Supreme Court

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    नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की शक्ति का इस्तेमाल बहुत समझदारी और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए तथा वह भी दुर्लभ मामलों में। 

    न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने एक संपत्ति विवाद में तीन लोगों के खिलाफ जालसाजी और धोखाधड़ी का मामला रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं। पीठ ने कहा, ‘‘अदालत आगाह करती है कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति का इस्तेमाल बहुत समझदारी से और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए तथा वह भी दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों में। इसने (शीर्ष अदालत ने) मामलों की कुछ श्रेणियों को स्पष्ट किया है, जहां कार्यवाही रद्द करने की ऐसी शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है।” 

    उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसी एक श्रेणी जहां इस शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है, वह ऐसी आपराधिक कार्यवाही से है, जो आरोपी से प्रतिशोध लेने और निजी तथा व्यक्तिगत द्वेष के मकसद से दुर्भावनापूर्ण रूप से शुरू की गयी हो। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट आपराधिक दंड संहिता की धारा 156 (3) के तहत शीर्ष न्यायालय द्वारा तय कानून पर विचार करने में पूरी तरह नाकाम रहा है। (एजेंसी)