क्या बेटियां कर सकती हैं पितृपक्ष में पूर्वजों का पिंडदान? जानिए किस स्थिति में किया जाए

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    -सीमा कुमारी

    सनातन धर्म में ‘पितृपक्ष’ (Pitru Paksha) का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि, पितृपक्ष में पूर्वज कौवे या पक्षियों के रूप में धरती पर आते हैं और अपने परिजनों से मिलते हैं और विधि-विधान के साथ पितरों का श्राद्ध करने से वे प्रसन्न होते हैं। उनकी आत्मा को शांति मिलती है। शास्त्रों के मुताबिक, पितरों को पिंडदान (Pind Daan) करने का काम घर के बेटे या पुरुष ही करते हैं। यदि किसी घर में बेटा न हो तो क्या बेटियां भी पिंडदान कर सकती हैं ? आइए जानें इस बारे में –

    शास्त्रों के मुताबिक, मां-बाप या अन्य परिजनों की मौत के बाद उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण करना बेटे का प्रमुख कर्तव्य बताया गया है। कहा जाता है कि ऐसा किए बिना आत्माओं को सांसारिक बंधनों से मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा इस भू-लोक में भटकती रहती है। ऐसे में उनकी आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान और श्राद्ध करना जरूरी माना गया है। हालांकि, अगर किसी घर में बेटे या पुरुष न हों तो वहां बेटियां भी पिंडदान कर सकती हैं।

    अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए आप पितृपक्ष के दौरान सफेद कपड़े पहनें। जिस दिन आपको उनका श्राद्ध कर्म करना हो। आप उस दिन खोये या जौ के आटे से पिंड बना लें। इसके बाद फूल, चंदन, कच्चा सूत, तिल, जौ, फल-मिठाई, अगरबत्ती और दही के साथ पिंडदान कर दें । पिंडदान करने के बाद शांतिपूर्वक बैठकर अपने पितरों को याद करनें और प्रभु से उनकी आत्मा की शांति की कामना करें।  इसके बाद पिंड को हाथ में उठाएं और सम्मान के साथ जल में प्रवाहित कर दें।