Karunanidhi: At the age of just 14, speech inspired politics

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एम करुणानिधि भारतीय राजनीति के वरिष्ठ नेताओं में से थे. वह राजनीतिक दल द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डी.एम.के) के प्रमुख थे. राज्य में डी.एम.के के संस्थापक सी एन अन्नाथुराई की मृत्यु के बाद वे पार्टी प्रमुख बने. करुणानिधि ने पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद को संभाला.

जीवन परिचय: एम करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को ब्रिटिश भारत के नागपट्टिनम के तिरुक्कुभलइ में दक्षिणमूर्ति के रूप में हुआ था. उनके पिता मुत्तुवेल और माता अंजुगम थीं. वे हिन्दू समुदाय से संबंध रखते थे. करुणानिधि एक राजनेता होने के साथ-साथ समाज सुधारक और लोगों के बीच में रहकर काम करने वाले नेता थे. करुणानिधि ने अपने जीते जी अपना मकान दान कर दिया. उनकी इच्छानुसार उनकी मृत्यु के बाद इस घर को गरीबों के इलाज के लिए अस्पताल में तब्दील कर दिया गया. वे मांसाहारी से शाकाहारी बने थे.

राजनीति: महज 14 साल की उम्र में जस्टिस पार्टी के अलगिरिस्वामी के एक भाषण से प्रेरित होकर करुणानिधि ने राजनीति में प्रवेश किया और हिंदी विरोधी आंदोलन में कूद पड़े. उन्होंने अपने इलाके के युवाओं के लिए एक संगठन की स्थापना की. बाद में उन्होंने द्रविड़ राजनीति के लिए मंद्रम नामक छात्र संगठन भी बनाया. उन्होंने अपने संगठन के सदस्यों के लिए एक अखबार की स्थापना की, जो बाद में डी एम के पार्टी का आधिकारिक अखबार बना.

वर्ष 1957 में करुणानिधि पहली बार विधानसभा चुनाव जीत कर तमिलनाडु विधानसभा पहुंचे. वह 1957 से 2006 तक तमिलनाडु के विभिन्न विधानसभा सीटों से चुनाव जीतकर विधानसभा के सदस्य बनते रहे. 1967 में पहली बार उन्हें सरकार में शामिल किया गया और लोक निर्माण विभाग का मंत्री बनाया गया. 1969 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अन्नादुराई के निधन के बाद उन्हें पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. वह लगातार 5 बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे. अपने 60 साल के राजनीतिक करियर में अपनी भागीदारी वाले हर चुनाव में जिस सीट से चुनाव लड़ा हर बार रिकॉर्ड मतों से विजयी हुए. 

2004 में लोकसभा चुनावों के दौरान करुणानिधि ने तमिलनाडु और पुडुचेरी में डीएमके के नेतृत्व वाली डीपीए का नेतृत्व किया था. दोनों राज्यों की सभी 40 लोकसभा सीटें जीतने में वे कामयाब रहे थे. 2009 के चुनावों में उन्होंने डीएमके के सांसदों की संख्या को 16 से बढ़ाकर 19 कर दी थी और यूपीए को तमिलनाडु तथा पुडुचेरी में 28 सीटें जितवाई थी. करुणानिधि, राजनेता के साथ-साथ एक सफल नाटककार और सफल लेखक भी थे. 

करुणानिधि ने तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के रूप में अपने करियर का शुभारंभ किया। अपनी बुद्धि और भाषण कौशल के माध्यम से वे बहुत जल्द एक राजनेता बन गए। वे द्रविड़ आंदोलन से जुड़े थे और उसके समाजवादी और बुद्धिवादी आदर्शों को बढ़ावा देने वाली ऐतिहासिक और सामाजिक (सुधारवादी) कहानियाँ लिखने के लिए मशहूर थे. उन्होंने तमिल सिनेमा जगत का इस्तेमाल करके पराशक्ति नामक फिल्म के माध्यम से अपने राजनीतिक विचारों का प्रचार करना शुरू किया. पराशक्ति तमिल सिनेमा जगत के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, क्योंकि इसने द्रविड़ आंदोलन की विचारधाराओं का समर्थन किया और इसने तमिल फिल्म जगत के दो प्रमुख अभिनेताओं शिवाजी गणेशन और एस एस राजेन्द्रन से दुनिया को परिचित करवाया.

साहित्य: करुणानिधि राजनेता के साथ-साथ बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे. तमिल साहित्य में उनका योगदान अतुलनीय है. उन्होंने कविताएं, चिट्ठियाँ, पटकथाएं, उपन्यास, जीवनी, ऐतिहासिक उपन्यास, मंच नाटक, संवाद, गाने इत्यादि शामिल है. उन्होंने तमिल भाषा मे कई कविताएं, निबंध और किताबें भी लिखी है.

करुणानिधि द्वारा लिखी गई पुस्तकों में रोमपुरी पांडियन, तेनपांडि सिंगम, वेल्लीकिलमई, नेंजुकू नीदि, इनियावई इरुपद, संग तमिल, कुरालोवियम, पोन्नर शंकर, और तिरुक्कुरल उरई उनके द्वारा लिखी प्रमुख और सबसे ज्यादा चर्चित पुस्तकें हैं. उन्होंने 100 से ज्यादा पुस्तकें लिखी है.

निधन: करुणानिधि का रक्तचाप कम होने की वजह से उन्हें 28 जुलाई को  गोपालपुरम स्थित आवास से कावेरी अस्पताल लाया गया था. पहले वह वार्ड में भर्ती थे, बाद में हालत बिगड़ने पर उन्हें आईसीयू में भर्ती किया गया. जिसके बाद 7 अगस्त 2018 को 94 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.

-मृणाल पाठक