यह समय न तो आरोप-प्रत्यारोप करने का है, न बातों का जमा खर्च करने का. यह राजनीतिक बैर भुनाने या एक दूसरे को नीचा दिखाने की भी घड़ी नहीं है. इस वक्त समूचे देश में कोरोना संकट चरम पर है. सभी तरफ फैलते संक्रमण व मौत के बढ़ते आंकड़ों से हाहाकार मचा हुआ है. ऐसे में विधानसभा और संसद का विशेष सत्र बुलाने जैसी मांगों का कितना औचित्य है? क्या वहां परस्पर दोषारोपण और शाब्दिक झड़प से कोरोना संकट दूर हो जाएगा? जनता को वैक्सीन, बेड, ऑक्सीजन, दवाइयां चाहिए. समय पर एम्बुलेंस मिलनी चाहिए. विधानसभा या संसद की बहस से कोरोना पीड़ितों का इलाज नहीं होने वाला! अभी तो दलगत मतभेद परे रखकर सभी को इस संकट से निपटने के लिए एकजुट होना होगा.
दो गज की दूरी, बार-बार हाथ धोने जैसे एहतियाती नियमों का पालन करने के लिए गंभीरता दिखाते हुए सभी को सजग करना जरूरी है. राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए जैसा जुनून दिखा रही हैं, वैसा कोरोना से जंग के लिए क्यों नहीं दिखातीं? अपनी छवि बचाने के लिए कुछ सरकारें जिनमें यूपी की योगी सरकार भी शामिल है, लॉकडाउन नहीं लगा रही है. जिस समय सारी बैठकें वीडियो कांफ्रेसिंग से हो रही हैं तथा स्वयं पीएम भी मुख्यमंत्रियों के साथ वर्चुअल तरीके से सम्मेलन कर रहे हैं, तब विधानसभा व संसद के सत्र की बात क्यों की जा रही है? जब संक्रमण तेजी से फैल रहा है तो क्या सत्र में शामिल सदस्यों को छोड़ेगा? बीजेपी महाराष्ट्र में विधानसभा सत्र की मांग कर रही है ताकि आघाड़ी सरकार को निशाने पर ले सके.
दूसरी ओर शिवसेना ने यह दलील देते हुए कि कोरोना से देश में युद्ध जैसी स्थिति है, संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है. जाहिर है कि इसके पीछे दोनों ही पार्टियों की अपनी-अपनी राजनीति है. उन्हें जनस्वास्थ्य की बजाय बहस कर अपना वर्चस्व सिद्ध करना है. ये नेता चर्चा करते रहेंगे और लोग मरते रहेंगे. जब रोम जल रहा था तब भी तो वहां का सम्राट नीरो मजे से बांसुरी बजा रहा था!