Kerala Journalist, Supreme Court

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नयी दिल्ली. उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि हाथरस जाते समय रास्ते में गिरफ्तार किये गये केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन से एक वकील जेल में मुलाकात कर सकता है और अदालतों में उनका प्रतिनिधित्व करने के लिये निर्देश और उनके हस्ताक्षर ले सकता है।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने इस मामले में 16 नवंबर की कार्यवाही की कुछ मीडिया रिपोर्ट की आलोचना की और उनके इस कथन को ‘अनुचित’ करार दिया कि शीर्ष अदालत ने पत्रकार को राहत देने से इंकार किया।

पीठ ने कहा, “हमारे पहले के आदेश के बारे में बहुत ही अनुचित रिपोर्टिंग हुई। इसमें कहा गया कि हमने आपको राहत देने से इंकार किया।”

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “पिछली बार गलत रिपोर्टिंग हुयी। मैं गलत रिपोर्टिंग को लेकर चिंतित हूं। रिपोर्ट में कहा गया कि पत्रकार को राहत देने से इंकार किया गया।” इस मामले में याचिकाकर्ता केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि बहुत ज्यादा गलत रिपोर्टिंग हुयी है और न्यायालय को इसका संज्ञान लेना चाहिए।

इस मामले की संक्षिप्त सुनवाई के दौरान उप्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाकर्ता संगठन के इस दावे का प्रतिवाद किया कि कप्पन को उनके वकीलों और परिवार के सदस्यों को मुलाकात नहीं करने दी गयी और इस वजह से वह राहत के लिये इलाहाबाद उच्च न्यायालय नहीं जा सके।

मेहता ने कहा कि पहले भी मुलाकात से इंकार नहीं किया गया और अब भी नहीं, वकील जाकर जेल में उनसे मुलाकात कर सकते हैं। पीठ ने अपने आदेश में कहा, “सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि आरोपी जिस जेल में बंद है, वहां निर्देश प्राप्त करने और वकालतनामे पर हस्ताक्षर लेने के लिये वकील उससे मुलाकात कर सकते हैं। यह वक्तव्य दर्ज किया गया और तद्नुसार आदेश दिया जाता है।”

न्यायालय ने अब इस प्रकरण को एक सप्ताह बाद सूचीबद्ध कर दिया और रजिस्ट्री से कहा कि इस मामले में उप्र सरकार द्वारा जवाबी हलफनामा दाखिल किये जाने की पुष्टि करे। पीठ ने कहा कि इस याचिका पर पूरी तरह से सुनवाई की जायेगी। इसके साथ ही उसने सिब्बल से कहा कि इस दौरान वह अपना प्रत्युत्तर दाखिल करें।

उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को न्यायालय में दाखिल हलफनामे में दावा किया कि हाथरस के रास्ते में गिरफ्तार केरल का पत्रकार सिद्दीकी कप्पन ‘पत्रकारिता की आड़ में’ जातीय तनाव पैदा करने और कानून व्यवस्था बिगाड़ने की ‘निश्चित योजना’ के तहत वहां जा रहा था। शीर्ष अदालत ने पांच अक्टूबर को हाथरस जाते समय रास्ते में इस पत्रकार की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर 16 नवंबर को उप्र सरकार से जवाब मांगा था।

सिब्बल ने इस पत्रकार को जमानत पर रिहा करने का अनुरोध करते हुये कहा था कि उप्र पुलिस द्वारा मथुरा में दर्ज प्राथमिकी में इसके खिलाफ कुछ भी नहीं है। इस मामले में पुलिस ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया या पीएफआई से कथित रूप से संबंध रखने के आरोप में चार व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के साथ ही गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत प्राथमिकी दर्ज की है। पीएफआई पर पहले भी इस साल के शुरू में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशव्यापी विरोध के लिये धन मुहैया कराने के आरोप लग चुके हैं।

पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को पांच अक्टूबर को हाथरस जाते समय रास्ते में गिरफ्तार किया गया था। वह हाथरस में सामूहिक बलात्कार की शिकार हुयी दलित युवती के घर जा रहे थे। इस युवती की बाद में सफदरजंग अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी। इस गिरफ्तारी के विरोध में यूनियन ने शीर्ष अदालत में बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर रखी है और इस पत्रकार को तत्काल पेश करने तथा ‘‘गैरकानूनी हिरासत” से रिहा करने का अनुरोध किया गया है। याचिका में यह आरोप भी लगाया गया है कि इस गिरफ्तारी के बारे में कप्पन के परिवार या सहयोगियों को कोई जानकारी नहीं दी गयी।

दूसरी ओर, पुलिस का दावा है कि उसने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से संबंध रखने वाले चार व्यक्तियों को मथुरा में गिरफ्तार किया है उनके नाम-मल्लापुरम निवासी सिद्दीकी, मुजफ्फरनगर निवासी अतीकुर रहमान, बहराइच निवासी मसूद अहमद और रामपुर निवासी आलम हैं। मथुरा की जिला जेल के वरिष्ठ जेल अधीक्षक द्वारा दाखिल हलफनामे के अनुसार, “याचिकाकर्ता ने झूठ का सहारा लिया है और उसने इस मामले को सनसनीखेज बनाने के इरादे से शपथ लेकर झूठे बयान दिये हैं, जो इन तथ्यों से साफ हो जाते हैं।”

हलफनामे में कहा गया है, ‘‘हिरासत में लिया गया व्यक्ति सिद्दीकी कप्पन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का कार्यालय सचिव है, जो केरल के 2018 में बंद हो चुके अखबार का पहचान पत्र दिखाकर पत्रकार होने की आड़ लेता है।”

हाथरस के एक गांव में 14 सितंबर, 2020 को 19 वर्षीय दलित युवती से कथित सामूहिक बलात्कार और बाद में पीड़ित की अस्पताल में मृत्यु की घटना सुर्खियों में रही है। आरोप है कि प्रशासन ने पीड़ित परिवार की सहमति के बगैर ही उसके पार्थिव शरीर का देर रात में ही अंतिम संस्कार कर दिया, जिसका जबर्दस्त विरोध हुआ था। इस मामले का इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्वत: ही संज्ञान लिया था ओर उत्तर प्रदेश सरकार के पुलिस तथा प्रशासन के आला अधिकारियों को नोटिस जारी किये थे और पीड़ित परिवार के सदस्यों तथा गवाहों को बयान दर्ज कराने के लिये बुलाया था। (एजेंसी)