बच्चों की इम्यूनिटी मजबूत, स्कूल खोलने का सार्थक सुझाव

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    कोरोना महामारी का बहुत बुरा असर स्वास्थ्य के अलावा शिक्षा पर भी पड़ा. स्कूल बंद रहने से छात्र आनलाइन पढ़ाई पर निर्भर हो गए. उन साधनहीन परिवारों के लिए भारी परेशानी हो गई जिनके पास बच्चों के लिए मोबाइल, लैपटाप नहीं था. जहां सिग्नल कमजोर है और इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है ऐसे ग्रामीण व दुर्गम क्षेत्रों में बच्चे पढ़ाई से वंचित रह गए. वैसे भी आनलाइन शिक्षा किसी भी तरह क्लासरूम शिक्षा का परिपूर्ण या सार्थक विकल्प नहीं बन सकती. 

    मार्च 2019 अर्थात कोरोना की पहली लहर के समय से ही देश के तमाम स्कूल बंद है. इस वजह से बच्चों का संपूर्ण शैक्षणिक विकास नहीं हो पा रहा है. स्कूव में पढ़ाई के अलावा खेल तथा एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी होती है. क्लास का अनुशासन अलग रहता है जहां शिक्षक का ध्यान सभी बच्चों पर रहता है. आनलाइन शिक्षा में यह सब संभव नहीं हो पा रहा है. ऐसी स्थिति में एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने बहुत ही सही और व्यावहारिक परामर्श दिया है. उन्होंने कहा कि देश के बच्चों की इम्यूनिटी मजबूत है जिसे देखते हुए अब हमें स्कूलों को फिर से खोलने पर सहमत हो जाना चाहिए. 

    5 प्रतिशत से कम पाजिटिविटी रेट वाले स्थानों के लिए यह योजना बनाई जा सकती है. यदि संक्रमण फैलने के संकेत मिलते हैं तो स्कूलों को तुरंत बंद भी किया जा सकता है. इतने पर भी जिलों में बच्चों को आल्टरनेट डे (एक दिन छोड़कर) स्कूलों में लाने पर विचार करना चाहिए. इसी प्रकार इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के डा. बलराम भार्गव ने कहा कि स्कूल खोले जा सकते हैं क्योंकि छोटे बच्चों में वयस्कों की तुलना में संक्रमण का खतरा काफी कम है. यूरोप के कई देशों ने कोरोना के बढ़ते मामलों के बावजूद स्कूल खोले हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि शुरुआती दौर में प्राथमिक पाठशालाएं खोली जाएं. इसके बाद सेकेंड्री स्कूल खोले जा सकते हैं.