नई दिल्ली: जिस पल का समस्त देश वासियों और राम लला (Lord Ram) के भक्तों को बेसब्री से इंतजार था वो शुभ घड़ी करीब आ गई है। जल्द ही सबके प्रिय भगवान राम अयोध्या के मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) में विराजे गे। वहीं अयोध्या में आज से ही भगवान राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठानशुरू होने जा रहे हैं। ये कार्यक्रम लगातार 6 दिन तक चलेंगे। आज प्रायश्चित्त और कर्मकूटि पूजन अनुष्ठान किया जाएगा। अयोध्या के सरयू तट पर विष्णु पूजा और गौ दान होगा।
इस दिन आसन पर विराजेंगे रामलला
17 जनवरी यानी बुधवार को राम लला अपने मंदिर में प्रवेश करेंगे। अगले दिन यानी 18 जनवरी को रामलला की श्यामवर्ण मूर्ति गर्भगृह में विराजित होगी।
प्राण प्रतिष्ठा और संबंधित आयोजनों का विवरण:
1. आयोजन तिथि और स्थल: भगवान श्री रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा योग का शुभ मुहूर्त, पौष शुक्ल कूर्म द्वादशी, विक्रम संवत 2080, यानी सोमवार, 22 जनवरी, 2024 को आ रहा है।
2. शास्त्रीय पद्धति और समारोह-पूर्व परंपराएं: सभी शास्त्रीय परंपराओं…
— Shri Ram Janmbhoomi Teerth Kshetra (@ShriRamTeerth) January 15, 2024
फिर 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होगी। समारोह के अनुष्ठान की सभी प्रक्रियाओं का समन्वय, समर्थन और मार्गदर्शन करने वाले 121 आचार्य होंगे। श्री गणेशवर शास्त्री द्रविड़ सभी प्रक्रियाओं की निगरानी, समन्वय और दिशा-निर्देशन करेंगे। काशी के श्री लक्ष्मीकांत दीक्षित मुख्य आचार्य होंगे।
प्रतिष्ठा का मुहूर्त
आपको बतादें, 22 जनवरी को श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य रामलला के मंदिर में विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम में मध्यान्ह अभिजीत मुहूर्त में होगा। यह भव्य और ऐतिहासिक प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को दोपहर 12.20 बजे शुभ मुहूर्त में होगी।
इनकी होगी उपस्तिथि
प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित अन्य विशिष्टजनों की गरिमामयी उपस्थिति में सम्पन्न होगा।
श्री रामजन्मभूमि मंदिर प्रांगण प्राण-प्रतिष्ठा के साक्षी बनने के लिए देश की सभी आध्यात्मिक धार्मिक मत, पंथ, संप्रदाय, उपासना पद्धतियों के सभी अखाड़ों के आचार्य, सभी पंरपराओं के आचार्य, सभी सम्प्रदायों के आचार्य, 150 से अधिक परम्पराओं के सन्त, महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, श्री महंत, महंत, नागा साथ ही 50 से अधिक आदिवासी, गिरिवासी तटवासी, द्वीपवासी जनजाती परंपराओं की उपस्थिति भारत वर्ष के निकटवर्ती इतिहास में पहली बार हो रही है। यह अपने आप में विशिष्ट होगा।