सीमा कुमारी
नवभारत लाइफस्टाइल डेस्क: जैसा कि आप सभी जानते है कि ‘मुस्लिम समुदाय’ (Muslim community) के लिए रमजान का पाक महीना बेहद महत्व रखता है। आपको बता दें ‘अलविदा जुमा’ अथवा ‘जुमा-तुल-विदा’(Jamat-ul-Wida 2024) इस्लामी धर्म में बेहद महत्वपूर्ण दिन होता है, जो रमजान के आखिरी जुमे को मनाया जाता है। यह दिन जुमा की विदाई का प्रतीक भी माना जाता है, क्योंकि यह रमजान माह का आखिरी जुमा होता है।
जो इस बार देशभर में 5 अप्रैल 2024 को अलविदा जुमा मनाया जाएगा। जो इस बार वैसे तो, रमजान में हर जुमे की अपनी अहमियत है, लेकिन मुस्लिम समुदाय के लिए अलविदा जुमा एक अलग ही महत्व रखता है। अलविदा जुमा को अरबी में ‘जमात-उल-विदा’ भी कहा जाता है। आइए जानें भारत में अलविदा जुमा को लेकर क्या है परंपरा।
भारत में अलविदा जुमा
1- भारत में अलविदा जुमा की नमाज को लेकर एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है और मस्जिदों में भी खास तैयारी की जाती है।
2- रोजेदार नये और अच्छे कपड़े पहनकर और इत्र (खुशबू) लगाकर नमाज के लिए घर से बाहर निकलते हैं और मस्जिदों में इबादत करते हैं। बच्चे हों या बूढ़े सभी लोग इस दिन को खास तरीके से मनाते हैं।
3- मज़हब के इतर, हिंदुस्तान और दक्षिण एशिया में अलविदा जुमा को लेकर पारंपरिक और सांस्कृतिक तौर पर एक अलग ही रुझान देखने को मिलता है।
4- इस दिन लोगों में खासा उत्साह होता है और वो लोग पूरे जोश-व-खरोश के साथ इस नमाज़ का एहतिमाम करते है। बच्चों में इसको लेकर खासा उमंग देखने को भी मिलती है।
5- इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, अलविदा की नमाज में लोग सच्चे दिल से जो जायज दुआ मांगते हैं वो कबूल होती है और नेक दिल से अदा की गई नमाज से अल्लाह की रहमत और बरकत मिलती है।
6- साथ ही पुराने गुनाह भी माफ हो जाते है। इस दौरान फर्ज (जरूरी) के साथ ही कई नफिल (अतिरिक्त) नमाज़े भी पढ़ी जाती हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा सवाब कमाया जा सके। इसके साथ ही कुरान की तिलावत की जाती है और गरीब-जरूरतमंद लोगों की मदद भी होती है।
7- मुस्लिम धर्म गुरुओं के अनुसार, इस्लामी संस्कृति में जुमा को सप्ताह का सबसे पवित्र दिन माना जाता है, जिसे ‘जुमुआ’ या ‘जुम्मा’ भी कहते हैं। मुस्लिम धर्म गुरुओं के अनुसार यदि मुसलमान जुमा को प्रार्थना एवं इबादत के साथ पवित्र कुरान पढ़ते हैं, तो सप्ताह के बाकी दिनों में अल्लाह उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है, यद्यपि मुसलमान हर जुमा को विशेष मानते हैं, लेकिन रमजान के अंतिम जुमे का खास महत्व होता है।
जानिए क्या है इतिहास
जमात-अल-विदा के इतिहास के अनुसार, अल्लाह द्वारा भेजा एक दूत मस्जिद में प्रवेश करता है और इमाम को सुनता है। जमात-उल-विदा पर नमाज के लिए सुबह-सुबह मस्जिद जाने पर लोगों को इनाम मिलता है। पैगंबर मोहम्मद के अनुसार, अल्लाह उन लोगों के सभी पापों को माफ कर देगा जो नियमित रूप से जुमे की नमाज अदा करते हैं।