
नई दिल्ली. वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 (Article 370) निरस्त होने के बाद देशभर में जश्न का माहौल था। वहीं भारत सरकार (Indian Government) ने दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) और लद्दाख (Ladakh) बनाये। भारत के इस फैसले का पड़ोसी देश चीन (China) ने खुलकर विरोध किया। खासतौर पर लद्दाख को जम्मू कश्मीर से हटाकर केंद्र शासित प्रदेश बनाने का। चीन काफी समय से पूर्वी लद्दाख के कुछ क्षेत्र को अपना बताता रहा है। चीनी सैनिकों (Chines Soliders) की इस क्षेत्र में काफी भारी मात्रा में आवाजाही होती रही है। कई हिस्सों पर सैनिक कैंप लगाना, भारी मात्रा में गोला बारूद रखना। यह खबरें रोज भारत की प्रथम सुर्खियाँ होती थीं।
हिंसक झड़प की शुरुआत
पूर्वी लद्दाख के पैंगॉन्ग त्सो, गलवान घाटी, डेमचोक और दौलत बेग ओल्डी इलाके में भारतीय और चीनी सेना के बीच गतिरोध चल रहा था। पैंगॉन्ग त्सो सहित कई इलाके में चीनी सैन्य कर्मियों ने सीमा पर अतिक्रमण किया था। भारतीय सेना ने चीनी सेना की इस कार्रवाई पर कड़ी आपत्ति जताई थी और क्षेत्र में अमन-चैन के लिए तुरंत उससे पीछे हटने की मांग की थी। दोनों देशों में चल रहे गतिरोध के बीच गलवान घाटी (Galwan Vally) में 15/16 जून की रात चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच हिंसक झड़प (Violent Clash) हो गई थी। जिसमें 20 भारतीय जवान (Indian Soliders) शहीद हो गए थे। जबकि चीन के 35 सैनिक मारे गए थे। लेकिन चीन की ओर से झड़प में हताहतों की जानकारी नहीं दी गई थी। इस झड़प के बाद सीमा पर तनाव काफी बढ़ गया था।
लोहे की छड़ों से हमला, पथराव
भारतीय सेना के सूत्रों की मानें तो झड़प में हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया गया था। चीनी सैनिक अपने साथ लोहे की छड़ें लेकर आये थे। गश्त के दौरान भारतीय पेट्रोलिंग पार्टी पर चीनी सैनिकों ने पथराव और लोहे की छड़ों से हमला बोल दिया था। जिसके बाद भारतीय जवानों ने भी जवाबी हमला किया। अधिकतर जवान चीनी पक्ष द्वारा किए गए पथराव और लोहे की छड़ों के इस्तेमाल के कारण घायल हुए थे।
घुसपैठ की कोशिश नाकाम
गलवान घाटी में हिंसक झड़प के दो महीने बाद यानी 29/30 अगस्त को चीनी सैनिकों ने पैंगोंग इलाके के साउथ क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की थी। लेकिन भारतीय सैनिकों की सतर्कता से चीनियों को दुम दबाकर भागना पड़ा था। इस घटना के बाद 31 अगस्त और 1 सितंबर को फिर से चीनी सैनिकों ने काला टॉप पर घुसपैठ की कोशिश की, जिस पर फिर से उसे मुंहकी खानी पड़ी थी। वहीं भारतीय सेना ने पैंगोंग इलाके के पास अहम जगहों पर अपना कब्ज़ा कर लिया था।
45 साल बाद एलएसी पर गोलीबारी
चीन अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहा था। उसने इस बार पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय सेनाओं की चौकी पर गोलीबारी कर दी थी। इसके जवाब में भारत ने भी फायरिंग की थी। इस बीच चीन ने आरोप लगाया था कि भारतीय जवानों ने घुसपैठ की कोशिश की और गोलीबारी की। इस दशक में यह पहला मौका है, जब चीन ने भारतीय जवानों पर चीनी सैनिकों पर फायर करने का आरोप लगाया गया है।
काला टॉप और हेल्मेट टॉप समेत पैंगोंग इलाके के कई हिस्सों में भारतीय सेना ने अपना कब्ज़ा कर रखा है, जो रणनीतिक और राजनीतिक तौर पर भी काफी अहम है। यही वह कारण है कि, चीन की सेना बुरी तरह बौखला गई है। इसी बौखलाहट के चलते चीनी सेना सोमवार की रात को बॉर्डर पर आगे की तरफ बढ़ने लगी। इसी दौरान भारतीय सेना की ओर से वार्निंग शॉट (चेतावनी वाली हवाई फ़ायरिंग) दागे गए, जिसके बाद चीनी सेना के जवान पीछे हट गए थे। बता दें कि, साल 1975 के बाद सीमा पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच इस तरह से पहली बार फायरिंग हुई है। यानी कुल 45 साल बाद सीमा पर दोनों के बीच फ़ायरिंग हुई है।
उल्टा चोर कोतवाल को डाटे
चीनी मुखपत्र कहा जाने वाला अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा था, “भारतीय सैनिकों ने सोमवार को पैंगॉन्ग त्सो के दक्षिणी किनारे पर घुसपैठ करने की कोशिश की। इस दौरान जब चीनी सेना की पेट्रोलिंग पार्टी भारतीय जवानों से बातचीत करने के लिए बढ़ी तो उन्होंने जवाब में वॉर्निंग शॉट फायर किए।”
चीन का झूठ आया सामने
चीन लगातार झड़प में अपने सैनिकों के मारे जाने की खबरों को ख़ारिज करता रहा। चीन का झूठ उस समय सामने आया जब अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट सामने आयी। रिपोर्ट में दावा किया गया था चीन के करीब 35 सैनिक मारे गए थे। झूठ सामने आने के बाद चीन ने कबूल किया की गलवान घाटी में हुई झड़प में उसके जवान मारे गए। लेकिन उसने मारे गए सैनकों की संख्या नहीं बताई है।
बातचीत में अभी तक कोई परिणाम नहीं
गलवान में हुई हिंसक झड़प और एलएसी पर हुई गोलीबारी के बाद स्थिति और बिगड़ गई। दोनों पक्षों के बीच कमांडर स्तर की वार्ता जारी है। भारत ने हमेशा पूर्वी लद्दाख में गतिरोध वाले सभी स्थानों से चीन द्वारा जल्द सैनिकों को पीछे हटाने पर जोर दिया है। मुख्य रूप से वार्ता का मकसद क्षेत्र में शांति और स्थिरता की बहाली के लिए खाका तैयार करना था। लेकिन अभी तक कोई भी परिणाम प्राप्त करने में विफल रहे हैं।