वाहिद काकर
धुलिया. ज़िले में कोरोना (Corona) से मरना अभिशाप बन गया है। मरने के बाद भी कोरोना पीड़ितों की अवहेलना थमने का नाम नहीं ले रही है । साक्री तहसील (Sakri Tehsil) कोरोना ने सारी इंसानियत को शर्मसार कर दिया है. अंतिम संस्कार कराने के लिए परिवार को 8 से 10 घंटे तक एंबुलेंस (Ambulance) का इंतजार करने के बाद भी प्रशासन एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं करा पाया. जिसके चलते मृतक के अंतिम संस्कार के लिए अंतिम यात्रा कचरा संकलन करने वाले वाहन में परिवार को ले जाने पर विवश होना पड़ा है। साक्री तहसील के समोडे गांव (Samode Village) में एक कोरोना संक्रमित मरीज की मृत्यु के बाद भी इस लाश (Dead Body) की उपेक्षा कैसे की जाती है, इसका एक चौंकाने वाला उदाहरण सामने आया है।
कोरोना संक्रमण ने ज़िले में इंसानियत की सारी हदों को पार कर लिया है। श्मशान घाट वालों ने संक्रमित मरीजों का श्मशान भूमि में अंतिम संस्कार कराने पर पाबंदी लगा दी है. अब इसे एक कदम आगे बढ़कर साक्री तहसील में कोरोना से मरे व्यक्ति का अंतिम संस्कार कराने के लिए शव वाहन का इंतजाम 10 घंटे बीतने के बाद भी नहीं हुई, जिसके चलते परिवार ने ग्राम पंचायत से कचरा संकरण करने वाले वाहन में अंतिम संस्कार करने के लिए अंतिम यात्रा शव रख कर निकालने की गुहार लगाई। आखिरकार परिवार ने पीपी किट पहना और 70 वर्षीय ठाकुर का अंतिम संस्कार कराया।
अंतिम संस्कार कराने नहीं मिली शव वाहिनी
समोडे गांव के 70 वर्षीय त्रयंबक विष्णु ठाकुर का रविवार तड़के 2 बजे निधन हो गया था,वे कोरोना से पॉजिटिव थे। घर पर ही इलाज किया जा रहा था। अचानक उनकी मृत्यु हो गई। ग्राम पंचायत को रात में मृत्यु की सूचना दी गई. ग्राम पंचायत ने कोरोना नियमानुसार अंतिम संस्कार करने का फैसला किया। 10 घंटो तक मृतक के परिवार को ग्राम पंचायत कह रही थी कि एम्बुलेंस आ रही है, लेकिन 10 घंटे बाद भी एम्बुलेंस नहीं मिला। आखिरकार कचरा ढोने वाली गाड़ी में शव को रखकर शमशान भूमि ले जाया गया और परिजनों ने उनका अंतिम संस्कार किया.