पटना: उच्च जाति समर्थक छवि से आगे निकलने की भाजपा की चाहत के बीच बिहार में उसके एक ओबीसी नेता सम्राट चौधरी (Samrat Choudhary) की पार्टी में सात साल से भी कम समय पहले शामिल होने के बाद से जबरदस्त प्रगति हुई है। सम्राट चौधरी रविवार को भाजपा विधायक दल के नेता चुने गये और वह नीतीश कुमार की अगुवाई वाली अगली राजग सरकार में उप मुख्यमंत्री बने ।
कांग्रेस से की थी शुरुआत
शकुनी चौधरी के पुत्र सम्राट चौधरी ने राजद सुप्रीमो की पत्नी राबड़ी देवी के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री के रूप में राजनीति के क्षेत्र में कदम रखा था। शकुनी चौधरी सेना में जवान रहने के बाद राजनीति में आये थे और उन्होंने कांग्रेस के सदस्य के रूप में अपनी राजनीति की शुरुआत की थी लेकिन लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की पार्टी में कई बार उन्होंने पाला बदला।
जदयू सरकार में हुए शामिल
सम्राट चौधरी 2005 में सत्ता से बेदखल होने के बाद काफी समय तक राजद के साथ रहे लेकिन 2014 में एक विद्रोही गुट का हिस्सा बन गए और जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली जदयू सरकार में शामिल हो गए। मांझी ने नीतीश कुमार के पद छोड़ने के बाद कुछ समय के लिए सत्ता संभाली थी। तीन साल बाद उनका जदयू से मोहभंग हो गया और वह भाजपा में शामिल हो गए।
बीजेपी ने बनाया प्रदेश अध्यक्ष
भाजपा ने एक तेजतर्रार वक्ता और कोइरी जाति के बड़े नेता के रूप में उनकी क्षमता को पहचाना। भाजपा ने सम्राट चौधरी को प्रदेश का उपाध्यक्ष बनाया और बाद में उन्हें बिहार विधान परिषद में भेजी। वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजग की जीत के बाद उन्हें नीतीश कुमार सरकार के मंत्रिमंडल में जगह मिली। सम्राट चौधरी को पिछले साल मार्च में राज्य भाजपा अध्यक्ष नामित किया गया था और उन्होंने लोकसभा सदस्य संजय जायसवाल की जगह ली थी जिसको लेकर राबड़ी देवी ने व्यंग्यात्मक टिप्पणी की थी कि ‘‘(भाजपा का) बनिया से दिल भर गया तो (उसने) महतो को (अध्यक्ष) बना दिया”।
कभी किया था नितीश का ही विरोध आज बने मंत्री
नीतीश कुमार के मुखर आलोचक माने जाने वाले सम्राट चौधरी ने पिछले साल जदयू सुप्रीमो द्वारा भाजपा का साथ छोड़ने के बाद अपने सिर पर पगड़ी बांध ली थी और कसम खायी थी कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद ही इसे वह खोलेंगे। पार्टी की ओर से अब उन्हें अपने पूर्व प्रतिद्वंद्वी के साथ तालमेल बिठाते हुए यह सुनिश्चित करने की चुनौती सौंपी गयी है कि उन्हें बिहार में कुर्मी (कुमार की जाति) और कोइरी (बोलचाल की भाषा में लव- कुश समुदाय) को पार्टी के पक्ष में कर आगामी लोकसभा चुनाव और उसके बाद 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन की संभावनाओं को बढ़ाना है ।