Unlucky Indian Politicians 2023

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नवभारत डेस्क: साल 2023 कुछ आम नेताओं के लिए बेहद खास रहा, उन्हें उनकी पार्टियों ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया, तो कुछ नेताओं को उसी कुर्सी से उतार फेंका। जबकि, कई नेता अपनी पार्टी से बगावत कर सत्ता में शामिल हो गया। यह वही साल है जहां किसी ने अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी गवाई, तो किसी के मुख्यमंत्री बनने का सपना चूर चूर हो गया। एक नेता तो ऐसा भी जिसकी पार्टी पर इस साल काफी मुसीबत आई। उसके साथी नेता भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते जेल में बंद है। तो आइए जानते हैं उन अनलकी नेताओं के बारे में…

Arvind Kejriwal
अरविंद केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए यह साल सबसे खराब रहा। दिल्ली की शराब नीति के चलते केजरीवाल के साथी और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और राज्यसभा सांसद संजय सिंह जेल की हवा खा रहे हैं। दरअसल, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सिंह को इस साल 4 अक्टूबर को दिल्ली शराब घोटाला मामले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनके परिसर पर छापेमारी के बाद गिरफ्तार किया गया था। जबकि, सिसोदिया को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 26 फरवरी को दिल्ली आबकारी नीति 2020-21 के निर्माण और कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया था। इसके बाद ईडी ने सीबीआई की FIR के बाद तिहाड़ में पूछताछ के बाद मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सिसोदिया को गिरफ्तार कर लिया। इन दोनों नेताओं ने जमानत के लिए कई बार कोर्ट में जमानत याचिका दायर की लेकिन हमेशा उन्हें निराशा हाथ लगी। वहीं, अरविंद केजीरवाल भी ईडी के निशाने पर है। ईडी तीन बार केजरीवाल को समन जारी कर चुकी हैं। केजरीवाल का कहना है कि ईडी का समन गैर कानूनी और राजनीति से प्रेरित है।

वहीं, दिल्ली सेवा अधिनियम बिल के लागू होते ही केजरीवाल की पावर चली गई। अब केजरीवाल अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते। दिल्ली सरकार में अधिकारियों के तबादला और नियुक्ति राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) करता है। इसके चेयरमैन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं और दो अन्य सदस्य मुख्य सचिव और गृह सचिव हैं। प्राधिकरण के सदस्यों के बीच मतभेद होने पर दिल्ली के उपराज्यपाल का फैसला अंतिम माना जाएगा। ज्यादा पावर अब केंद्र सरकार के पास है।

Shivraj Singh
शिवराज सिंह चौहान

शिवराज सिंह चौहान

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए यह साल अब तक अच्छा तो रहा लेकिन आखिरी महीने में उनके भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। दरअसल, विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए प्रमुख दावेदार माना जा रहा था। लेकिन भाजपा को राज्य में नए चेहरे को मौका देने का मन बना लिया था। जिसके चलते शिवराज फिर से मुख्यमंत्री नहीं बन सके। पार्टी ने शिवराज से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीनकर डॉ. मोहन यादव को सौंप दी। ऐसे में अब शिवराज सिर्फ एक पार्टी कार्यकर्ता के तौर पर काम करेंगे या पार्टी उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी सौंपेगी यह आने वाला वक्त ही बताएगा।

ashok gahlot
अशोक गहलोत

अशोक गहलोत

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए 2023 कुछ खास नहीं रहा। उन्होंने इस साल विधानसभा चुनाव में अपने निर्वाचन क्षेत्र सरदारपुरा से जीत तो हासिल कर ली, लेकिन पार्टी की कम सीटें आने के चलते उन्होंने अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवा दी। इस चुनाव में अशोक गहलोत को पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट से चल रहे राजनीतिक विवाद से नुकसान हुआ। चुनाव से पहले दोनों नेताओं ने एक दूसरे पर कई बार परोक्ष हमला बोला। जिसके चलते पार्टी को चुनाव में नुकसान हुआ। गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस 199 में से मात्र 69 सीटें ही जीत पाई। जबकि, भाजपा ने 115 सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बना ली।

Vasundhara Raje
वसुंधरा राजे सिंधिया

वसुंधरा राजे

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दिग्गज नेत्री और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए भी 2023 अनलकी साबित हुआ। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बड़ी जीत तो दर्ज कर ली है लेकिन वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद नहीं मिला। वह मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे बड़ी दावेदार थी लेकिन पार्टी हाईकमान किसी और को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी देना चाहती थी। मुख्यमंत्री के नाम के लिए कई दिनों की लंबी चर्चा के बाद पार्टी ने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया। जिसके चलते वसुंधरा राजे के समर्थकों में नाराजी दिखाई दी। बता दें कि वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी है और वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की उपाध्यक्ष हैं। हालांकि, अब चर्चा है कि राजे बढ़ती उम्र के चलते राजनीति से संन्यास ले सकती है या फिर पार्टी उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है।

bhupesh baghel
भूपेश बघेल

भूपेश बघेल

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और छत्तीसगढ़ के पूर्व भूपेश बघेल के लिए 2023 अच्छा नहीं रहा। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद बघेल की मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन गई। चर्चा है कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में अपनी जीत मान कर चल रही थी। लेकिन, भूपेश बघेल दूसरे नेताओं की नहीं सुन रहे थे, जिसके चलते चुनाव में कांग्रेस का दबदबा नहीं दिखा। वहीं, बघेल का नाम महादेव बेटिंग एप मामले में भी सामने आया। चुनाव के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दावा किया था कि महादेव सट्टेबाजी ऐप के प्रवर्तकों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को 508 करोड़ रुपये दिए हैं। विशेषज्ञों की माने तो महादेव बेटिंग एप मामले का असर चुनाव पर पड़ा और कांग्रेस को हार का स्वाद चखना पड़ा।

KCR
के. चंद्रशेखर राव

के. चंद्रशेखर राव

भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के अध्यक्ष और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के लिए यह साल अशुभ रहा। राव ने पिछले साल अपनी पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति से बदलकर भारत राष्ट्र समिति कर दिया था। उनकी पार्टी तेलंगाना के अलावा अन्य राज्यों में भी चुनाव लड़ना चाहती थी और केंद्रीय पार्टी बनकर उभरना चाहती थी। हालांकि, पार्टी अब तक इसमें नाकाम रही। दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे राव ने इस विधानसभा चुनाव में गजवेल सीट पर जीत तो दर्ज की, लेकिन कामारेड्डी से चुनाव हार गए। उनकी पार्टी इस चुनाव में 119 में से सिर्फ 39 सीटें ही जीत सकी। जिसके चलते राव ने अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवा दी। इसके बाद राव एर्रावल्ली स्थित अपने फार्म हाउस में गिर गए, जिसके चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। राव को गिरने के बाद कूल्हे में फ्रैक्चर हुआ था। हालांकि, सफलतापूर्वक सर्जरी होने के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

Shard Pawar and Ajit Pawar
शरद पवार

शरद पवार

महाराष्ट्र के कद्दावर नेता और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार के लिए भी यह साल कुछ खास नहीं रहा। उनके भतीजे अजित पवार के बगावत करने के बाद पार्टी में विभाजन हो गया। दरअसल, इस साल जुलाई में अजित पवार और आठ अन्य NCP विधायक के साथ एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना-भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार में शामिल हो गए, जिससे पार्टी में विभाजन हो गया। शरद पवार ने 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई और 24 साल तक पार्टी अध्यक्ष रहे। लेकिन अजित पवार एक झटके में पार्टी को तोड़ दिया। अजित पवार ने 40 विधायकों के समर्थन के साथ खुद को पार्टी अध्यक्ष भी घोषित कर दिया है। इस गुट के वर्तमान में महाराष्ट्र से 41 विधायक, नागालैंड से 7 विधायक और भारतीय संसद में 2 सांसद हैं। फिलहाल, अजित पवार गुट और शरद पवार गुट के बीच पार्टी के नाम और निशान को लेकर घमासान जारी है।