई को भी शामिल किया है, जिन्हें पहले रैपिड एंटीजन टेस्ट से गुजरना होगा। आईसीएमआर का प्रतिनिधित्व कर रहे केंद्र सरकार के वकील अनुराग आहलूवालिया ने पीठ से कहा कि उसने कभी भी रैपिड एंटीजन टेस्ट के लिये एसएआरआई की सिफारिश नहीं की और यह इंफ्लुएंजा जैसे रोगों के समान नहीं है। आईसीएमआर से डॉ. निवेदिता गुप्ता ने भी अदालत से कहा कि इसने कभी नहीं कहा कि रैपिड एंटीजन टेस्ट में नेगेटिव रिपोर्ट आने वाले कोविड-19 के गैर लक्षण वाले मरीज को आरटी/पीसीआर जांच नहीं करानी होगी। इसने सिर्फ यह कहा था कि कोविड के लक्षण वाले रैपिड एंटीजन टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आये मरीजों को प्राथमिकता दी जाए।

आईसीएमआर की दलील पर गौर करते हुए अदातल ने दिल्ली सरकार से कहा कि कोविड-19 की जांच पर उसके दिशानिर्देशों का उसे सख्ती से पालन करना होगा। अदालत ने कहा, ‘‘आप आईसीएमआर के परामर्श में बदलाव क्यों कर रहें? आप अपने मुताबिक इसकी व्याख्या नहीं कर सकते। ” कोविड-19 की जांच के लिये चिकित्सक की सलाह की जरूरत होने के मुद्दे को लेकर भी दिल्ली सरकार को अदालत की नाराजगी का सामना करना पड़ा।

अदालत ने दिल्ल सरकार से पूछा कि उसने मई में निजी चिकित्सकों को कोविड-19 के लिये नुस्खा लिखने की इजाजत कैसे दे दी जबकि आईसीएमआर और स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसकी एक जुलाई को इजाजत दी। यही कारण है कि लोगों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हुई है। अदाल ने आईसीएमआर को सीरो सर्वे के मद्देनजरजांच रणनीति पर अदालत के समक्ष अपना अगला परामर्श पेश करने को कहा और विषय की अगली सुनवाई चार अगस्त के लिये सूचीबद्ध कर दी। दिल्ली सरकार को भी तब तक की गई जांच की अद्यतन स्थिति रिपोर्ट देने को कहा गया है। (एजेंसी)