-सीमा कुमारी
हर साल 14 अक्टूबर को ‘धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस’ मनाया जाता है। यह दिवस भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (Dr. Babasaheb Ambedkar) के धर्म परिवर्तन यानी बौद्ध धर्म को अपनाए जाने के कारण मनाया जाता है।
जानकारों का मानना है कि, इस दिन डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने अपना धर्म परिवर्तन किया था। डॉ. आंबेडकर के साथ उनके करीब 600,000 अनुयायियों ने 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म अपनाया था। इसलिए इस दिन को बौद्ध समुदाय के लोगों द्वारा बहुत सम्मान और उत्साह के साथ मनाया जाता है। आइए जानें इस दिवस का इतिहास एवं महत्व
‘धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस’ का इतिहास
भारत में जाति प्रथा और रंगभेद जैसे भेदभाव समाज की जड़ों में घर की हुई हैं। दुर्भाग्य की बात तो ये है कि आज आधुनिकता के दौर में भी भारतीय समाज में जाति-पाती का भेदभाव मौजूद है। देश के कई हिस्सों में ऊंची जाति के लोगों द्वारा निचली जाति के लोगों से भेदभाव किया जाता है। भेदभाव की बुराइयों से लड़ने के लिए बाबा साहेब आंबेडकर ने बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने के लिए एक बड़ा कदम उठाया। ‘धम्मचक्र प्रवर्तन दिन’ को कई लोग स्वतंत्रता का दिन भी कहते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जब कोई भी स्वतंत्र रूप से खुद को परिवर्तित या बदल सकता है। बौद्ध धर्म के इतिहास में एक बेहद ही महत्वपूर्ण दिन है।
‘धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस’ के उत्सव को मनाने के लिए इस दिन डॉ. आंबेडकर के कई बौद्ध अनुयायी नागपुर की दीक्षाभूमि पर इकठ्ठा होते हैं। जहां पर लोग धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस की बधाई देते हैं। हालांकि इस साल कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप के इस उत्सव को भी प्रतीकात्मक रूप से मनाया जाएगा।