Assembly Election 2023

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नवभारत डिजिटल डेस्क: राजस्थान, मध्यप्रदेश, मिजोरम, छत्तीसगढ़ में हाल ही में चुनाव संपन्न हुए हैं। वहीं, तेलंगाना में कल यानी  30  नवंबर को वोटिंग होनेवाली है। इन पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों (Assembly Election 2023) के लिए सभी पार्टियों अपनी पूरी ताकत लगाकर प्रचार किया। इस दौरान सभी पार्टियों ने जनता से लोकलुभावन वादे भी किए। वहीं, सभी पार्टियों द्वारा एक दूसरे पर वार पलटवार करते हुए भी देखा गया। राज्यों में मौजूदा सरकारों ने भी अपनी सत्ता दोबारा बनाने के लिए जनता से कई नए जुमले भी देखने को मिले। राजस्थान में गहलोत-पायलट (Ashok Gehlot and Saachin Pilot) में गुटबाजी तो मध्यप्रदेश में मामा (Shivraj Chouhan) पर भ्रष्टाचार के आरोप, वहीं, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) के सामने धर्मांतरण का मुद्दा न बन जाये मुसीबत। वहीं, तेलंगाना में केसीआर (KCR) पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप न ले जाए उनके हाथों से सत्ता की लाठी। जबकि मिजोरम में मौजूदा मिज़ो नेशनल फ्रंट (MNF) सरकार के सामने मणिपुर से आये शरणार्थी और अवैध घुसपैठ जैसे मुद्दे न बन जाए गले की हड्डी। तो आइये जानते हैं इन चुनावों में मौजूदा सरकार पर किन मुद्दों का दबाव था। 

राजस्थान में अशोक गहलोत के सामने सत्ता बदलने का रिवाज

बात करें राजस्थान की तो, यहां पर साल 1993 से हर पांच साल में सत्ता बदलने का रिवाज है। यानी कि हर विधानसभा चुनाव में एक बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा को सत्ता की बागडोर मिलती रही है। इससे यह कह सकते है कि कांग्रेस को यहां पर सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा। वहीं, सके साथ ही कई मुद्दों का सामना मौजूदा सरकार करना पड़ा है। कांग्रेस ने बार-बार पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने की मांग की है। इस योजना का उद्देश्य राज्य के 13 जिलों की सिंचाई और पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करना है। यह नहीं इस चुनाव में भाजपा द्वारा हिंदुत्व कार्ड खेलते हुए करौली, जोधपुर और भीलवाड़ा में सांप्रदायिक दंगों का मुद्दा उठाया गया। यह भी कहा जा सकता है कि राज्य की मौजूदा गहलोत सरकार के सामने सांप्रदायिक दंगों  भी एक मुद्दा हो सकता है। 

वहीं, कांग्रेस सरकार के सामने आपसी गुटबाजी के मुद्दा भी परेशानी साबित हो सकता है। चूंकि चुनावों से पहले कांग्रेस नेता अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जारी मतभेदों किसी से भी छिपे नहीं है। यह भी राज्य सरकार के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर सकता है। साथ ही सरकारी भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक होना। जो कि लाखों बेरोजगार युवाओं को प्रभावित करने वाला मुद्दा है। जो अशोक गहलोत सरकार पर दबाव बनाता नजर आया। यही नहीं, कांग्रेस सरकार  अपनी सरकार की पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू करने पर जोर दे रही है। यही भी मुद्दा सरकार के सामने है। 

मध्यप्रदेश में मामा का भविष्य अंधेरे में 

मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार पर भ्रष्टाचार , बेरोजगारी, किसानों के मुद्दे, आदिवासी, दलित, ओबीसी, जैसे कई मुद्दे का दबाव है। कांग्रेस राज्य की भाजपा सरकार पर ’50 फीसदी कमीशन’ के आरोप लगा रही है। यहां तक कि कांग्रेस ने ‘पैसे दो काम लो’ का भी नारा दिया था। कांग्रेस के बड़े नेता कमलनाथ बार-बार सरकार को इस मुद्दे पर घेर रहे थे। वहीं, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा तो दावा कर चुकी हैं कि भाजपा ने 18 सालों में 250 स्कैम किए हैं। साथ ही सरकार पर किसानो का मुद्दा भी दबाव बना सकता है।

मध्य प्रदेश में 70 फीसदी आबादी किसानी से जुड़ी है। कांग्रेस ने कर्ज माफी, मुफ्त बिजली जैसे कई वादे भी कर जनता को लुभा रही है। जबकि, भाजपा मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के सहारे बैठी हुई है.इससे ऐसा प्रतीत होता है की यह भी मुद्दा कही सरकार के सामने परेशानी न बन जाये। साथ ही राज्य में बेरोजगारी भी एक अहम मुद्दा है। 

MP Assembly Election 2023
शिवराज चौहान और कमलनाथ

कांग्रेस द्वारा यह भी आरोप लगाया गया है कि भाजपा सरकार ने एमपी में तीन सालों में सिर्फ 21 सरकारी नौकरियां दी हैं। ऐसे में बेरोजगारी भी एक मुद्दा सरकार पर दबाव बना सकता है। कहा जाता है कि पिछले चुनाव में भाजपा की हार के बड़े जिम्मेदार आदिवासी बहुल इलाके थे। ऐसे में राज्य में आदिवासी पर पेशाब करने का मामले ने भी काफी तूल पकड़ा था। हालांकि, खुद सीएम को पीड़ित के पैर धोते देखा गया था। लेकिन यह भी मुद्दा सरकार पर दबाव बना सकता है। वहीं, आदिवासी समाज जैसे दलित समाज का मुद्दा भी सरकार के सामने दबाव बना सकता है। प्रदेश में 230 सीटों में से 35 सीटें आरक्षित हैं। 

साथ ही ‘मामा’ से लेकर ‘बुलडोजर मामा’ की छवि तैयार कर चुके सीएम चौहान के सामने सत्ता विरोधी लहर एक बड़ी चुनौती है। इसके साथ ही जातिगत जनगणना का भी मुद्दा शिवराज सरकार पर दबाव बना सकता है। चूंकि कांग्रेस ने ओबीसी आरक्षण में महिला कोटा की भी बात छेड़ दी है। सबसे पुरानी  पार्टी को उम्मीद है कि वह जाति जनगणना की मांग के जरिए ओबीसी में पैठ बना सकते हैं। मध्य प्रदेश में राज्य में ओबीसी आबादी 50 फीसदी के आसपास मानी जाती है, जिसे भाजपा का बड़ा वोटर माना जाता है। ऐसे में यह भी मुद्दा दबाव बना सकता है। साथ ही महिला का भी मुद्दा मौजूदा सरकार पर दबाव बना सकता है। क्योंकि कांग्रेस महिलाओं के खिलाफ अपराध के मुद्दे पर भी भाजपा को घेर रही है। हालांकि भाजपा ने महिलाओं को नौकरी में 35 फीसदी आरक्षण देने का ऐलान किया है। लेकिन कांग्रेस ने भी आर्थिक सहयोग देने का ऐलान किया है। वहीं, राजस्थान में कांग्रेस की तरह एमपी में भाजपा में असंतोष की खबरें आती रही। कई नेता पार्टी छोड़ने की बात भी कर चुके है ऐसे में यह भी एक मुद्दा बन सकता है। 

छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण का मुद्दा न बिगाड़ दे भूपेश बघेल का गेम 

भूपेश बघेल सरकार के कथित भ्रष्टाचार, धर्मांतरण और अधूरे चुनावी वादों के मुद्दे पार्टी की काफी दबाव में ला सकते है। राज्य में 10 ऐसे मुद्दे हैं जो विधानसभा चुनाव सत्ताधीश पार्टी पर हावी हो सकते हैं।  राज्य में ईसाई और गैर-ईसाई आदिवासियों के बीच तनाव के साथ साथ धर्म परिवर्तन का भी मुद्दा सरकार  पर दबाव बना सकता है। कांग्रेस द्वारा राज्य में पिछले चुनाव के दौरान किया गया शराबबंदी का चुनावी वादे को पूरा नहीं कर पाई है। वहीं, इसे लेकर भाजपा ने बघेल सरकार पर निशाना साधा है। ऐसे में यह मुद्दे मौजूदा सरकार पर दबाव बना सकते है।

रमन सिंह और भूपेश बघेल

इसके साथ ही संविदा कर्मचारियों को लेकर भी राज्य में कई प्रदर्शन हो चुके है। वहीं,  भाजपा ने संविदा कर्मचारियों की मांग को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करने का वादा किया है। ऐसे में उन्हें सेवाओं को नियमित ना करना सरकार पर दबाव बना सकती है। साथ ही भ्रष्टाचार की भी मुद्दा सरकार  पर दबाव बना सकता है। क्योंकि भाजपा ने इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेरे रखा था। वहीं, महादेव एप की गाज सीएम भूपेश बघेल तक आई थी। ऐसे में यह मुद्दा काफी दबाव बना सकता है। इसके साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण भी सत्ताधारी दल कांग्रेस के लिए उस समय चिंता का विषय बन गया है। वहीं, बीजेपी आरोप लगा चुकी है की मौजूदा कांग्रेस सरकार केंद्रीय योजनाएं लागू करने में असफल हुई है। ऐसे में यह भी एक मुद्दा भूपेश बघेल सरकार पर दबाव बना सकता है। 

तेलंगाना में भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी KCR सरकार 

तेलंगाना में मौजूदा के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति की सरकार पर भ्रष्टाचार का मुद्दा काफी दबा बना सकता है। इस चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी में मौजूदा सरकार पर इस मुद्दे को लेकर हमलावर रही है। ऐसे में यह मुद्दा काफी परेशान कर सकता है। इसके साथ भी भाजपा द्वारा मुस्लिम आरक्षण रद्द करने की मांग भी सरकार पर दबाव बना सकती है। 

केसीआर की केसीआर की पसंदीदा परियोजना मानी जाने वाली कालेश्वरम परियोजना में भ्रष्टाचार के मुद्दे ने चुनावी प्रचार में काफी तूल पकड़ लिया था।  कालेश्वरम परियोजना का जयशंकर भूपालपल्ली जिले में मेदिगड्डा बैराज के कई घाट गोदावरी नदी में डूब गए थे। ऐसे में विपक्षी दाल कांग्रेस और भाजपा सरकार पर हमलावार है। यही नहीं मई 2017 में मेडचल जिले में एक भूमि रजिस्ट्रार द्वारा शिकायत दर्ज किए जाने के बाद कथित मियापुर भूमि घोटाले को लेकर बीआरएस विवादों में आ गई थी। यह भी मुद्दा सरकार  पर दबाव बना सकता है। 

Telangana Assembly Election 2023
PM नरेंद्र मोदी, के. चंद्रशेखर राव और राहुल गांधी

साथ ही मिशन काकतीय और मिशन भगीरथ जिसका उद्देश्य राज्य में 45,000 से अधिक तालाबों, झीलों, टैंकों, जल निकायों की मरम्मत, पुनर्स्थापना, गाद निकालने के साथ साथ  जिसका उद्देश्य भूजल स्तर में सुधार करना, सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना है। सरकार इसमें काम करने में नाकाम दिख रही है। इसमें अनियमितताओं के आरोप को लेकर साल 2018  में सरकार के खिलाफ तेलंगाना हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। ऐसे में यह एक मुद्दा सरकार  पर दबाव बना सकता है।  कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी द्वारा केसीआर सरकार पर हैदराबाद में आउटर रिंग रोड (ORR) को एक निजी कंपनी को सामान्य से कम वार्षिक राजस्व पर पट्टे पर देने का आरोप लगाया था। ऐसे में इस मुद्दे को लेकर भी सरकार दबाव में आ सकती है। 

मिजोरम में भी भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य सेवाएं, अवैध घुसपैठ जैसे कई मुद्दे 

मिज़ोरम विधानसभा की कुल 40 सीटों के लिए 7 नवंबर को मतदान हुए है। यहाँ चुनावी मुक़ाबला दो प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियां एमएनएफ़ और ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के बीच होता दिख रहा है। इस छोटे से पहाड़ी राज्य में भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य सेवाएं, अवैध घुसपैठ जैसे कई राजनीतिक मुद्दे हैं। जो मौजूदा मिज़ो नेशनल फ्रंट के सामने परेशानी का मुद्दा बन सकते है। क़रीब 13 लाख 80 हज़ार की आबादी वाले इस राज्य में मणिपुर की हिंसा और म्यांमार में मिलिट्री ऑपरेशन के कारण भागकर आए सैकड़ों की तादाद में चिन, कुकी-ज़ोमी शरणार्थियों का मुद्दा काफ़ी चर्चा में है।

साथ ही मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के पीड़ित लोग यहा पर शरण लेने आए जो भी एक मुद्दा है। बीजेपी मौजूदा एमएनएफ पर आरोप लगाती आ रही है कि मौजूदा सरकार ने जो वादे किए थे उनको पूरा नहीं किया। बीजेपी अपने सहयोगी सत्ताधारी दल एमएनएफ पर केंद्र से भेजे गए पैसों को लेकर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाती है। ऐसे में मणिपुर से आये शरणार्थी,अवैध घुसपैठ ,   भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य सेवाएं, अवैध घुसपैठ जैसे मुद्दे मौजूदा सरकार पर दबाव बनती नजर आ रही है।