Kerala Governor Arif Mohammed Khan
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    कोच्चि (केरल). केरल में राजभवन और वाम सरकार के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर खींचतान के बीच राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने सोमवार को आरोप लगाया कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) शासित राज्य में “कुलीनतंत्र” की एक व्यवस्था है और यह सरकारी नौकरियों में पार्टी कार्यकर्ताओं की नियुक्ति के मामलों से स्पष्ट तौर पर जाहिर है।

    कुलपति की नियुक्तियों सहित विभिन्न मुद्दों पर राजभवन और वाम सरकार के बीच खींचतान के बीच खान ने दावा किया कि वाम संगठनों के कार्यकर्ताओं ने उन्हें “गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी” दी थी।

    खान ने यहां मीडिया के साथ बातचीत के दौरान, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन पर राजनीतिक रूप से निशाना साधते हुए दावा किया कि वह उन्हें बहुत अच्छी तरह से जानते हैं और अनुभवी मार्क्सवादी नेता का कन्नूर जिले के एक पुलिस थाने से तब भागने का इतिहास है जब उन्होंने हत्या के आरोपी को जबरन पुलिस हिरासत से छुड़ाने की कोशिश की थी और एक युवा आईपीएस अधिकारी ने रिवॉल्वर निकाल ली थी। अतिथि गृह में आयोजित संक्षिप्त बातचीत सत्र में खान ने दो समाचार चैनलों के पत्रकारों को बाहर कर दिया। खान ने उक्त दोनों समाचार चैनलों पर आरोप लगाया कि वे कैडर हैं जो मीडिया के तौर पर काम कर रहे हैं।

    राज्य में सत्तारूढ़ एलडीएफ और विपक्षी कांग्रेस दोनों ने खान के इस कृत्य की कड़ी आलोचना की। खान ने माकपा शासित तिरुवनंतपुरम निगम के घटनाक्रम का उल्लेख किया जिसमें महापौर कार्यालय ने कथित तौर पर माकपा नेतृत्व को पत्र लिखकर पार्टी के कार्यकर्ताओं की “प्राथमिकता सूची” मांगी, जिन्हें नगर निकाय में अस्थायी पदों पर नियुक्त किया जाना है। खान ने आरोप लगाया कि पार्टी के कार्यकर्ताओं और वामपंथी नेताओं के रिश्तेदारों को नौकरी मिल रही है, जबकि योग्य युवाओं को रोजगार की तलाश में राज्य छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

    राज्यपाल ने आरोप लगाया, “जिस पत्र पर चर्चा हो रही है वह अपनी तरह का पहला नहीं है। ऐसे कई अन्य पत्र मौजूद हैं। वे बहुत जल्द प्रकाश में आएंगे। केरल में वे एक कुलीनतंत्र की तरह बन गए हैं।”

    उन्होंने कहा कि केरल में युवाओं को नौकरी की तलाश में दूसरे राज्यों और विदेशों में जाना पड़ता है, “लेकिन माकपा नेतृत्व के रिश्तेदारों को विश्वविद्यालयों में अस्थायी नौकरियों से लेकर स्थायी नौकरियों तक में समायोजित किया जाता है। इसके कैडर को ही भर्ती किया जा रहा है।”

    उन्होंने यह भी दावा किया कि लोग पूछ रहे हैं कि क्या केरल सरकार के तहत सभी नौकरियां कार्यकर्ताओं के लिए आरक्षित हैं और विश्वविद्यालय की नौकरियां तिरुवनंतपुरम में शक्तिशाली लोगों के लिए हैं? महापौर आर्य राजेंद्रन ने रविवार को स्पष्ट रूप से इनकार करते हुए कहा था कि ऐसा कोई पत्र किसी को नहीं भेजा गया था और मुख्यमंत्री से “फर्जी पत्र” के खिलाफ शिकायत की थी। राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी हैं।

    उन्होंने आरोप लगाया कि कुलपतियों को उनके कर्तव्यों का पालन करने की अनुमति नहीं है। हाल ही में उनके द्वारा केरल के अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति के रूप में नियुक्त किए गए सिजा थॉमस के खिलाफ एसएफआई के विरोध प्रदर्शन का उल्लेख करते हुए, खान ने कहा, ‘‘अभी, एक ऐसी स्थिति बनायी जा रही है जहां कुलपतियों को कर्तव्य निर्वहन से रोका जा रहा है। कानून और व्यवस्था के मुद्दे पैदा किए जा रहे हैं। मुझे गंभीर परिणाम की धमकी दी गई है। मैं सामना करने के लिए तैयार हूं। वह जहां आना चाहें आ सकते हैं।”

    उन्होंने 15 नवंबर को राजभवन तक विरोध मार्च को लेकर भी वाम दल और केरल के मुख्यमंत्री विजयन पर निशाना साधा। खान ने कहा, ‘‘अगर आप में हिम्मत है तो राजभवन में घुस जाओ, सड़क पर मुझ पर हमला करो। मैं उनके धरने का इंतजार कर रहा हूं। मैं अनुरोध करता हूं कि उसे 15 तारीख को नहीं। ऐसे दिन आयोजित करें जिस दिन मैं राज भवन में मौजूद रहूं। मैं आऊंगा। चलो एक सार्वजनिक बहस करते हैं।”

    राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच वाकयुद्ध तेज होने के बीच, खान ने विजयन पर राजनीतिक रूप से निशाना साधते हुए दावा किया कि वह यह कह रहे हैं कि उन्हें नहीं पता कि राज्यपाल कौन हैं। खान ने विजयन का माखौल उड़ाते हुए कहा, ‘‘मुख्यमंत्री इस हद तक जा रहे हैं कि वह कह रहे हैं कि वह नहीं जानते कि मैं कौन हूं… मुझे पता है कि कैसे कन्नूर में उन्होंने (विजयन) एक व्यक्ति को छुड़ाने की कोशिश की थी, जिसे पुलिस ने हत्या के एक मामले में गिरफ्तार किया था और उन्होंने जबर्दस्ती करने की कोशिश की थी। जब एक युवा आईपीएस अधिकारी ने रिवॉल्वर निकाली, तो उनके साथ क्या हुआ था, वह केवल वहीं जानते हैं, उन्हें अपने कपड़े बदलने के लिए घर वापस जाना पड़ा था।”

    सरकार के खिलाफ अपने हमले को जारी रखते हुए, राज्यपाल ने यह भी दावा किया कि माकपा के केंद्रीय नेतृत्व ने वित्त मंत्री के एन बालगोपाल की टिप्पणी से खुद को अलग कर लिया है जो कथित तौर पर देश की एकता को प्रभावित करती है। उन्होंने पहले बालगोपाल पर उनके पद की गरिमा का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था और मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को सूचित किया था। खान ने मुख्यमंत्री से ऐसी कार्रवाई करने को कहा जो ‘‘संवैधानिक रूप से उचित” हो। मुख्यमंत्री ने खान की मांग खारिज करते हुए अपने मंत्रिमंडलय के सहयोगी के प्रति विश्वास जताया था।

    खान ने कहा, ‘‘केंद्रीय नेतृत्व (माकपा के) ने वित्त मंत्री के बयान पर उनका साथ देने से इनकार कर दिया। जब रैली होगी, तो मैं सीताराम येचुरी से अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहूंगा कि क्या केरल के बाहर का कोई भी व्यक्ति राज्य की शिक्षा प्रणाली को नहीं समझ सकता, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश का कोई व्यक्ति। वे उस पर एक बयान जारी क्यों नहीं करते हैं?” जब पत्रकारों ने यह उल्लेख किया कि इस संबंध में ऐसा कोई सार्वजनिक बयान नहीं है, तो खान ने दावा किया कि इस मामले पर पार्टी की केंद्रीय समिति में चर्चा हुई थी। वाम सरकार के उनके खिलाफ अदालत जाने के कदम के बारे में पूछे जाने पर खान ने कहा कि उनका पद कोई निर्वाचित पद नहीं है और अगर वह किसी कानून तोड़ने के दोषी हैं तो कोई भी अदालत या राष्ट्रपति के पास जा सकता है।

    बातचीत की शुरूआत में खान ने माकपा नियंत्रित “कैराली न्यूज” और कोझीकोड स्थित “मीडिया वन” के पत्रकारों के वहां से चले जाने तक मीडिया से बात करने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, “मुझे आशा है कि यहां कोई भी मीडिया वन से नहीं है। मैं आपसे (मीडिया वन से) बात नहीं करना चाहता। बाहर निकलो। मैं आपसे बात नहीं करूंगा और मैं कैराली से बात नहीं करूंगा। कृपया… यदि यहां कोई मीडिया वन और कैराली से है तो कृपया यहां से चले जाएं।”

    सभी मीडिया घरानों को निर्देश दिया गया था कि वे सोमवार सुबह संवाददाता सम्मेलन में शामिल होने की अनुमति मांगने के लिए एक ई-मेल भेजें। राज्यपाल के आने से पहले, उनके कार्यालय के अधिकारियों ने मीडिया घरानों की सूची पढ़ी और कैराली और मीडिया वन सहित उनकी उपस्थिति की पुष्टि की। इस बीच, केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (केयूडब्ल्यूजे) ने मंगलवार सुबह राजभवन तक एक विरोध मार्च आयोजित करने का निर्णय किया है। (एजेंसी)