Maha Shivratri 2021: आदिदेव भगवान शिव, (Lord Shiva) फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात करोड़ो सूर्यों की तेज लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसी वजह से हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ‘महाशिवरात्रि’ के रूप में मनाया जाता है। यह महारात्रि शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका न तो आदि था और न अंत। भगवन शिव हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परम सुख शान्ति एवं ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।
क्या है शिवलिंग?
शिव पुराण में वर्णित है कि शिवजी के निराकार स्वरुप का प्रतीक ‘लिंग’ शिवरात्रि की पावन तिथि की महानिशा में प्रकट होकर सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा पूजित हुआ था। वातावरण सहित घूमती धरती या अनंत ब्रह्माण्ड का अक्स ही लिंग है। इसलिए इसका आदि व अंत भी देवताओं तक के लिए अज्ञात है । सौरमंडल के ग्रहों के घूमने की कक्षा ही शिव के तन पर लिपटे सर्प हैं। मुण्डकोपनिषद के अनुसार सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि ही उनके तीन नेत्र हैं ।
बादलों के झुरमुट जटाएं ,आकाश जल ही सिर पर स्थित गंगा और सारा ब्रह्माण्ड ही उनका शरीर है। शिव कभी गर्मी के आसमान की तरह अर्थात चांदी की तरह दमकते , तो कभी सर्दी के आसमान की तरह मटमैले होने से भभूत लपेटे तन वाले हैं। यानि शिव सीधे-सीधे ब्रह्माण्ड या अनंत प्रकृति की ही साक्षात मूर्ती हैं। मानवीकरण में वायु प्राण, दस दिशाएं पंचमुखी महादेव के दस कान, ह्रदय सारा विश्व , सूर्य नाभि या केंद्र और अमृत यानि जलयुक्त कमंडल हाथ में रहता है। शून्य, आकाश , अनंत, ब्रह्माण्ड और निराकार परम पुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्द पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है,धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा गया है।
महाशिवरात्रि पौराणिक कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सती का पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ था। माँ पार्वती ने आरम्भ में अपने सौंदर्य से भगवान शिव को रिझाना चाहा लेकिन वे सफल नहीं हो सकीं। इसके बाद त्रियुगी नारायण से पांच किलोमीटर दूर गौरीकुंड में कठिन ध्यान और साधना से उन्होंने शिवजी का मन जीत लिया। इसी दिन भगवान शिव और आदिशक्ति का विवाह संपन्न हुआ। इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था।
शिवभक्त महाशिवरात्रि को पूरी रात अपने आराध्य का गुणगान करते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि को शिवजी के साथ शक्ति की शादी हुई थी। इसलिए महाशिवरात्रि की रात में शंकरजी की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।