holi
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    सीमा कुमारी- 

    धरती की धानी चुनरिया जब बसंती रंग से श्रंगारित हो उठती है वो दिन होता है ‘बसंत पंचमी’ का। ऋतुराज बसंत के आगमन पर प्रकृति विविध रंगों से सजती है। यही विविध रंग ब्रज की कुंज गलियों में इस पर्व के साथ बिखरने शुरू हो जाते हैं।

    इस साल बसंत के दिन से ही उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मथुरा (Mathura) जिले में विश्व प्रसिद्ध ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में भी होली शुरु होने वाली है। वैसे तो होली में काफी दिन बचे हैं लेकिन ब्रज में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। यह होली सिर्फ एक या दो दिन नहीं बल्कि पूरे 40 दिन तक धूमधाम से मनाई जाती है। होली खेलने के लिए कई श्रद्धालु ब्रज में जाते हैं और अपने आराध्य के साथ होली खेलते हैं।

    बांके बिहारी मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु आराध्य के दर्शन करने के लिए जाते हैं। इस दौरान मंदिर को पीले रंग से सजाया जाता है और ठाकुर बांके बिहार जी को भी पीले रंग के वस्त्र पहनाए जाते हैं। कई दिनों पहले ही मंदिर में तैयारियां भी शुरु हो जाती है।

    ठाकुर जी के साथ होली के खेलने की शुरुआत का नजारा देखने के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं। मंदिर के प्रांगण में उड़ता गुलाल भक्तों के ऊपर गिरता है, तो इसे ईश्वर के प्रसाद के तौर पर समझा जाता है। राधा कृष्ण के प्रेम स्वरुप खेली जाने वाली होली बरसाना, नंद गांव, मथुरा सहित वृंदावन जैसे कई मंदिरों में खेली जाती है।

    रंग और गुलाल की होली के साथ इस पर्व पर होलिका दहन के स्थलों पर पेड़ का डांढ़ा भी लगाया जाता है। यह पेड़ की लकड़ी के टुकड़ा होता है, जिसके पास में होलिका सजाई जाती है और होलिका दहन तक हर लकड़ी डाली जाती है। फिर यह उत्सव लगातार 40 दिनों तक चलता है। आपको बता दें कि ब्रज की होली दुनियाभर में बहुत ही मशहूर है। खासकर यहां की लट्ठमार होली देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।

    बिहारी जी मंदिर में रंगोत्सव की परंपरा सदियों पुरानी है। कहा जाता है कि बिहारी जी का प्राकट्य जिनकी भक्ति से हुआ था वो स्वामी हरिदास जी थे। उन्होंने ही रंगोत्सव का आरंभ करवाया था। संगीत सम्राट स्वामी हरिदास जी ने बिहारी जी के कपोलों पर गुलाल लगाकर इस परंपरा की शुरुआत की थी। उस समय माघ शुक्ल पंचमी से चैत्र कृष्ण द्वितीया तक फाग खेलना संत और भक्त ने शुरू किया था। इस उत्सव को ब्रज में मदनोत्सव भी कहा जाता है।