बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने देश में संघात्मक शासन प्रणाली का हवाला देते हुए विपक्षी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से एक जुट होने को कहा. इसी बहाने ममता विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहीं हैं. बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा की जांच करने के लिए केंद्रीय टीम भेजने राज्यों के नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करने, विपक्षी राज्यों के वित्त मंत्रियों पर जीएसटी काउंसिल में राजनीति करने का आरोप लगाने जैसे मामलों का बात-बात में केंद्र को चुनौती देने वाली ममता ने कहा कि प्रधानमंत्री 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों को मुफ्त वैक्सीन देने का श्रेय क्यों ले रहे हैं.
यह काम तो जनता के पैसे से किया जा रहा है. केंद्र और राज्यों के संबंध कैसे हों यह मुद्दा संघीय व्यवस्था में काफी महत्व रखता है. प्रधानमंत्री मोदी ने सहयोगात्मक संघवाद (कों आपरेटिव फेडरलिज्म) का वादा किया था जो पूरा नहीं हुआ. केंद्र और राज्यों के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है. विपक्ष शासित राज्यों के प्रति बीजेपी का अनुदार रवैया बना हुआ है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पार्टी अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की बात कह डाली थी. यद्यपि केंद्र और राज्यों के बीच टकराव का सिलसिला पहले से चला आ रहा है. 1959 में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने केरल की ईएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त किया था.
इसी तरह इंदिरा गांधी ने पीएम रहते हुए धारा 356 का इस्तेमाल करते हुए 6 राज्यों की गैर कांग्रेसी सरकारों को बर्खास्त किया था. केंद्र व राज्यों के संबंधों पर विचार करने के लिए 1983 में सरकारिया आयोग का गठन किया गया था. 1994 में एसआर बोम्बई मामले का फैसला आया. इसमें केंद्र को संकेत था कि वह राज्यों की जरूरतों पर गौर करे तथा उनके मामलों में आश्वासन हस्तक्षेप न करे. केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग में ही देश की प्रगति हो सकती है. उनके बीच टकराव होते रहने से जनहित प्रभावित होता है. इसके साथ यह भी जरूरी है कि केंद्र में मजबूत सरकार होनी चाहिए अन्यथा अस्थिरता फैल जाएगी.