मुंबई : सिनेमा (Cinema) जगत (World) में 80 के दशक के दौरान दर्शकों (Audience) के दिलों पर राज करने वाले अभिनेता (Actor) मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty) का कहना है, कि अपने करियर (Career) के शीर्ष पर उन्हें इस सच्चाई (Truth) का पता चला कि शोहरत (Fame) से केवल प्रशंसकों (Fans) की भीड़ ही नहीं, बल्कि अकेलेपन का दंश भी झेलना पड़ता है। मिथुन चक्रवर्ती ने 1976 में आई फिल्मकार मृणाल सेन की राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्म ‘मृगया’ से अभिनय की शुरुआत की थी।
वर्ष 1979 में आई खुफिया थ्रिलर ‘सुरक्षा’ से 80 के दशक में उनके स्टारडम का आगाज हुआ। इसके बाद ‘डिस्को डांसर’, ‘डांस डांस’, ‘प्यार झुकता नहीं’, ‘कसम पैदा करने वाले की’ और ‘कमांडो’ जैसी फिल्मों ने चक्रवर्ती को सफलता दिलाई। यह वह समय था जब कहा जाता था कि मिथुन चक्रवर्ती साल में 100 से ज्यादा फिल्में करते हैं और एक दिन में चार-चार फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त रहते हैं। प्रशंसकों ने उन्हें ‘डांसिंग स्टार’ और ‘डिस्को डांसर’ का खिताब भी दिया था। अभिनेता ने मीडिया से बातचीत में कहा ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं सुपरस्टार बनूंगा, लेकिन जब मैं देश में नंबर फिल्म स्टार बन गया तब मैंने पाया कि… हे भगवान, यहां तो मैं एकदम अकेला हूं।
मैं सच में बेहद अकेला था, क्योंकि हर व्यक्ति सोचता था कि मैं उनकी पहुंच से बाहर हूं।’ जैसे-जैसे चक्रवर्ती का कद बढ़ता गया, वैसे-वैसे उनके स्टारडम का मिथक भी बढ़ता गया। जिसने उनके निजी जीवन में दखल देना शुरू कर दिया। अभिनेता ने कहा कि वह फिल्मी दुनिया की सच्चाई के साथ जी रहे थे। वह सबसे चहेते स्टार थे, लेकिन हर कोई उनसे बात तक करने से डरता था। उन्होंने कहा, ‘वे कहते थे कि दादा से दूर रहो, वह बहुत बड़ा हो गया है। मेरे दोस्त मुझसे डरते थे। वह बेहद विचित्र माहौल था। मैं सुबह उठता था, शूटिंग पर जाता था, वापस आकर अकेला हो जाता था। सबसे बड़ा स्टार होने के साथ-साथ मैं अकेला भी था, लेकिन यह भी जीवन का एक हिस्सा है।’ चक्रवर्ती ने कहा कि स्टारडम का अर्थ केवल एक अच्छा अभिनेता होना ही नहीं, बल्कि एक अच्छा मनुष्य होना भी है।’ (एजेंसी)