Vijay Diwas 16 December, 93 Thousand Pakistani soldiers, Surrendered in front of India

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नवभारत डिजिटल डेस्क: बंटवारे के बाद से ही पाकिस्तान को भारत मिटाने की कई नापाक कोशिशें कर चुका है। जिसके लिए पाकिस्तान कभी अपनी सेना का तो कभी आतंकवाद का सहारा लेता है। लेकिन इतिहास गवाह है जब भी उसने भारत की तरफ आंख उठाकर देखा है उसे हर बार शर्मसार होना पड़ा है। फिर चाहे वो 1947 का युद्ध हो, 1965 का, 1971 का युद्ध (बांग्लादेश मुक्ति संग्राम) या फिर 1999 का कारगिल युद्ध ही क्यों न हो। इन सभी लड़ाइयों में पाकिस्तानी सेना को हार का मुंह देखना पड़ा है। साल 1971 की लड़ाई तो दुनिया के युद्धों के इतिहास में एक बड़ा रिकॉर्ड माना जाता है। जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। इस युद्ध में तो पाकिस्तान को इतनी करारी हार मिली थी कि उनके पूरे देश का सिर झुक गया था। हां, हम विजय दिवस की बात कर रहे हैं।   

पूर्वी पाकिस्तान में लोगों पर अत्याचार
पाकिस्तान में साल 1970 में आम चुनाव संपन्न हुए थे। इस चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान के आवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर रहमान बड़े नेता बनकर उभरे, उनकी पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की लेकिन उनकी लोकप्रियता पीपुल्स पार्टी के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो को रास नहीं आई। इसी दरम्यान शेख मुजीबुर रहमान ने सरकार बनाने का दावा पेश किया तो जुल्फिकार अली भुट्टो ने उन्हें दूसरे के इलाके में दखल न देने की बात कही। जिसके बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली समुदाय पर अत्याचार शुरू कर दिया गया। आलम ऐसा हो गया कि बंगाली बोलने वाले लोगों की हत्या की  जा रही थी, उनके घरों को जलाया जा रहा था। पाकिस्तान की इस हरकत से कईयों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

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पूर्वी पाकिस्तान के लोग भारत में लेने लगें शरण
पूर्वी पाकिस्तान जो आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है। वहां के बंगाली समुदाय पर पाकिस्तान क्रूरता की सारी हदें पार कर रहा था। जिसके बाद पीड़ितों ने भारत की शरण ली और रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त 10 लाख लोग भारत की सीमा के अंदर आ गए थे। पहले से ही बौखलाए पाकिस्तान का आरोप था कि पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं को भारत ने भड़काया है जिसके बाद उन्होंने बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी का गठन किया। फिर किया पाकिस्तान की सेना ने भारत के कई हिस्सों पर हमला कर दिया।  

1971 का युद्ध के बांग्लादेश का हुआ जन्म
पाकिस्तान की एयर फ़ोर्स ने 3 दिसंबर 1971 को भारत पर हमला कर दिया। पाकिस्तानी एयर फोर्स ने भारत के अमृतसर और आगरा समेत कई शहरों को निशाना बनाया। इस बात की जानकारी मिलते ही उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान पर हमले का आदेश दे दिया और फिर शुरू हो गई 1971 के भारत-पाक लड़ाई। भारतीय सेना के फील्‍ड मार्शल सैम मानेकशॉ, जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा की सुझबुझ ने पाकिस्तान के चारो खाने चित कर दिया।

पाकिस्तान ने अपनी हार स्वीकार कर ली
पाकिस्तानी सेना ने जैसे ही हमला किया उसके बाद भारतीय एयर फोर्स ने कराची बंदरगाह पर बमबारी करके पाकिस्तानी नौसेना के मुख्यालय और गवर्नर हाउस को नेस्तनाबूद कर दिया। भारतीय सेना ने आकाश, जल और थल तीनों जगहों पर अपनी पकड़ बनाये रखा था। इसी बीच उन्होंने हार्डिंग ब्रिज, खेतलाल और मधुपुर पर कब्जा कर लिया। इसके बाद ढाका पर कब्जा कर लिया। इस लड़ाई में पाकिस्तान को भारी नुकसान उठाना पड़ा और 13 दिन तक चली इस लड़ाई के बाद आखिरकार पाकिस्तान ने अपनी हार स्वीकार कर ली।

बांग्लादेश का उदय
भारतीय सेना के बहादुरी और ताकत के आगे पाकिस्तान के घुटने टेकने के बाद वो गर्व का पल आया जब 16 दिसंबर 1971 को शाम 4.35 बजे अपने 93 हजार सैनिकों के साथ लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। पाकिस्तानी सेना अपने बंदूके नीचे रख एक तरफ खड़ी थी और लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर अपनी हार स्वीकार की। इस हार से जहां एक बार फिर से पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। वहीं भारत एक ताकतवर देश बनकर विश्व के पटल पर उभरा। भारत सरकार की मदद से बांग्लादेश का उदय हुआ।