नई दिल्ली: आज यानी मंगलवार 17 अक्टूबर को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। जानकारी दें कि दुनिया के 34 देशों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी दायरे में पहले ही ला चुकी है। इस बाबत CJIचंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में कुछ चार फैसले हैं। कुछ सहमति के हैं और कुछ असहमति के। उन्होंने कहा, अदालत कानून नही बना सकता। लेकिन कानून की व्याख्या कर सकता है।
वहीं CJI के फैसले के बाद जस्टिस संजय किशन कौल ने भी समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों की पुरजोर वकालत की। इसके साथ ही समलैंगिक विवाह पर चार जजों CJI, जस्टिस कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने बंटा हुआ फैसला सुनाया। जस्टिस हिमा कोहली भी इस बेंच का हिस्सा हैं।
कोर्ट ने दिए केंद्र और राज्य सरकारों को ये निर्देश
- केंद्र और राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि समलैंगिक जोडों के साथ भेदभाव न हो।
- लोगों को समलैंगिक लोगों के प्रति जागरूक करें।
- समलैंगिक समुदाय के लोगों की सहायता के लिए बनाएं हेल्पलाइन ।
- किसी बच्चे का लिंग चेंज ऑपरेशन तभी हो, जब वह इसके बारे में समझने योग्य हो जाए।
- किसी को जबरन सेक्स प्रवृत्ति में बदलाव वाला न दिया जाए हॉरमोन।
- पुलिस समलैंगिक जोड़ों की सहायता करे।
- समलैंगिक लोगों को उनकी मर्जी के खिलाफ परिवार के पास लौटने के लिए मजबूर न किया जाए।
- समलैंगिक जोड़ों के खिलाफ FIR प्राथमिक जांच के बाद ही दर्ज हो।
Same-sex marriage | CJI Chandrachud says homosexuality or queerness is not an urban concept or restricted to the upper classes of society….Queerness can be regardless of one’s caste or class or socio-economic status. https://t.co/2Ux5Rk5h8p
— ANI (@ANI) October 17, 2023
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की ख़ास बातें
- आज CJI ने कहा कि समलैंगिकता कोई नया विषय नहीं है। कोई भी व्यक्ति या किसी भी राज्य में रहनेवाला समलैंगिक हो सकता है। भले ही वे गांव से हों या शहर से, ना केवल एक अंग्रेजी बोलने वाला पुरुष समलैंगिक होने का दावा कर सकता है, बल्कि ग्रामीण इलाके में एक खेत में काम करने वाली महिला भी समलैंगिक हो सकती है।
- हम मनुष्य जटिल समाजों में रहते हैं। वहीं एक-दूसरे के साथ प्यार और जुड़ाव महसूस करने की हमारी क्षमता हमें इंसान होने का एहसास देते है। अपनी भावनाओं को साझा करना हमें वह बनाती है जो हम हैं। परिवार का हिस्सा बनने की आवश्यकता मानव गुण का मुख्य हिस्सा है और आत्म विकास के लिए यह महत्वपूर्ण है।
- अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार गरिमा और गोपनीयता सुनिश्चित करता है। वहीं अंतरंगता का अधिकार इस सब से पैदा होता है। जीवन साथी चुनना जीवन का एक अभिन्न अंग है
फैसला रखा था सुरक्षित
जानकारी दें कि CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ सुबह 10:30 बजे समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिकाओं पर अपना फैसला दी है। दरअसल संविधान पीठ ने बीते 10 दिन की सुनवाई के बाद इसी साल बीते 11 मई को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
Marriage equality case | CJI says equality demands that persons are not discriminated against on the basis of their sexual orientation. pic.twitter.com/jaldVoW9I4
— ANI (@ANI) October 17, 2023
क्या थी मांग
पता हो कि सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में समलैंगिक विवाह (सेम सेक्स मैरिज) को भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत लाकर उनका रजिस्ट्रेशन किए जाने की मांग की गई थी। इस बाबत याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 के एक हिस्से को रद्द कर दिया था। इसके चलते 2 वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अब अपराध नहीं माना जा सकता। ऐसे में यह दलील थी कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी मिलनी चाहिए।
क्या थी सरकार की दलील
यह भी बताते चलें कि केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का आग्रह करने वाली याचिकाओं पर उसके द्वारा की गई कोई भी संवैधानिक घोषणा “कार्रवाई का सही तरीका” कभी नहीं हो सकती, क्योंकि अदालत इसके परिणामों का अनुमान लगाने, परिकल्पना करने, समझने और उनसे निपटने में फिलहाल सक्षम नहीं हो पाएगी।
क्या है सरकार का सोचना
केंद्र सरकार ने यह भी दलील थी कि यह दरअसल शहरी सोच है, इसकी मांग बड़े शहरों में रहने वाले कुछ अभिजात्य (Elite) लोगों की है। केंद्र का कहना था कि “समलैंगिक शादी को कानूनी दर्जा देने का असर सब पर पड़ेगा।” हालांकि तब इस मुद्दे पर पर CJI चंद्रचूड़ ने भी कहा था कि सरकार के पास कोई ऐसा डाटा नहीं है जो यह बताए कि सेम सेक्स मैरिज की मांग सिर्फ शहरी वर्ग तक ही सीमित है।